गृह मंत्रालय ने साल 2019-2020 में बीएसएफ द्वारा इस तरह की खोज का हवाला देते हुए पंजाब सरकार को एक पत्र भेजा है. हालांकि कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे किसानों इसकी निंदा की है. इनका कहना है कि उन्हें खालिस्तानी और आतंकवादी कहने के बाद केंद्र सरकार एक और सांप्रदायिक कार्ड खेल रही है.
नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पंजाब सरकार को एक पत्र भेजा है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि इसके सीमावर्ती क्षेत्रों में किसान प्रवासी और बंधुआ श्रमिकों को उनके खेतों में काम करने के लिए ड्रग्स दे रहे हैं, ताकि उनसे लंबे समय तक काम लिया जा सके.
मंत्रालय ने राज्य सरकार से कहा है कि वह इस मामले की जांच करे और प्राथमिकता पर की गई कार्रवाई के बारे में सूचित करे.
यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि ड्रग्स के किस प्रकार के बारे में कहा गया है, लेकिन संभवत: क्षमता बढ़ाने वाली दवाओं से मतलब हो सकता है, जिनमें से सबसे सामान्य स्टेरॉयड हैं.
गृह मंत्रालय के पत्र ने साल 2019-2020 में सीमा सुरक्षा बलों द्वारा इस तरह की खोज का हवाला दिया है. हालांकि, इस पत्र को प्रदर्शनकारी किसानों द्वारा उन्हें बदनाम करने के नरेंद्र मोदी सरकार के एक और प्रयास के रूप में देखा जा रहा है.
इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) दकौंडा के महासचिव और पिछले पांच महीने से केंद्र सरकार के तीन नए और विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन चला रहे अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के सदस्य जगमोहन सिंह ने कहा, ‘हमें खालिस्तानी और आतंकवादी कहने के बाद केंद्र सरकार एक और सांप्रदायिक कार्ड खेल रही है. गृह मंत्रालय के अनुसार यह सर्वेक्षण बीएसएफ द्वारा 2019-20 में किया गया था और यह आश्चर्यजनक है कि वे अब तक इस रिपोर्ट पर बैठे रहे और पंजाब सरकार को केवल तभी लिखा जब किसानों का आंदोलन अपने चरम पर है.’
गृह मंत्रालय से अपील करते हुए सिंह ने कहा, ‘हमारे मजदूरों के साथ हमारा एक अटूट रिश्ता है. वे हमारे और हमारे यूपी और बिहार के हिंदू प्रवासी श्रमिकों के बीच मतभेद पैदा करना चाहते हैं, जो हर साल राज्य भर में काम करने के लिए आते हैं. हम पंजाब के सीमावर्ती जिलों के (जिलाधिकारियों) से मिलेंगे और इस पत्र पर अपना गुस्सा व्यक्त करेंगे. हम प्रमाण के रूप में इन जिलों के क्षेत्रों में काम कर रहे प्रवासी श्रमिकों को पेश करेंगे.’
गृह मंत्रालय द्वारा 17 मार्च को राज्य के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को भेजे गए पत्र में कहा गया कि बीएसएफ के निष्कर्षों के अनुसार, पंजाब के सीमावर्ती जिलों से केंद्रीय बलों द्वारा 58 ऐसे मजदूरों को पकड़ा गया था. समाचार रिपोर्ट के अनुसार, पत्र में जिन स्थानों का उल्लेख किया गया है, वे गुरदासपुर, अमृतसर, फिरोजपुर और अबोहर थे.
पत्र में कहा गया, ‘पूछताछ के दौरान (मजदूरों के) यह उभर कर आया कि उनमें से ज्यादातर या तो मानसिक रूप से विकलांग थे या मन की दुर्बल अवस्था में थे और पंजाब के सीमावर्ती गांवों में किसानों के साथ बंधुआ मजदूर के रूप में काम कर रहे थे. बिहार और उत्तर प्रदेश के दूरदराज के इलाकों से आने वाले लोग गरीब परिवार की पृष्ठभूमि के हैं.’
इसमें आरोप लगाया गया कि मानव तस्करी सिंडिकेट ऐसे मजदूरों को उनके मूल स्थान से पंजाब में काम करने के लिए अच्छे वेतन के वादे पर काम पर लगाते हैं, लेकिन पंजाब पहुंचने के बाद उनका शोषण किया जाता है, उन्हें कम भुगतान किया जाता है और उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है.
इसके अनुसार, खेतों में उन्हें लंबे समय तक काम करने के लिए इन मजदूरों को अक्सर दवाएं दी जाती हैं, जो उनकी शारीरिक और मानसिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं. बीएसएफ आगे की कार्रवाई के लिए बचाए गए लोगों को राज्य पुलिस को सौंप रहा है.
एनडीटीवी के अनुसार, पत्र में पंजाब सरकार को बताया गया है कि यह समस्या बहुआयामी है और बहुत बड़ी है, क्योंकि इसमें मानव तस्करी, बंधुआ मजदूरी और मानव अधिकारों का उल्लंघन शामिल है.
इसने सरकार से अनुरोध किया कि वह इस गंभीर समस्या को दूर करने के लिए उचित कदम उठाए और मंत्रालय को कार्रवाई के बारे में प्राथमिकता से सूचित करे.
पंजाब के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने इंडियन एक्सप्रेस को पत्र की सामग्री की पुष्टि की, लेकिन उसमें उठाए गए मुद्दों से अनभिज्ञता जाहिर की. अधिकारी ने पत्र पर आश्चर्य व्यक्त किया और कहा कि राज्य पुलिस और बीएसएफ के बीच नियमित बैठकों के दौरान इस मुद्दे को कभी नहीं उठाया गया.
मामले पर जारी एक बयान में मोदी सरकार के पूर्व सहयोगी शिरोमणि अकाली दल के पूर्व सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने कहा कि गृह मंत्रालय के ऐसे पत्र भी देशभर में गलत संकेत भेजेंगे और टकराव का माहौल पैदा करेंगे.
प्रदेश भाजपा के सदस्य और पंजाब में किसान यूनियनों के प्रभारी हरजीत सिंह ग्रेवाल ने पत्र को विशुद्ध रूप से एक प्रशासनिक मामला बताया और इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि इस पर राजनीति करना सही नहीं है.
बता दें कि पंजाब के खेतों में हर साल करीब छह लाख प्रवासी मजदूर काम करते हैं, जो मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश और बिहार से आते हैं.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)