केरल में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी केरल मिनरल्स एंड मेटल्स लिमिटेड में ग्रेजुएट इंजीनियर ट्रेनी के रूप में कार्यरत एक महिला ने कंपनी में सेफ्टी ऑफिसर के स्थायी पद के आवेदन के लिए जारी अधिसूचना को चुनौती दी थी. अधिसूचना में सिर्फ़ पुरुषों को ही इसके लिए आवेदन की अनुमति दी गई थी. हाईकोर्ट ने इस अधिसूचना को रद्द कर दिया है.
तिरुवनंतपुरमः केरल हाईकोर्ट का कहना है कि पूरी तरह से योग्य महिला को इस आधार पर रोजगार से वंचित नहीं रखा जा सकता कि वह महिला है और रोजगार की प्रकृति के अनुरूप उसे रात के समय काम करना पड़ेगा.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस अनु शिवरामन ने कहा कि रोजगार के लिए योग्य महिला को रोजगार के लिए महिला के समक्ष सुरक्षात्मक प्रावधान खड़े नहीं किए जाने चाहिए.
अदालत ने केरल मिनरल्स एंड मेटल्स लिमिटेड द्वारा रोजगार के लिए जारी अधिसूचना को रद्द कर दिया, जिसमें सिर्फ पुरुष उम्मीदवारों को पद के लिए आवेदन देने की अनुमति दी गई थी.
अदालत ने कहा कि इस तरह की अधिसूचना भारतीय संविधान के अऩुच्छेद 14, 15 और 16 के प्रावधानों का उल्लंघन है.
अदालत ने कहा, ‘यह सरकार और सरकारी अधिकारियों का कर्तव्य है कि वे सभी उचित कदम उठाकर यह सुनिश्चित करें कि किसी महिला को सौंपे गए काम को वह सुरक्षित और सुविधाजनक तरीके से पूरा करे. अगर ऐसा है तो सिर्फ इस आधार पर किसी योग्य महिला को नियुक्त करने से इनकार नहीं किया जा सकता कि वह एक महिला है और रोजगार की प्रकृति की वजह से उसे रात के समय काम करना पड़ेगा.’
सेफ्टी एंड फायर इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट ट्रेजा जोसफीन केरल के सार्वजनिक क्षेत्र में केरल मिनरल्स एंड मेटल्स लिमिटेड में ग्रेजुएट इंजीनियर ट्रेनी के रूप में कार्यरत हैं.
ट्रेजा ने कंपनी में सेफ्टी ऑफिसर के स्थायी पद के आवेदन के लिए जारी अधिसूचना को चुनौती दी थी.
दरअसल इस अधिसूचना में कहा गया था कि सिर्फ पुरुष उम्मीदवार ही इस पद के लिए आवेदन कर सकते हैं.
याचिकाकर्ता (ट्रेजा) ने अधिसूचना को चुनौती देते हुए कहा था कि यह भेदभावपूर्ण है और इस तरह के प्रावधानों की वजह से सेफ्टी ऑफिसर के रूप में उनकी नियुक्ति का उल्लंघन करते हैं.
उन्होंने अदालत से अनुरोध किया था कि फैक्ट्रीज एक्ट 1948 की धारा 66 (1) (बी) को असंवैधानिक घोषित करें, क्योंकि यह संविधान की धारा 14, 15 और 16 का उल्लंघन करते हैं, क्योंकि इन प्रावधानों के तहत किसी भी महिला को सुबह छह बजे से रात सात बजे तक ही फैक्ट्री में काम करने की इजाजत है.
हालांकि, अदालत ने अपने फैसले में पूर्व के कई फैसलों का उल्लेख किया है, जिनमें कहा गया का फैक्ट्रीज एक्ट 1948 की धारा 66 (1) (बी) के प्रावधान लाभप्रद हैं और महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने के लिए हैं.
अदालत ने कहा, ‘अब हम एक ऐसे मुकाम पर पहुंच गए हैं, जहां आर्थिक विकास के क्षेत्र में महिलाओं के योगदान को किसी भी क्षेत्र द्वारा नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. महिलाओं को हेल्थकेयर, एविएशन और सूचना प्रौद्योगिकी सहित कई उद्योगों में सभी समय पर काम करने के लिए लगाया जा रहा है. कई पेशों में तो चौबीस घंटे काम करने की जरूरत होती है, लेकिन इस तरह की चुनौतियों का सामना कर महिलाओं ने यह साबित किया है कि वे हर समय किसी भी तरह का कार्य करने में सक्षम हैं.’
अदालत ने रक्षा मंत्रालय के सचिव बनाम बबीता पुनिया और अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले का भी जिक्र किया कि कमांड नियुक्ति की मांग करने वाली महिलाओं का पूर्ण बहिष्कार करना संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता की गारंटी का उल्लंघन है.
अदालत ने जिक्र किया कि रूढ़िवादिता के आधार पर तर्क पेश करने और सामाजिक मान्यताओं के आधार पर महिलाओं को आंकना उनके खिलाफ लैंगिक भेदभाव और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.
अदालत ने कहा, ‘मौजूदा परिदृश्य में यह कहना कि ग्रेजुएट इंजीनियर को पीएसयू (सरकारी उपक्रम) में सेफ्टी ऑफिसर के रूप में नियुक्ति के लिए फैक्ट्रीज अधिनियम की धारा 66 (1) (बी) के तहत विचार नहीं किया जा सकता, मेरे अनुसार यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है और स्पष्ट है कि केरल ने नियमों में संशोधन को मंजूरी दी है, जो इस शर्त पर महिलाओं को नौकरी की अनुमति देता है कि फैक्ट्री के मालिक द्वारा इस तरह के रोजगार के लिए सभी सुरक्षा सावधानियों की व्यवस्था की जाएगी.’
अदालत ने कहा, ‘केवल इस आधार पर योग्य महिला को नियुक्ति देने से इनकार नहीं किया जा सकता कि वह एक महिला है और रोजगार की प्रकृति के लिए उसे रात के समय काम करने की जरूरत होगी, इसलिए मैं यह मानती हूं कि अधिसूचना के अनुरूप केवल पुरुष उम्मीदवार ही आवेदन कर सकते हैं, यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के प्रावधानों का उल्लंघन है. इसलिए मैं इस अधिसूचना के प्रावधान को पलट रही हूं.’