पत्रकार तरुण तेजपाल को महिला सहयोगी के यौन उत्पीड़न के आरोपों से बरी करने के फ़ैसले को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट ने सत्र अदालत को नोटिस भेजा है. हाईकोर्ट ने कहा कि सत्र अदालत का निर्णय रेप पीड़िताओं के लिए मैनुअल जैसा है जहां यह बताया गया है कि ऐसे मामलों में एक पीड़िता को कैसी प्रतिक्रिया देनी चाहिए.
पणजी: बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा पीठ ने बुधवार को कहा कि 2013 के बलात्कार मामले में पत्रकार तरुण तेजपाल को बरी करने का सत्र अदालत का फैसला ‘बलात्कार पीड़िताओं के लिए एक नियम पुस्तिका’ जैसा है क्योंकि इसमें यह बताया गया है कि एक पीड़िता को ऐसे मामलों में कैसी प्रतिक्रिया देनी चाहिए.
जस्टिस एससी गुप्ते ने गोवा सरकार की अपील पर तेजपाल को नोटिस जारी किया. जस्टिस गुप्ते ने तेजपाल की रिहाई के सत्र अदालत के आदेश के खिलाफ गोवा सरकार की ओर से दायर अपील पर सुनवाई के लिए 24 जून की तारीख तय की है.
उच्च न्यायालय ने रजिस्ट्री विभाग को मामले से जुड़े सभी कागजातों और अन्य दस्तावेजों को सत्र अदालत से मंगवाने का भी निर्देश दिया है.
जस्टिस गुप्ते ने कहा, ‘यह फैसला इसे लेकर के है कि उसने (पीड़िता ने) कैसे प्रतिक्रिया दी है. इस पर कुछ अवलोकन हैं. यह बलात्कार पीड़िताओं के लिए नियम-पुस्तिका जैसा है.’
उच्च न्यायालय ने कहा कि फैसले में अभियोजन पक्ष के मामले को शामिल नहीं किया गया है.
जस्टिस गुप्ते ने कहा कि फैसला सीधे मामले के सार में और फिर पीड़िता के साक्ष्यों तथा गवाहों के बयानों को ध्यान में रखकर दिया गया है.
अदालत ने कहा, ‘यह प्रथम दृष्टया रिहाई के खिलाफ दायर अपील पर विचार करने का मामला लगता है. प्रतिवादी (तेजपाल) को नोटिस जारी करने और 24 जून तक जवाब दाखिल करने को कहा जाता है.’
उल्लेखनीय है कि सत्र न्यायाधीश जज क्षमा जोशी ने 21 मई के फैसले में तरुण तेजपाल को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था.
उन पर 2013 में गोवा के पांच सितारा होटल की लिफ्ट में अपनी सहकर्मी का यौन शोषण करने का आरोप था. यह घटना तब की है जब वह एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए गोवा गए थे.
सत्र अदालत ने तेजपाल को बरी करते हुए पीड़िता के आचरण पर सवाल उठाते हुए कहा था कि उनके बर्ताव में ऐसा कुछ नहीं दिखा जिससे लगे कि वह यौन शोषण की पीड़िता हैं.
गोवा की एक निचली अदालत ने पत्रकार तरुण तेजपाल को यौन उत्पीड़न के मामले में बरी करते हुए संदेह का लाभ देते हुए कहा था कि शिकायतकर्ता महिला द्वारा लगाए गए आरोपों के समर्थन में कोई सबूत मौजूद नहीं हैं.
फैसले में कहा गया कि सर्वाइवर ने ‘ऐसा कोई भी मानक व्यवहार’ प्रदर्शित नहीं किया, जैसा ‘यौन उत्पीड़न की कोई पीड़ित करती’ हैं.
यह कहते हुए कि इस बात का कोई मेडिकल प्रमाण नहीं है और शिकायतकर्ता की ‘सच्चाई पर संदेह पैदा करने’ वाले ‘तथ्य’ मौजूद हैं, अदालत के आदेश में कहा गया कि महिला द्वारा आरोपी को भेजे गए मैसेज ‘यह स्पष्ट रूप से स्थापित’ करते हैं कि न ही उन्हें कोई आघात पहुंचा था न ही वह डरी हुई थीं, और यह अभियोजन पक्ष के मामले को ‘पूरी तरह से झुठलाता है.’
इस फैसले की काफी आलोचना हुई है. महिला पत्रकारों के संगठनों और कार्यकर्ताओं ने मामले की सर्वाइवर के साथ एकजुटता जताई है. एक संगठन ने कहा कि यह मामला शक्ति के असंतुलन का प्रतीक है जहां महिलाओं की शिकायतों पर निष्पक्षता से सुनवाई नहीं होती.
गोवा सरकार ने इस फैसले के खिलाफ दायर अपील में कहा था कि निचली अदालत का फैसला अव्यवहार्य और पूर्वाग्रह एवं पितृसत्ता के रंग में रंगा था. मामले में दोबारा सुनवाई इसलिए हो क्योंकि जज ने पूछताछ के दौरान शिकायतकर्ता से निंदनीय, असंगत और अपमानजनक सवाल पूछने की मंज़ूरी दी.
उच्च न्यायालय की पीठ ने बुधवार को टिप्पणियां तब कीं, जब गोवा सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सत्र अदालत के 527 पन्नों के फैसले के कुछ हिस्सों को पढ़ा जिसमें पीड़िता के व्यवहार (कथित घटना के दौरान और बाद में) का जिक्र किया गया है और कहा कि इसमें वर्णन ‘अत्यधिक असंभवता’ का था.
मेहता ने कहा, ‘फैसले में कहा गया कि पीड़िता, जो एक बुद्धिमान महिला है और योग प्रशिक्षण होने के कारण शारीरिक रूप से मजबूत है, वह खुदपर हुए यौन हमले को रोक सकती थी.’
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उन्होंने कहा, ‘हम नहीं जानते कि इस मामले में पीड़िता पर मुकदमा चल रहा था या आरोपी पर. पूरा फैसला ऐसा है कि मानो पीड़िता पर मुकदमा चल रहा था. पीड़िता के यौन इतिहास पर इतनी अधिक चर्चा क्यों होनी चाहिए थी.’
सॉलिसिटर जनरल ने दलील दी कि सत्र अदालत की न्यायाधीश उस समय एक खामोश दर्शक बनी रहीं जब आरोपी के वकील लगातार पीड़िता को शर्मसार कर रहे थे.
बुधवार को उच्च न्यायालय ने कहा कि वह फैसले में कही गईं इन बातों समेत तमाम अन्य पहलुओं पर सुनवाई की अगली तारीख पर चर्चा करेगा.
इससे पहले द वायर ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि 27 मई को सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा पीठ ने सत्र अदालत को निर्देश दिया था कि तेजपाल के मामले में अपने फैसले में अदालत उन सभी संदर्भों को हटाए, जिससे पीड़िता की पहचान उजागर हो. इनमें पीड़िता का ईमेल एड्रेस और उनके परिवार के सदस्यों का नाम शामिल है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)