तरुण तेजपाल फ़ैसला पूर्वाग्रह और पितृसत्ता के रंग में रंगा हुआ है: गोवा सरकार

एक सत्र अदालत द्वारा पत्रकार तरुण तेजपाल को महिला सहयोगी के यौन उत्पीड़न के आरोपों से बरी करने को गोवा सरकार ने हाईकोर्ट में चुनौती दी है. सरकार ने कहा कि मामले में दोबारा सुनवाई इसलिए हो क्योंकि जज ने पूछताछ के दौरान शिकायतकर्ता से निंदनीय, असंगत और अपमानजनक सवाल पूछने की मंज़ूरी दी.

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तरुण तेजपाल. (फाइल फोटो: पीटीआई)

एक सत्र अदालत द्वारा पत्रकार तरुण तेजपाल को महिला सहयोगी के यौन उत्पीड़न के आरोपों से बरी करने को गोवा सरकार ने हाईकोर्ट में चुनौती दी है. सरकार ने कहा कि मामले में दोबारा सुनवाई इसलिए हो क्योंकि जज ने पूछताछ के दौरान शिकायतकर्ता से निंदनीय, असंगत और अपमानजनक सवाल पूछने की मंज़ूरी दी.

तरुण तेजपाल. (फाइल फोटो: पीटीआई)
तरुण तेजपाल. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्लीः यौन उत्पीड़न मामले में तहलका पत्रिका के पूर्व संपादक तरुण तेजपाल को बरी करने के सत्र अदालत के फैसले के खिलाफ गोवा सरकार ने हाईकोर्ट में अपील करते हुए कहा कि इस मामले में निचली अदालत में बलात्कार पीड़िता के ट्रॉमा को समझने की कमी का अभाव था.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, गोवा सरकार ने सत्र अदालत के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करते हुए कहा है कि शिकायतकर्ता का यौन इतिहास आरोपी के बरी होने का कानूनी आधार नहीं बन सकता, विशेष रूप से जब आरोपी पर समान मानक लागू नहीं होते.

सरकार ने कहा कि इस मामले में दोबारा सुनवाई का मामला इसलिए बनता है क्योंकि जज ने पूछताछ के दौरान शिकायतकर्ता से निंदनीय, असंगत और अपमानजनक सवाल पूछने की मंजूरी दी.

527 पेज के फैसले में पीड़िता के सबूतों के कई ऐसे हिस्सों का इस्तेमाल किया गया है, जो भारतीय साक्ष्य अधिनियम के विपरीत हैं और इन्हें स्वीकार्य नहीं किया जाना चाहिए.

‘निचली अदालत का 527 पेज का फैसला बाहरी अस्वीकार्य सामग्री और गवाही, पीड़िता के यौन इतिहास के ग्राफिक विवरण से प्रभावित था और इसका इस्तेमाल पीड़िता के चरित्र की निंदा करने और उसके सबूतों को तूल नहीं देने के उद्देश्य से किया गया. यह पूरा फैसला आरोपी की भूमिका का पता लगाने की कोशिश करने के बजाए शिकायतकर्ता की गवाही पर दोष मढ़ने से रहा.’

‘निचली अदालत का फैसला अव्यवहार्य और पूर्वाग्रह एवं पितृसत्ता के रंग में रंगा था. प्रॉसिक्यूशन गवाह 11 (अभियोजन पक्ष के गवाह), 12 और 56 सबसे स्वाभाविक गवाह थे, जिस पर अभियोक्ता विश्वास कर सकती थी क्योंकि वे उसके सर्वाधिक विश्वासपात्र और सबसे करीबी सहयोगी और दोस्त थे, जैसा कि उसने बार-बार बयान में कहा.’

इससे पहले द वायर  ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि 27 मई को सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा पीठ ने सत्र अदालत को निर्देश दिया था कि तेजपाल के मामले में अपने फैसले में अदालत उन सभी संदर्भों को हटाए, जिससे पीड़िता की पहचान उजागर हो. इनमें पीड़िता का ईमेल एड्रेस और उनके परिवार के सदस्यों का नाम शामिल है.

बता दें कि सत्र न्यायाधीश जज क्षमा जोशी ने 21 मई के फैसले में तरुण तेजपाल को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था.

उन पर 2013 में गोवा के पांच सितारा होटल की लिफ्ट में अपनी सहकर्मी का यौन शोषण करने का आरोप था. यह घटना तब की है जब वह एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए गोवा गए थे.

सत्र अदालत ने तेजपाल को बरी करते हुए पीड़िता के आचरण पर सवाल उठाते हुए कहा था कि उनके बर्ताव में ऐसा कुछ नहीं दिखा जिससे लगे कि वह यौन शोषण की पीड़िता हैं.

गोवा की एक निचली अदालत ने पत्रकार तरुण तेजपाल को यौन उत्पीड़न के मामले में बरी करते हुए संदेह का लाभ देते हुए कहा था कि शिकायतकर्ता महिला द्वारा लगाए गए आरोपों के समर्थन में कोई सबूत मौजूद नहीं हैं.

फैसले में कहा गया कि सर्वाइवर ने ‘ऐसा कोई भी मानक व्यवहार’ प्रदर्शित नहीं किया, जैसा ‘यौन उत्पीड़न की कोई पीड़ित करती’ हैं.

यह कहते हुए कि इस बात का कोई मेडिकल प्रमाण नहीं है और शिकायतकर्ता की ‘सच्चाई पर संदेह पैदा करने’ वाले ‘तथ्य’ मौजूद हैं, अदालत के आदेश में कहा गया कि महिला द्वारा आरोपी को भेजे गए मैसेज ‘यह स्पष्ट रूप से स्थापित’ करते हैं कि न ही उन्हें कोई आघात पहुंचा था न ही वह डरी हुई थीं, और यह अभियोजन पक्ष के मामले को ‘पूरी तरह से झुठलाता है.’

जज ने उस माफीनामे वाले ईमेल की भी अवहेलना की, जिसे तेजपाल ने घटना के बाद पीड़िता को भेजा था और कहा कि ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया था.

 

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