पिछले साल नवंबर तक 9.27 लाख गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की पहचान हुई: आरटीआई

सूचना का अधिकार के तहत महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने बताया कि पिछले साल नवंबर तक देश में छह महीने से छह साल तक के क़रीब 927,606 गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की पहचान की गई. इनमें से सबसे ज़्यादा 398,359 बच्चों की उत्तर प्रदेश में और 279,427 की बिहार में पहचान की गई. ये आंकड़े उन चिंताओं पर ज़ोर डालते हैं कि कोविड-19 महामारी ग़रीब तबकों के बीच स्वास्थ्य एवं पोषण के संकट को और बढ़ा सकती है.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

सूचना का अधिकार के तहत महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने बताया कि पिछले साल नवंबर तक देश में छह महीने से छह साल तक के क़रीब 927,606 गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की पहचान की गई. इनमें से सबसे ज़्यादा 398,359 बच्चों की उत्तर प्रदेश में और 279,427 की बिहार में पहचान की गई. ये आंकड़े उन चिंताओं पर ज़ोर डालते हैं कि कोविड-19 महामारी ग़रीब तबकों के बीच स्वास्थ्य एवं पोषण के संकट को और बढ़ा सकती है.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में 9.2 लाख से ज्यादा बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं, जिनमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में और फिर बिहार में हैं. ये आंकड़े उन चिंताओं पर खास तौर पर जोर डालते हैं कि कोविड-19 वैश्विक महामारी गरीब से गरीब तबके के लोगों के बीच स्वास्थ्य एवं पोषण के संकट को और बढ़ा सकती है.

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने समाचार एजेंसी पीटीआई की ओर से आरटीआई के तहत पूछे गए सवाल के जवाब में बताया कि पिछले साल नवंबर तक देश में छह महीने से छह साल तक के करीब 927,606 गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की पहचान की गई.

मंत्रालय की ओर से साझा किए गए आंकड़ों के मुताबिक इनमें से सबसे ज्यादा 398,359 बच्चों की उत्तर प्रदेश में और 279,427 की बिहार में पहचान की गई. लद्दाख, लक्षद्वीप, नगालैंड, मणिपुर और मध्य प्रदेश में एक भी गंभीर रूप से कुपोषित बच्चा नहीं मिला है.

सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई) के जवाब के मुताबिक, लद्दाख के अलावा, देश के सबसे बड़े राज्यों में से एक मध्य प्रदेश सहित अन्य चार में से किसी आंगनबाड़ी केंद्र ने मामले पर कोई जानकारी नहीं दी.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ‘गंभीर कुपोषण’ (एसएएम) को लंबाई के अनुपात में बहुत कम वजन हो या बांह के मध्य के ऊपरी हिस्से की परिधि 115 मिलीमीटर से कम हो या पोषक तत्वों की कमी के कारण होने वाली सूजन के माध्यम से परिभाषित करता है. गंभीर कुपोषण के शिकार बच्चों का वजन उनकी लंबाई के हिसाब से बहुत कम होता है और प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर होने की वजह से किसी बीमारी से उनके मरने की आशंका नौ गुना ज्यादा होती है.

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने पिछले साल सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की पहचान करने को कहा था, ताकि उन्हें जल्द से जल्द अस्पतालों में भर्ती कराया जा सके. 927,006 बच्चों का यह आंकड़ा उस कदम के बाद आया है.

चिंता की बात यह है कि ये संख्या न सिर्फ कम आंकी गई हो सकती है, बल्कि वैश्विक महामारी के मद्देनजर और बढ़ सकती है, वो भी उस भय के साथ कि आशंकित तीसरी लहर अन्य की तुलना में बच्चों को ज्यादा प्रभावित करेगी.

बाल अधिकारों के लिए ‘हक सेंटर’ की सह-संस्थापक इनाक्षी गांगुली ने कहा, ‘बेरोजगारी बढ़ी है, आर्थिक संकट बढ़ा है जिसका भुखमरी पर भी असर होगा और जब भुखमरी होगी तो कुपोषण भी होगा. सरकार के पास एक स्पष्ट प्रोटोकॉल है और उन्हें उसे बढ़ाने की जरूरत है.’

