तहलका के पूर्व संपादक तरुण तेजपाल को यौन उत्पीड़न के आरोपों से बरी करने के फ़ैसले पर महिला पत्रकारों के संगठनों और कार्यकर्ताओं ने मामले की सर्वाइवर के साथ एकजुटता जताई है. एक संगठन ने कहा कि यह मामला शक्ति के असंतुलन का प्रतीक है जहां महिलाओं की शिकायतों पर निष्पक्षता से सुनवाई नहीं होती.
नई दिल्ली: बीते शुक्रवार को तहलका के पूर्व संपादक तेजपाल को गोवा की एक सत्र अदालत ने यौन उत्पीड़न के आरोपों से बरी कर दिया. तेजपाल पर उनकी एक महिला सहयोगी ने गोवा में एक होटल की लिफ्ट में यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे.
अदालत के इस फैसले को लेकर महिला कार्यकर्ताओं और महिला पत्रकारों के संगठनों ने निराशा जाहिर की है और मामले की सर्वाइवर के साथ एकजुटता जताई है.
इंडियन वुमन प्रेस कोर (आईडब्ल्यूपीसी) ने शनिवार को जारी एक बयान में कहा कि यौन उत्पीड़न के मामले में पत्रकार तरुण तेजपाल को बरी करने का फैसला निराशाजनक है और महिलाओं के लिए न्याय पाने की लड़ाई कठिन हो गई है.
महिला पत्रकारों के संगठन ने मामले में गोवा सरकार द्वारा फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील दाखिल करने के फैसले का स्वागत किया.
आईडब्ल्यूपीसी ने कहा, ‘आईडब्ल्यूपीसी पीड़िता और घटना को लेकर उसके दृष्टिकोण के साथ है. संगठन सत्र अदालत के फैसले के खिलाफ अपील करने के गोवा सरकार के निर्णय का स्वागत करता है.’
आईडब्ल्यूपीसी ने कहा कि युवा महिला पत्रकार ने अपने संपादक के खिलाफ सामने आकर बड़ी हिम्मत दिखाई और पुरुषों के पक्ष में झुकी व्यवस्था में सात साल से अधिक समय तक अथक लड़ाई लड़ती रही.
संगठन ने कहा कि यह मामला और जिस तरह से सुनवाई हुई, वह शक्ति के असंतुलन का प्रतीक है जहां महिलाओं की शिकायतों पर निष्पक्षता से सुनवाई नहीं होती.
आईडब्ल्यूपीसी ने बयान में कहा, ‘तेजपाल को बरी किए जाने से महिलाओं के लिए न्याय पाने की लड़ाई और कठिन हो गई है.’
नेटवर्क ऑफ विमेन इन मीडिया, इंडिया (एनडब्ल्यूएमआई) ने भी इस मामले की सर्वाइवर के साथ समर्थन जताते हुए बयान जारी किया है.
अदालत का यह निर्णय इसलिए भी चौंकाने वाला है क्योंकि 2013 में इस घटना के बाद उस समय पत्रिका के संपादक तरुण तेजपाल ने इस घटना की जिम्मेदारी लेते हुए सर्वाइवर और उनके बाकी सहकर्मियों को ईमेल किया था, जहां उन्होंने माफी मांगी थी.
एनडब्ल्यूएमआई ने कहा कि यह अदालती लड़ाई सर्वाइवर के लिए बेहद कठिन रही है. बयान में कहा गया, ‘सर्वाइवर और उनके परिवार के लिए साढ़े सात साल यात्रा बेहद लंबी और कठिन रही है, जहां काम और जिंदगी से जुड़े मसलों से जूझते हुए साक्ष्य देने लगातार गोवा जाना पड़ता था. भीषण दबाव और सोशल मीडिया और अन्य जगहों से मिल रही प्रतिक्रियाओं के बीच वे दृढ़ बनी रहीं.’
