राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित और साल 2016 में भारत की ओर से ऑस्कर में भेजी गई मराठी फिल्म ‘कोर्ट’ के मुख्य अभिनेता वीरा साथीदार को पिछले हफ्ते कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद अस्पताल में भर्ती करवाया गया था, जहां मंगलवार सुबह उनका देहांत हो गया.
नागपुर: अभिनेता-कार्यकर्ता वीरा साथीदार की कोविड-19 संबंधी समस्याओं के चलते मंगलवार को निधन हो गया. उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म ‘कोर्ट’ में यादगार अभिनय के लिए जाना जाता है.
साथीदार (62) को कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नागपुर में भर्ती कराया गया था.
अस्पताल के एक अधिकारी ने बताया कि अभिनेता को पिछले सप्ताह अस्पताल में भर्ती कराया गया था और मंगलवार तड़के तीन बजकर 42 मिनट पर उन्होंने अंतिम सांस ली.
फिल्म ‘कोर्ट’ का निर्देशन करने वाले चैतन्य तम्हाणे के मुताबिक, अभिनेता को अस्पताल में वेंटिलेटर पर रखा गया था.
तम्हाणे ने बताया, ‘वे वेंटिलेटर पर थे. यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण खबर है. इस पर विश्वास करना मुश्किल है कि वह अब नहीं रहें. वे न सिर्फ अभिनेता, कार्यकर्ता और एक कवि थे, बल्कि एक बेहतरीन इंसान भी थे.’
‘कोर्ट’ फिल्म में उनकी भूमिका एक क्रांतिकारी गायक नारायण कांबले की थी, जिस पर उसके एक लोक गीत के जरिये एक सफाईकर्मी को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया जाता है.
इस फिल्म को राष्टीय फिल्म पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था, साथ ही साल 2016 में ऑस्कर पुरस्कारों के लिए भारत की ओर से आधिकारिक प्रविष्टि थी. इस फिल्म के अलावा उन्होंने दो और लघु फिल्मों में काम किया था.
वीरा न केवल फिल्मों में काम किया करते थे बल्कि एक लेखक, कवि, विचारक, सामाजिक कार्यकर्ता व पत्रकार के तौर पर भी जाने जाते थे. उनकी रुचि लोक संगीत, गीत लिखने समेत कला के विभिन्न क्षेत्रों में थी.
वर्धा जिले के जोगीनगर में पैदा हुए वीरा के पिता नागपुर रेलवे स्टेशन पर कुली का काम करते थे वहीं उनकी मां मजदूर थीं. उन्होंने कई साल पत्रकार और गीतकार के रूप में भी काम किया था.
वीरा आंबेडकर को मानने वालों में से थे और दलित आंदोलनों में खासे सक्रिय रहते थे. आंबेडकर की विचारधारा से प्रभावित वीरा ने दलितों के उत्थान और उनकी चेतना संबंधित कई गीत लिखे और गाए थे. उन्होंने दलित चेतना से जुड़ी पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया.
साल 2019 में दिल्ली में आंबेडकर जयंती के अवसर पर हुए एक कार्यक्रम के दौरान द वायर से बातचीत में उन्होंने कहा था कि देश में इस समय जब जाति पर और आंबेडकर के नाम पर इतनी राजनीति हो रही हो तो ऐसे में आंबेडकर को और उनके विचारों को लोगों के सामने रखने की बहुत जरूरत है.
उनका कहना था, ‘ऐसे समय में मीडिया की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है. लेकिन मेनस्ट्रीम मीडिया तो पूरा बिक चुका है. उसके पास ऐसे मुद्दे उठाने का कोई समय नहीं है. ऑल्टरनेटिव मीडिया (वैकल्पिक मीडिया) के भरोसे ही बहुत-सी बातें लोगों के सामने आ पाती हैं. भीमा कोरेगांव प्रकरण में जस्टिस चंद्रचूड़ का एक डिसेंट जजमेंट है जो किसी भी लोकतंत्र में बहुत महत्वपूर्ण है. इस तरह के प्रतिरोध वाले फैसलों को भी लोगों तक पहुंचाने की जरूरत है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)