2017 में ‘माओवादी संबंधों’ को लेकर दोषी ठहराए गए दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामलाल आनंद कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर जीएन साईबाबा नागपुर जेल में आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे हैं. उनकी पत्नी वसंता का कहना है कि वे उनकी बर्ख़ास्तगी को अदालत में चुनौती देंगी.
नई दिल्ली: दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामलाल आनंद कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर जीएन साईबाबा की सेवाएं कॉलेज प्रशासन द्वारा बर्खास्त कर दी गई हैं. 2017 में ‘माओवादी संबंधों’ को लेकर दोषी ठहराए गए साईबाबा नागपुर जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, उनकी पत्नी वसंता ने कहा है कि वे इसके खिलाफ अदालत जाएंगीं.
साईबाबा ने साल 2003 में इस कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के बतौर अंग्रेजी पढ़ाना शुरू किया था. 2014 में महाराष्ट्र पुलिस द्वारा गिरफ्तारी के बाद उन्हें निलंबित किए जाने के बाद से उनकी पत्नी और बेटी को उनका आधा वेतन मिल रहा था.
वसंता के मुताबिक, अब ये मिलना बंद होने से उनके सामने आर्थिक समस्याएं खड़ी हो जाएंगी. उन्होंने कहा, ‘हम इस बर्खास्तगी को अदालत में चुनौती देंगे. बॉम्बे हाईकोर्ट में उनकी दोषसिद्धि और सजा के खिलाफ हमारी अपील लंबित है. मामला विचाराधीन है, फिर भी यह निर्णय लिया गया.’
बीते 31 मार्च को प्रिंसिपल राकेश कुमार गुप्ता द्वारा भेजे गए मेमोरेंडम में कहा गया था कि इसी दिन से डॉ. जीएन साईबाबा की कॉलेज में सेवाएं समाप्त की जा रही हैं और तीन महीने का वेतन सेविंग्स खाते में जमा करवा दिया गया है.
वसंता ने बताया कि यह उन्हें गुरुवार को मिला. उन्होंने बताया, ‘हमें साल 2019 में एक कारण बताओ नोटिस भेजा गया था लेकिन हमने और समय मांगा क्योंकि हमें साईबाबा से इस बारे चर्चा करनी थी. बीते एक साल से तो उनसे मिलने का मौका ही नहीं मिला है…’
वसंता ने बताया कि साईबाबा के वेतन की मदद से वे अपने कर्ज चुका रही हैं. वसंता गृहिणी हैं और उनकी बेटी जामिया मिलिया इस्लामिया से एमफिल कर रही हैं.
कमेटी फॉर द डिफेंस एंड रिलीज़ ऑफ साईबाबा की सदस्य और डीयू शिक्षक नंदिता नारायण कहती हैं, ‘एसएआर गिलानी (जिन्हें संसद पर हमले का दोषी ठहराया गया था) के मामले में उनको निलंबित किया गया था न की बर्खास्तगी हुई थी. तो जब वे बरी हुए तो वे फिर काम पर वापस आ गए थे…’
इस बीच कॉलेज के एक अधिकारी ने कहा कि अगर अदालत कभी साईबाबा की दोषसिद्धि के फैसले को बदल देती है, तब कॉलेज को भी अदालत का निर्णय मानना होगा.
गौरतलब है कि साईबाबा 90 फीसदी विकलांग हैं और व्हीलचेयर पर हैं. बीते फरवरी महीने में वे कोरोना संक्रमित पाए गए थे.
इससे पहले वसंता द्वारा उनके स्वास्थ्य को लेकर आशंकाएं जताने के बाद साईबाबा के वकीलों ने उन्हें स्वास्थ्य आधार पर जमानत दिलाने के प्रयास किए थे, लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने हर बार उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी.
इससे पहले बीते साल 28 जुलाई को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने साईबाबा की जमानत याचिका खारिज कर दी थी. उन्होंने अपने स्वास्थ्य के आधार पर और कैंसर से पीड़ित अपनी मां से मिलने के लिए जमानत देने का आग्रह किया था.
साईबाबा के जमानत याचिका खारिज होने के चार दिन बाद उनकी मां का निधन हो गया था. इसके बाद उन्होंने अपनी मां के अंतिम संस्कार के रस्मों में हिस्सा लेने के लिए पैरोल पर छुट्टी देने का आवेदन दिया था.
हालांकि, नागपुर केंद्रीय जेल के अधिकारियों ने साईबाबा के पैरोल के उस आवेदन को भी खारिज कर दिया था.
मालूम हो कि महाराष्ट्र के गढ़चिरौली की एक अदालत ने 2017 में साईबाबा और चार अन्य को माओवादियों से संपर्क रखने और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने जैसी गतिविधियों में संलिप्तता के लिए सजा सुनाई थी. तब से वह नागपुर जेल में हैं.