म्यांमार: तख़्तापलट के बाद हुई सैन्य कार्रवाई में क़रीब 46 बच्चों की मौत, अब तक 550 लोगों की जान गई

म्यांमार में तख़्तापलट के बाद सैन्य शासन के ख़िलाफ़ हुए लगातार प्रदर्शनों में हुई हिंसक कार्रवाई में मारे गए लोगों में 46 बच्चे भी शामिल हैं. साथ ही क़रीब 2,751 लोगों को हिरासत में लिया गया या सज़ा दी गई है.

(फोटो: रॉयटर्स)

म्यांमार में तख़्तापलट के बाद सैन्य शासन के ख़िलाफ़ हुए लगातार प्रदर्शनों में हुई हिंसक कार्रवाई में मारे गए लोगों में 46 बच्चे भी शामिल हैं. साथ ही क़रीब 2,751 लोगों को हिरासत में लिया गया या सज़ा दी गई है.

(फोटो: रॉयटर्स)
(फोटो: रॉयटर्स)

यंगून: म्यांमार में एक फरवरी को तख्तापलट के बाद से सैन्य प्रशासन जुंटा की कार्रवाई में मारे गए नागरिकों की संख्या बढ़कर 550 हो गई है.

इस बीच म्यांमार के एक मानवाधिकार समूह ‘असिस्टेंस एसोसिएशन फॉर पॉलिटिकल प्रिजनर्स’ (एएपीपी) ने शनिवार को बताया कि मृतकों में 46 बच्चे हैं. साथ ही करीब 2,751 लोगों को हिरासत में लिया गया या सजा दी गई.

म्यांमार में जानलेवा हिंसा और प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी की धमकियां सेना के सत्ता से बाहर जाने और लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार को फिर से बहाल करने की मांग कर रहे प्रदर्शनों को दबाने में नाकाम रही हैं.

बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन ‘सेव द चिल्ड्रन’ ने बताया कि म्यांमार में फरवरी में हुए तख्तापलट के बाद से सेना के हाथों कम से कम 43 बच्चों की जान जा चुकी है.

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक मरने वाले बच्चों में से एक छह साल की बच्ची थी. मरने वाले जिन बच्चों के बारे में जानकारी मिली है, उनमें ये सबसे कम उम्र की बच्ची थी.

हमले में जान गंवाने वाली छह साल की बच्ची खिन म्यो चित के परिवार ने बीबीसी को बताया कि मार्च महीने के आखिर में मांडले स्थित उनके घर पर छापा मारा गया. इस दौरान बच्ची अपने पिता की और दौड़ी और उसे पुलिस की गोली लग गई.

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक एएपीपी द्वारा संकलित आंकड़ों का हवाला देते हुए, गुरुवार को सेव द चिल्ड्रन ने एक बयान में कहा कि पिछले 12 दिनों में बच्चों की मौत का आंकड़ा दोगुना से अधिक हो गया है.

मृतकों में एक 13 वर्षीय लड़का भी शामिल है जिसे कथित तौर पर सशस्त्र बलों से बचने के लिए भागने की कोशिश करते समय सिर में गोली लगी थी. रिपोर्ट के मुताबिक एक 14 वर्षीय लड़के को तब गोली मार दी गई, जब वह मांडले स्थित अपने घर के अंदर या आसपास था.

सेव द चिल्ड्रन के बच्चों की जिंदगी बचाने के लिए बार-बार फोन करने के बावजूद सेना लगातार बच्चों को निशाना बना रही है.

सेव द चिल्ड्रन ने कहा, ‘म्यांमार में बुरे सपने जैसे हालात हैं. मासूम बच्चों को बेरहमी से मारा जा रहा है. उनसे उनका बचपन छीना जा रहा है. पीड़ित परिवारों में जिन्होंने अपने छोटे भाई-बहनों को मरते देखा है- अकल्पनीय नुकसान और दर्द झेल रहे हैं.’

उसने कहा, ‘बच्चों ने हिंसा और आतंक देखा है. यह स्पष्ट है कि म्यांमार अब बच्चों के लिए सुरक्षित जगह नहीं है.’

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष यूनीसेफ ने इस सप्ताह के शुरूआत में कहा था कि सेना की दमनात्मक कार्रवाई में 35 बच्चों की भी मौत हुई थी और अनेक अन्य गंभीर अवस्था में घायल हुए हैं.

संयुक्त राष्ट्र बाल एजेंसी के अनुसार, लाखों बच्चे, प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से हिंसात्मक कार्रवाई के भयावह दृश्यों के गवाह बने हैं, जिससे उनके मानसिक व भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए जोखिम पैदा हो गया है.

