पिछले महीने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे युवक-युवती को सुरक्षा देने से इनकार करते हुए कहा था कि यह नैतिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं है. शीर्ष अदालत ने इस आदेश को ख़ारिज करते हुए पुलिस से याचिकाकर्ताओं को सुरक्षा देने को कहा है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन संबंध में रह रहे युवक-युवती को सुरक्षा प्रदान करने का आदेश दिया है, जिन्हें कुछ दिन पहले ही पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने राहत देने से इनकार करते हुए कहा था कि लिव-इन रिलेशनशिप नैतिक और सामाजिक रूप से अस्वीकार्य है.
लाइव लॉ के मुताबिक, जस्टिस नवीन सिन्हा और अजय रस्तोगी की पीठ ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे पुलिस अधीक्षक के सामने अपने इस मामले को पेश करें और पुलिस विभाग इस पर उचित कदम उठाए.
कोर्ट ने अपने आदेश में महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा, ‘यह बताने की जरूरत नहीं है कि चूंकि ये मामला जीवन एवं स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ है, इसलिए पुलिस अधीक्षक को हाईकोर्ट की टिप्पणियों को नजरअंदाज कर कानून के अनुसार तत्काल कार्रवाई करने की जरूरत है, जिसमें धमकी की आशंका को देखते हुए याचिकाकर्ताओं को सुरक्षा मुहैया कराना भी शामिल है.’
इस मामले में सुरक्षा मुहैया कराने से इनकार करते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस एचएस मदान ने अपने 11 मई के आदेश में कहा था, ‘वास्तव में याचिकाकर्ता वर्तमान याचिका दायर करने की आड़ में अपने लिव-इन रिलेशनशिप पर अनुमोदन की मुहर की मांग कर रहे हैं, जो नैतिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं है और याचिका में कोई सुरक्षा आदेश पारित नहीं किया जा सकता है. तदनुसार याचिका खारिज की जाती है.’
एक 19 वर्षीय युवती और 22 साल के युवक ने याचिका में कहा था कि वे एक साथ रह रहे हैं और जल्द ही शादी करना चाहते हैं. उन्होंने युवती के माता-पिता से अपनी जान को खतरा होने की आशंका जताई थी.
उनके वकील जेएस ठाकुर ने न्यायालय को बताया था कि दोनों तरनतारन जिले में एक साथ रह रहे हैं. लड़की के माता-पिता ने उनके रिश्ते को स्वीकार नहीं किया, जो लुधियाना में रहते हैं.
ठाकुर ने कहा कि दोनों की शादी नहीं हो सकी, क्योंकि युवती के दस्तावेज, जिसमें उसकी उम्र का विवरण है, उसके परिवार के पास हैं.
याचिकाकर्ताओं ने अदालत को बताया था कि महिला के परिवार के सदस्यों द्वारा धमकी दिए जाने के बाद उन्होंने अप्रैल में पंजाब पुलिस के संबंधित एसएसपी को ईमेल के माध्यम से एक आवेदन दिया था. चूंकि उन्हें लगातार धमकियां मिल रही थीं, इसलिए उन्होंने संरक्षण और सुरक्षा के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया.
वहीं एक अन्य मामले में जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल की पीठ ने कहा था कि यदि लड़का और लड़की को लिव-इन रिलेशनशिप में रहने की इजाजत दी जाती है तो इससे सामाजिक ताना-बाना बिगड़ जाएगा.
हालांकि पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा था कि किसी भी व्यक्ति को अपने पार्टनर के साथ शादी करके या लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का अधिकार है.
न्यायालय ने कहा था कि जो भी व्यक्ति लिव-इन रिलेशनशिप का रास्ता अपनाता है, उसे अन्य नागरिकों की तरह कानून का बराबर संरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए.
जस्टिस सुधीर मित्तल की पीठ ने एक लिव-इन रिलेशनशिप मामले की सुनवाई के दौरान ये निर्देश जारी किए थे.
मालूम हो कि उच्चतम न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने मई 2018 में कहा था कि वयस्क जोड़े को शादी के बगैर भी साथ रहने का अधिकार है.
न्यायालय ने यह केरल की 20 वर्षीय एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि वह किसके साथ रहना चाहती हैं, इसका फैसला वो खुद कर सकती हैं. उनके विवाह को अमान्य कर दिया गया था.
शीर्ष अदालत ने कहा था कि लिव-इन रिलेशनशिप को अब विधायिका द्वारा भी मान्यता दी गई है और घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 के प्रावधानों में भी इसे स्थान दिया गया है.
अभिनेत्री एस. खुशबू द्वारा दायर एक अन्य ऐतिहासिक मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि लिव-इन रिलेशनशिप स्वीकार्य है और दो वयस्कों के साथ रहने को अवैध या गैरकानूनी नहीं माना जा सकता.