पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का यह रुख़ ऐसे रिश्तों को मान्यता देने वाले उच्चतम न्यायालय के रुख़ से अलग है. उच्चतम न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने मई 2018 में कहा था कि वयस्क जोड़े को शादी के बगैर भी साथ रहने का अधिकार है. न्यायालय ने कहा था कि एक महिला चुन सकती है कि वह किसके साथ रहना चाहती है.
चंडीगढ़: पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने सुरक्षा की मांग करने वाले एक युवक-युवती द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप नैतिक और सामाजिक रूप से अस्वीकार्य है.
हालांकि उच्च न्यायालय का यह रुख ऐसे रिश्तों को मान्यता देने वाले उच्चतम न्यायालय के रुख से अलग है.
याचिकाकर्ता 19 वर्षीय युवती और 22 साल के युवक ने याचिका में कहा कि वे एक साथ रह रहे हैं और जल्द ही शादी करना चाहते हैं.
उन्होंने कुमारी के माता-पिता से अपनी जान को खतरा होने की आशंका जताई थी.
जस्टिस एचएस मदान ने अपने 11 मई के आदेश में कहा, ‘वास्तव में याचिकाकर्ता वर्तमान याचिका दायर करने की आड़ में अपने लिव-इन रिलेशनशिप पर अनुमोदन की मुहर की मांग कर रहे हैं, जो नैतिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं है और याचिका में कोई सुरक्षा आदेश पारित नहीं किया जा सकता है. तदनुसार याचिका खारिज की जाती है.’
याचिकाकर्ता के वकील जेएस ठाकुर के अनुसार, दोनों तरनतारन जिले में एक साथ रह रहे हैं. उन्होंने कहा कि लड़की के माता-पिता ने उनके रिश्ते को स्वीकार नहीं किया, जो लुधियाना में रहते हैं.
ठाकुर ने कहा कि दोनों की शादी नहीं हो सकी, क्योंकि युवती के दस्तावेज, जिसमें उसकी उम्र का विवरण है, उसके परिवार के पास हैं.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, याचिकाकर्ता दंपति ने अपने वकील के माध्यम से कहा था कि वे पिछले चार साल से रिश्ते में हैं. हालांकि महिला के परिजन उनके अंतर्जातीय विवाह का विरोध कर रहे थे. अपने जीवन और स्वतंत्रता के लिए खतरा होने के डर से वे अपने घर से भाग गए थे. उन्होंने अपनी शादी को आगे बढ़ाने के लिए अदालत से सुरक्षा मांगी थी.
याचिकाकर्ताओं ने अदालत को बताया कि महिला के परिवार के सदस्यों द्वारा धमकी दिए जाने के बाद उन्होंने अप्रैल में पंजाब पुलिस के संबंधित एसएसपी को ईमेल के माध्यम से एक आवेदन दिया था. चूंकि उन्हें लगातार धमकियां मिल रही थीं, इसलिए उन्होंने संरक्षण और सुरक्षा के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया.
इस मामले में पूर्व में उच्चतम न्यायालय ने हालांकि अलग नजरिया अख्तियार किया था.
उच्चतम न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने मई 2018 में कहा था कि वयस्क जोड़े को शादी के बगैर भी साथ रहने का अधिकार है.
न्यायालय ने यह केरल की 20 वर्षीय एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि वह चुन सकती है कि वह किसके साथ रहना चाहती है. उसके विवाह को अमान्य कर दिया गया था.
शीर्ष अदालत ने कहा था कि लिव-इन रिलेशनशिप को अब विधायिका द्वारा भी मान्यता दी गई है और घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 के प्रावधानों में भी इसे स्थान दिया गया था.
अभिनेत्री एस. खुशबू द्वारा दायर एक अन्य ऐतिहासिक मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि लिव-इन रिलेशनशिप स्वीकार्य हैं और दो वयस्कों के साथ रहने को अवैध या गैरकानूनी नहीं माना जा सकता.
उसने कहा, ‘यह सच है कि हमारे समाज में मुख्यधारा का नजरिया यह है कि यौन संबंध सिर्फ वैवाहिक भागीदारों में बनना चाहिए, हालांकि वयस्कों के स्वेच्छा से वैवाहिक दायरे से बाहर यौन संबंध बनाने से कोई वैधानिक अपराध नहीं होता है, उस अपवाद को छोड़कर जिसे आईपीसी की धारा 497 के तहत ‘व्यभिचार’ के तौर पर परिभाषित किया गया है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)