रिपोर्ट के मुताबिक, इस बीच दशकों से सरकार से लड़ रहे जातीय अल्पसंख्यक विद्रोही समूह का प्रतिनिधित्व करने वाले कारेन नेशनल यूनियन ने थाईलैंड की सीमा से लगते अपने गृहनगर में गांवों और निहत्थे नागरिकों के खिलाफ लगातार बमबारी और हवाई हमलों की निंदा की है.

स्थानीय मीडिया ने प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से बताया कि शुक्रवार देर रात को सादे कपड़े पहने सशस्त्र पुलिस ने पांच लोगों को हिरासत में लिया. उन्होंने यंगून के एक बाजार में सीएनएन के एक पत्रकार से बात की थी. तीन अलग-अलग घटनाओं में गिरफ्तारियां हुई.

क्षेत्र में काम कर रही एक राहत एजेंसी फ्री बर्मा रेंजर्स के अनुसार कारेन के नियंत्रण वाले इलाकों में 27 मार्च के बाद से 12 से अधिक नागरिक मारे गए और 20,000 से अधिक विस्थापित हो गए.

संयुक्त राष्ट्र ने प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ हिंसा और लोगों की मौत की निंदा की

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने म्यांमार में शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे लोगों के खिलाफ हिंसा और सैकड़ों नागरिकों की मौत की निंदा की लेकिन एक फरवरी के तख्तापलट के बाद सेना के खिलाफ भविष्य में की जाने वाली भावी कार्रवाई की चेतावनी देने से परहेज किया.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी 15 सदस्यों के बीच बुधवार को शुरू हुई गहन चर्चा के बाद जारी बयान में म्यांमार में तेजी से बिगड़ती स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की गई और परिषद ने एक बार फिर सेना से अधिकतम संयम बरतने का आह्वान किया.

ब्रिटेन द्वारा तैयार की गई एक प्रेस विज्ञप्ति में यह जानकारी दी गई, जिसे सभी 15 सदस्यों ने मंजूरी दी है.

इस बीच, म्यांमार में सेना द्वारा तख्तापलट के दो महीने होने पर विभिन्न शहरों में लोगों ने बृहस्पतिवार को प्रदर्शन किया और लोकतंत्र को बहाल करने तथा हिरासत में लिए गए नेताओं को रिहा करने की मांग की.

म्यांमार में एक फरवरी को तख्तापलट के बाद सुरक्षा बलों ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ लगातार सख्त कार्रवाई की है. पश्चिमी देशों द्वारा सैन्य शासन के खिलाफ पाबंदी के बावजूद प्रदर्शनकारियों के खिलाफ गोलीबारी की घटनाएं जारी हैं.

देश के सबसे बड़े शहर यांगून में सूर्योदय के तुरंत बाद युवाओं के एक समूह ने प्रदर्शन में मारे गए 500 से ज्यादा लोगों की याद में शोक गीत गाए. इसके बाद उन्होंने जुंटा शासन के खिलाफ नारेबाजी की और अपदस्थ नेता आंग सान सू ची को रिहा करने तथा लोकतंत्र को बहाल करने की मांग करते हुए सड़कों पर प्रदर्शन किया.

बता दें कि बीते 1 फरवरी को सैन्य तख्तापलट के बाद से ही कई हफ्तों तक प्रदर्शन हुए और इसके जवाब में सेना ने घातक तरीके से उसे दबाने की कोशिश की.

म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद बीते 27 मार्च सबसे खून खराबे वाला दिन रहा. उस दिन सेना ने 114 लोगों की हत्या कर दी. 27 मार्च से पहले 14 मार्च सबसे हिंसक दिनों में से एक रहा था. इस दिन प्रदर्शनों के खिलाफ कार्रवाई में कम से कम 38 लोगों की मौत हुई.

गौरतलब है कि म्यांमार में सेना ने बीते एक फरवरी को तख्तापलट कर आंग सान सू ची और अन्य नेताओं को नजरबंद करते हुए देश की बागडोर अपने हाथ में ले ली थी.

म्यांमार की सेना ने एक साल के लिए देश का नियंत्रण अपने हाथ में लेते हुए कहा था कि उसने देश में नवंबर में हुए चुनावों में धोखाधड़ी की वजह से सत्ता कमांडर इन चीफ मिन आंग ह्लाइंग को सौंप दी है.

सेना का कहना है कि सू ची की निर्वाचित असैन्य सरकार को हटाने का एक कारण यह है कि वह व्यापक चुनावी अनियमितताओं के आरोपों की ठीक से जांच करने में विफल रहीं.

पिछले साल नवंबर में हुए चुनावों में सू ची की पार्टी ने संसद के निचले और ऊपरी सदन की कुल 476 सीटों में से 396 पर जीत दर्ज की थी, जो बहुमत के आंकड़े 322 से कहीं अधिक था, लेकिन 2008 में सेना द्वारा तैयार किए गए संविधान के तहत कुल सीटों में 25 प्रतिशत सीटें सेना को दी गई थीं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)