उत्तराखंड: फौजी के गुज़रने के क़रीब 70 वर्ष बाद पत्नी को उनकी पेंशन के लिए पात्र पाया गया

उत्तराखंड की रहने वालीं पारूली देवी के पति की मृत्यु साल 1952 में हुई थी. एक लंबी लड़ाई के बाद अब 81 वर्ष की उम्र में उन्हें उनके पति की पेंशन देने के लिए स्वीकृति प्रदान की गई है.

/

उत्तराखंड की रहने वालीं पारूली देवी के पति की मृत्यु साल 1952 में हुई थी. एक लंबी लड़ाई के बाद अब 81 वर्ष की उम्र में उन्हें उनके पति की पेंशन देने के लिए स्वीकृति प्रदान की गई है.

pension reuters
(प्रतीकात्मक तस्वीर: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: एक पूर्व फौजी की मृत्यु के क़रीब 70 वर्ष बाद उनकी 81 वर्षीय पत्नी को पेंशन मिलने का मामला सामने आया है. पति के निधन के वक्त उनकी उम्र महज 12 साल थी.

अस्सी से ज्यादा बसंत देख चुकीं पूर्व फौजी की पत्नी को यह सफलता सामाजिक कार्यकर्ता डीएस भंडारी की मदद की वजह से मिल सकी, जिन्होंने उनकी तकलीफों को देखने के बाद उनके लिए कुछ करने का निर्णय किया.

जब भंडारी को यह पता चला कि पारूली देवी के पति की मृत्यु सेवा में रहते हुए एक दुर्घटना में हुई थी और वह पारिवारिक पेंशन पाने की हकदार हैं तो उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव कदम उठाया कि उन्हें इसका लाभ मिले.

सात वर्ष पूर्व सेवानिवृत्त होने के बाद से सामाजिक सेवा में लगे भंडारी ने बताया कि 14 जून, 1952 में पति की मृत्यु के बाद से अपने भाइयों के साथ उत्तराखंड के लिंथुरा गांव में रह रहीं पारूली देवी के बारे में जब उन्हें पता चला तो वह खुद को उनकी मदद करने से नहीं रोक पाए .

उन्होंने बताया कि देवी के पति गगन सिंह की दुर्घटना में तब मृत्यु हो गई थी जब वह सेवारत थे.

 टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, सैनिक ने आत्महत्या कर लिया था. उस समय देवी की शादी को दो महीने बीते थे.

भंडारी ने बताया कि पूछताछ करने पर पता चला कि पारूली देवी भारत सरकार की पूर्व सैनिक पारिवारिक पेंशन स्कीम के तहत पेंशन पाने की हकदार हैं.

उन्होंने कहा ये मामला काफी पेचीदा था, क्योंकि उनके पति की मौत न तो सेना में लड़ते हुए नहीं हुई थी और न ही ये प्राकृतिक मौत थी.

भंडारी ने कहा, ‘लेकिन जुलाई 1977 में एक महिला ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस बात को चुनौती दी थी कि सिर्फ युद्ध विधावाओं को ही पेंशन मिल सकती है. साल 1985 में जज ने उनके पक्ष में फैसला दिया. इस आधार पर मैंने मामले को इलाहाबाद के रक्षा लेखा महानियंत्रक और कुमाऊं रेजिमेंट सेंटर में दायर किया. सात साल की मेहनत के बाद उन्होंने हमारे दावे को स्वीकार किया है.’

उन्होंने बताया कि रक्षा सेवाओं के मुख्य नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के इलाहाबाद कार्यालय ने आखिरकार उनकी पेंशन सितंबर 1977 से स्वीकृत कर दी जिसके बाद पारूली देवी को कुल 20 लाख रुपए मिलेंगे.

इस बारे में संपर्क करने पर पारूली देवी ने कहा, ‘मुझे पैसे की जरूरत नहीं है. लेकिन सरकार ने मेरे पति और मुझे पहचान दी, यह मेरे लिए बहुत संतोष की बात है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)