पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर को गृह मंत्रालय द्वारा बीते 23 मार्च को अनिवार्य सेवानिवृति दी गई थी. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने इससे संबंधित दस्तावेज़ देने से मना कर दिया है. ठाकुर ने कहा है कि सरकार द्वारा मनमाने ढंग से उन्हें सेवा से निकाला जाना और अब उनकी जीविका से संबंधित सूचना भी नहीं देना दुखद है तथा सरकार की ग़लत मंशा को दिखाता है.
लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार ने पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर को उन्हें दी गई अनिवार्य सेवानिवृति से संबंधित दस्तावेज देने से मना कर दिया है.
ठाकुर को गृह मंत्रालय के निर्णय के अनुपालन में गत 23 मार्च को अनिवार्य सेवानिवृति दी गई थी. उन्होंने 26 मई को एक पत्र के जरिये शासन के इस निर्णय से संबंधित अभिलेख मांगे थे.
ठाकुर की पत्नी एवं सामाजिक कार्यकर्ता नूतन ठाकुर ने बुधवार को बताया कि गृह विभाग के विशेष सचिव कुमार प्रशांत के हस्ताक्षर से निर्गत आदेश के अनुसार अमिताभ को उनकी अनिवार्य सेवानिवृति से संबंधित पत्रावली के नोटशीट, पत्राचार, कार्यवृत वगैरह की प्रति नहीं दी जा सकती, क्योंकि ये सभी अभिलेख ‘अत्यंत गोपनीय’ प्रकृति के हैं, जो उच्चतम स्तर के अधिकारियों के विचार-विमर्श तथा अनुमोदन से संबंधित हैं.
अमिताभ ठाकुर ने कहा है कि सरकार द्वारा मनमाने ढंग से उन्हें सेवा से निकाला जाना तथा अब उनकी जीविका से संबंधित सूचना भी नहीं देना अत्यंत दुखद है तथा सरकार की गलत मंशा को दिखाता है.
नूतन ने बताया कि इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भी इसी सिलसिले में सूचना का अधिकार कानून के तहत मांगी गई जानकारी देने से मना कर दिया था. खराब शासन के आरोप में गृह मंत्रालय ने उन्हें 23 मार्च 2021 को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी थी.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश में कहा गया था कि अमिताभ ठाकुर को उनकी सेवा के शेष कार्यकाल के लिए बनाए रखने के लिए उपयुक्त नहीं पाया गया.
इसमें कहा गया कि जनहित में अमिताभ ठाकुर को उनकी सेवा पूरी करने से पहले तत्काल प्रभाव से अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी जा रही है.
साल 2017 में तत्कालीन सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी (सपा) के विधानसभा चुनाव हार जाने के बाद ठाकुर ने यह कहते हुए कि उनके खिलाफ अब कोई ‘पूर्वाग्रह’ मौजूद नहीं, केंद्र से उत्तर प्रदेश के अलावा किसी अन्य राज्य में कैडर बदलने के उनके अनुरोध को रद्द करने का आग्रह किया था.
सपा संरक्षक मुलायम सिंह पर धमकी देने का आरोप लगाने के कुछ दिनों बाद 13 जुलाई, 2015 को ठाकुर को निलंबित कर दिया गया था. उसके खिलाफ विजिलेंस जांच भी शुरू कर दी गई है.
हालांकि, सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल की लखनऊ पीठ ने अप्रैल 2016 में उनके निलंबन पर रोक लगा दी और 11 अक्टूबर 2015 से पूरे वेतन के साथ उनकी बहाली का आदेश दिया.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)