आगे कहा गया है, ‘उनका संघर्ष हर उस महिला की लड़ाई जैसा ही है जिसने काम करने की जगह पर यौन उत्पीड़न या यौन हिंसा का सामना किया और मीडिया में प्रभावी पुरुषों की असंतुलित ताकत को चुनौती दी. इस घटना ने न्यूज़रूम में होने वाली चर्चा में जेंडर के आधार पर लांघी जा रही सीमाओं को समझने में मदद की और महिलाओं को हिम्मत दी कि वे शर्म का चोला उतारकर कार्यस्थल पर होने वाले उत्पीड़न और हिंसा के बारे में आवाज़ उठाएं.’
महिला पत्रकारों के इस संगठन ने मीडिया में ऐसी घटनाओं से निपटने की चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया और अपर्याप्त तरीकों को लेकर भी सवाल उठाए हैं.
इससे पहले शुक्रवार को यह फैसला आने के बाद विभिन्न महिला अधिकार समूहों ने कहा कि गोवा की अदालत का यह निर्णय अन्य महिलाओं को आगे आकर यौन उत्पीड़न तथा प्रताड़ना के मामले दर्ज कराने से रोक सकता है.
कुछ कार्यकर्ताओं ने कहा कि तेजपाल ने खुद महिला के उत्पीड़न के प्रयास की बात स्वीकार करते हुए माफी मांगी थी. उन्होंने कहा कि यह निर्णय निराशाजनक और हतोत्साहित करने वाला है.
ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वुमेन्स एसोसिएशन की सचिव कविता कृष्णन ने कहा कि न्याय प्रणाली ने एक और महिला को नीचा दिखा दिया.
उन्होंने ट्वीट किया, ‘न्याय प्रणाली ने एक और महिला को नीचा दिखा दिया. इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि महिलाएं पुलिस में क्यों शिकायत दर्ज नहीं कराना चाहतीं.’
उन्होंने कहा कि तेजपाल ने वारदात को स्वीकारते हुए कई बार माफी मांगी है. एक बार फिर एक पीड़ित को अपमानित और निराश किया गया.
The hell of being yanked around by police, courts, repeatedly to Goa. The hell of having this case tied to her neck like an albatross. The hell of systematic slander campaigns against her by TT & Friends. Her integrity being smeared in court and in social parties.
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) May 21, 2021
महिला अधिकार कार्यकर्ता तथा साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ अकांचा श्रीवास्तव ने कहा कि तेजपाल ने खुद महिला के उत्पीड़न के प्रयास की बात कबूल की थी.
उन्होंने कहा, ‘आधे से अधिक मामले अदालत तक भी नहीं जा पाते और जो चले भी जाते हैं, उनमें इस तरह के बेहद हतोत्साहित कर देने वाले निर्णय आते हैं. जब एक व्यक्ति खुद ही यह स्वीकार कर चुका है कि उसने बदसलूकी की थी तो उसे किस आधार पर बरी किया गया. यदि वह कह रहा है कि उसने ऐसा किया है, तो किया ही होगा.’
श्रीवास्तव ने कहा, ‘जब हम इस तरह की मिसाल कायम करते हैं तो हम अन्य पीड़ितों को आगे आकर मामला दर्ज कराने और कानूनी लड़ाई लड़ने से रोक देते हैं.’
भारतीय सामाजिक जागृतिक संगठन की छवि मेठी ने कहा कि निर्णय निराशाजनक है. उन्होंने कहा, ‘यह निराशाजनक है क्योंकि इसने यह मिसाल कायम की है कि जो शक्तिशाली है वह अपनी करतूतों की सजा पाए बिना बच निकल सकता है.’
मानवाधिकार वकील शिल्पी जैन ने संशोधित कानून के बारे में बात करते हुए कहा कि नए कानून के मुताबिक यौन संबंध के अलावा यौन उत्पीड़न के अन्य मामले भी बलात्कार के दायरे में आते हैं.
उन्होंने कहा, ‘तेजपाल का मामला भी कानून (भा.दं.सं. की धारा 376) की विस्तृत व्याख्या के तहत आता है. इस नए कानून की वजह से हमारे सामने तरुण तेजपाल के मामले जैसे कई मामले सामने आएंगे, जो कहीं खत्म नहीं होंगे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)