कर्मचारियों को निकालने के लिए वित्तीय संकट या महामारी के प्रभाव को आधार नहीं बना सकते: कोर्ट

बीते साल एयर इंडिया के कुछ पायलटों ने इस्तीफ़े देने के बाद उन्हें स्वीकार किए जाने से पहले ही वापस ले लिया था पर कंपनी ने इसके बावजूद इस्तीफ़े स्वीकार कर लिए. उनका तर्क था कि इस्तीफ़ों को दी गई स्वीकृति पूरी तरह से उचित है क्योंकि कंपनी कई वर्षों से वित्तीय संकट से जूझ रही है.

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(फाइल फोटो: पीटीआई)

बीते साल एयर इंडिया के कुछ पायलटों ने इस्तीफ़े देने के बाद उन्हें स्वीकार किए जाने से पहले ही वापस ले लिया था पर कंपनी ने इसके बावजूद इस्तीफ़े स्वीकार कर लिए. उनका तर्क था कि इस्तीफ़ों को दी गई स्वीकृति पूरी तरह से उचित है क्योंकि कंपनी कई वर्षों से वित्तीय संकट से जूझ रही है.

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नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि राज्य या उसकी एजेंसियां वित्तीय संकट या महामारी के प्रभाव का हवाला देकर अपने कर्मचारियों को नौकरी से नहीं निकाल सकती हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने कहा, ‘नागरिकों की आजीविका के अधिकारों को सुरक्षित करना एक कल्याणकारी राज्य का अनिवार्य कर्तव्य है.’

जस्टिस ज्योति सिंह ने कई पायलटों को बहाल करने का आदेश देते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिनके इस्तीफे पिछले साल अधिकारियों द्वारा स्वीकृति से पहले वापस लेने के बावजूद एयर इंडिया द्वारा स्वीकार कर लिए गए थे.

कोर्ट ने उन्हें बैक वेज (गलत कारणों से निकाले जाने की अवधि का वेतन) का हकदार भी करार दिया. एयर इंडिया ने तर्क दिया था कि इस्तीफे की स्वीकृति पूरी तरह से उचित है क्योंकि वह कई वर्षों से वित्तीय संकट से जूझ रही है.

अदालत ने कहा कि किसी कर्मचारी द्वारा दिया गया ऐसा इस्तीफा उसे स्वीकार किए जाने से पहले किसी भी समय वापस लिया जा सकता है, जो इस्तीफा प्रभावी होने की संभावित या भविष्य की तारीख का संकेत देता है और अगर यह नियमों या शर्तों और सेवा की स्थिति के विपरीत न हो.

अदालत ने कहा, ‘यह माना जाता है कि इस्तीफे को स्वीकारने के मुद्दे को तय करने में वित्तीय संकट एक प्रासंगिक पहलू नहीं हो सकता है. यह दोबारा कहा जाता है कि जैसा पहले बताया गया कि जब इस्तीफे की स्वीकृति पर कानूनी स्थिति इतनी अच्छी तरह से तय हो गई है, तब प्रतिवादी द्वारा उसकी ख़राब वित्तीय हालत या कोविड-19 महामारी के कारण हुए कथित नुकसान को अपने निर्णय को आधार बनाना व्यर्थ था.’

अदालत ने यह भी कहा कि संविधान की प्रस्तावना अपने सभी नागरिकों को न्याय और समानता सुनिश्चित करने का संकल्प करती है. और हर राज्य के कदमों का लक्ष्य इसे प्राप्त करना होना चाहिए.