इससे पहले पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की ही दो अन्य पीठों ने लिव-इन रिलेशनशिप के ख़िलाफ़ फैसला दिया था और प्रेमी जोड़े को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि इस तरह के संबंध सामाजिक और नैतिक रूप से स्वीकार्य नहीं हैं.
नई दिल्ली: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि किसी भी व्यक्ति को अपने पार्टनर के साथ शादी करके या लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का अधिकार है.
बीते मंगलवार को जारी आदेश में न्यायालय ने कहा कि जो भी व्यक्ति लिव-इन रिलेशनशिप का रास्ता अपनाता है, उसे अन्य नागरिकों की तरह कानून का बराबर संरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए.
लाइव लॉ के मुताबिक जस्टिस सुधीर मित्तल की पीठ ने एक लिव-इन रिलेशनशिप मामले की सुनवाई के दौरान ये निर्देश जारी किए.
कोर्ट ने कहा कि समाज में लिव-इन रिलेशनशिप की स्वीकार्यता बढ़ रही है. उन्होंने कहा, ‘कानून में इस तरह के संबंध पर कोई प्रतिबंध नहीं है और न ही यह कोई अपराध है. ऐसे लोगों को अन्य नागरिकों की तरह ही कानून का बराबर संरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए.’
इसके साथ ही हाईकोर्ट ने कहा, ‘संवैधानिक कोर्ट इस जोड़े को सुरक्षा प्रदान करती है, जिन्होंने अपने परिजनों की इच्छा के विरुद्ध शादी की है. उन्होंने मांग की है कि उनके माता-पिता और घर के अन्य सदस्यों से उनकी रक्षा की जाए, जिन्होंने उनकी शादी को स्वीकार नहीं की है.’
"Social acceptance for live-in-relationships increasing. In law, such a relationship is not prohibited nor does it amount to commission of any offence. Such persons are entitled to equal protection of laws as any other citizen." : #PunjabAndHarayanaHighCourt pic.twitter.com/LqPyF4evfW
— Live Law (@LiveLawIndia) May 20, 2021
कोर्ट ने कहा कि दोनों ने सहमति से लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का निर्णय लिया है. यदि इसे हर कोई स्वीकार नहीं करता है तो क्या इससे कोई फर्क पड़ना चाहिए?
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि भारत के संविधान में जीवन एवं स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है और इसी अधिकार में यह भी शामिल है कि एक व्यक्ति अपनी इच्छा और पसंद के अनुसार अपना पार्टनर चुन सके.
न्यायालय ने कहा कि भले ही लिव-इन रिलेशनशिप का विचार पश्चिमी देशों से आया है, लेकिन धीरे-धीरे करके भारत में इसकी स्वीकार्यता बढ़ रही है.
मालूम हो कि हाल ही में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की दो अन्य पीठों ने लिव-इन रिलेशनशिप के खिलाफ फैसला दिया था और प्रेमी जोड़े को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि इस तरह के संबंध सामाजिक और रूप से स्वीकार्य नहीं हैं.
जस्टिस एचएस मदान ने अपने 11 मई के आदेश में कहा था, ‘वास्तव में याचिकाकर्ता वर्तमान याचिका दायर करने की आड़ में अपने लिव-इन रिलेशनशिप पर अनुमोदन की मुहर की मांग कर रहे हैं, जो नैतिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं है और याचिका में कोई सुरक्षा आदेश पारित नहीं किया जा सकता है. तदनुसार याचिका खारिज की जाती है.’
वहीं एक अन्य मामले में जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल की पीठ ने कहा था कि यदि लड़का और लड़की को लिव-इन रिलेशनशिप में रहने की इजाजत दी जाती है तो इससे सामाजिक ताना-बाना बिगड़ जाएगा.
मालूम हो कि उच्चतम न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने मई 2018 में कहा था कि वयस्क जोड़े को शादी के बगैर भी साथ रहने का अधिकार है.
न्यायालय ने यह केरल की 20 वर्षीय एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि वह किसके साथ रहना चाहती हैं, इसका फैसला वो खुद कर सकती हैं. उनके विवाह को अमान्य कर दिया गया था.
शीर्ष अदालत ने कहा था कि लिव-इन रिलेशनशिप को अब विधायिका द्वारा भी मान्यता दी गई है और घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 के प्रावधानों में भी इसे स्थान दिया गया है.
अभिनेत्री एस. खुशबू द्वारा दायर एक अन्य ऐतिहासिक मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि लिव-इन रिलेशनशिप स्वीकार्य है और दो वयस्कों के साथ रहने को अवैध या गैरकानूनी नहीं माना जा सकता.
उसने कहा था, ‘यह सच है कि हमारे समाज में मुख्यधारा का नजरिया यह है कि यौन संबंध सिर्फ वैवाहिक भागीदारों में बनना चाहिए, हालांकि वयस्कों के स्वेच्छा से वैवाहिक दायरे से बाहर यौन संबंध बनाने से कोई वैधानिक अपराध नहीं होता है, उस अपवाद को छोड़कर जिसे आईपीसी की धारा 497 के तहत ‘व्यभिचार’ के तौर पर परिभाषित किया गया है.’