उत्तर प्रदेश और बिहार गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों के मामलों में सबसे ऊपर है और वहां बच्चों की संख्या भी देश में सबसे अधिक है. 2011 के जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 0-6 साल के 2.97 करोड़ बच्चे हैं, जबकि बिहार में ऐसे बच्चों की संख्या 1.85 करोड़ है.

आरटीआई जवाब के मुताबिक, महाराष्ट्र में गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या 70,665 है. इसके बाद गुजरात में 45,749, छत्तीसगढ़ में 37,249, ओडिशा में 15,595, तमिलनाडु में 12,489, झारखंड में 12,059, आंध्र प्रदेश में 11,201, तेलंगाना में 9,045, असम में 7,218, कर्नाटक में 6,899, केरल में 6,188 और राजस्थान में 5,732 है.

गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की पहचान देश भर के करीब 10 लाख आंगनबाड़ी केंद्रों की ओर से की गई है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, कुपोषण सं संबंधित डेटा साल दर साल अपडेट नहीं किया जाता है, एनएफएचएस -4 (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण) द्वारा उपलब्ध अंतिम आंकड़े के अनुसार, साल 2015-16 में बच्चों में गंभीर तीव्र कुपोषण की व्यापकता 7.4 प्रतिशत बताई गई थी.

एनएफएचएस-4 ने 601,509 घरों, 699,686 महिलाओं और 112,122 पुरुषों से जानकारी एकत्र की थी. सर्वे में 5 साल से कम उम्र के 265,653 बच्चों की जानकारी जुटाई गई थी.

बता दें कि पिछले साल दिसंबर में जारी एनएफएचएस-5 के आंकड़ों में कहा गया था कि देश के कई राज्यों में स्वच्छता में सुधार और ईंधन एवं पीने योग्य साफ पानी तक बेहतर पहुंच के बावजूद बच्चों में कुपोषण का स्तर तेजी से बढ़ा है.

इनाक्षी गांगुली ने बच्चों की पोषण स्थिति को सुधारने में आंगनबाड़ी केंद्रों की भूमिका पर जोर दिया है.

गांगुली ने कोविड-19 के तीसरी लहर पर चिंता जताते हुए कहा, ‘कुपोषण एक बहुत बड़ी सहरुग्णता होगी. अगर वे जो कह रहे हैं कि अगली लहर में बच्चे अधिक प्रभावित होंगे, वह सच है, तो कुपोषण एक बड़ी सहवर्ती बीमारी होगी और वे इससे कैसे निपटेंगे?’

वहीं, राइज़ अगेंस्ट हंगर इंडिया की कार्यकारी निदेशक डोला महापात्रा ने कहा कि कोविड-19 से सिकुड़ती खाद्य विविधता और कम सेवन के साथ कई बार भोजन न मिलने से स्थिति और गंभीर हो जाती है.

उन्होंने कहा कि समाधान घर-आधारित देखभाल और सुविधा-आधारित देखभाल दोनों होना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘चूंकि आंगनबाड़ी का भोजन की उपलब्धता और जागरूकता से सीधा संबंध है – इसलिए तत्काल सरकारी प्रणालियों के साथ उचित रूप से संबंध बनाना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि परिवारों को न केवल राशन/भोजन मिले बल्कि आवश्यक शिक्षा और समर्थन प्राप्त हो.’

उन्होंने कहा, ‘कोविड-19 समुदाय आधारित हस्तक्षेपों के आयोजन में एक बड़ी बाधा रही है, इसलिए माताओं और देखभाल करने वालों को जानकारी प्रसारित करने के नए तरीके/तरीके खोजने होंगे.’

महापात्रा ने पोषण पुनर्वास केंद्रों (एनआरसी) को मजबूत करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया, जो एसएएम मामलों के इलाज के लिए हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)