महिला महाविद्यालय के हॉस्टल की छात्राओं द्वारा लैंगिक भेदभाव भरे नियमों का दावा करने वाली याचिका पर सुनवाई के लिए शीर्ष न्यायालय ने सहमति जताई है.
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के महिला महाविद्यालय (एमएमवी) की छात्राओं द्वारा विश्वविद्यालय के भेदभाव भरे नियमों के ख़िलाफ़ उठाई गई आवाज़ अब कोर्ट तक पहुंच गई है.
लाइव लॉ के मुताबिक वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण और नेहा राठी ने विश्वविद्यालय की कुछ छात्राओं की ओर से दायर की गई याचिका को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली एक बेंच के सामने रखा, जिसके बाद उन्होंने नवंबर में इन नियमों पर सुनवाई करने को कहा है.
गौरतलब है कि विश्वविद्यालय की छात्राओं द्वारा लंबे समय से इन नियमों का विरोध किया जा रहा था. कुछ छात्राओं ने साल की शुरुआत में एक समाचार चैनल के माध्यम से ये मुद्दा उठाया था, उसके बाद एमएमवी की एक छात्रा ने राष्ट्रीय महिला आयोग अध्यक्ष को ऑनलाइन मंच चेंज डॉट ओआरजी पर एक पिटीशन शुरू करके बीएचयू कैंपस में छात्राओं के साथ हो रहे भेदभाव पर संज्ञान लेने को कहा था.
इस ऑनलाइन पिटीशन के साथ लिखे एक पत्र में कहा गया था, ‘बीएचयू एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है, जिस पर सभी छात्रों को संविधान के अंतर्गत समान अधिकार और अभिव्यक्ति की आज़ादी देने का उत्तरदायित्व है. पर यहां छात्राओं पर सुरक्षा के नाम पर लैंगिक भेदभाव करते हुए नियम थोपे जा रहे हैं.’
प्रशांत भूषण ने जजों की पीठ को इन नियमों से अवगत करवाते हुए कहा कि अगर कोई छात्रा इन भेदभाव भरे नियमों का पालन नहीं करती, तो उसे एमएमवी हॉस्टल छोड़ने के लिए कहा जाता है.
कोर्ट में दायर याचिका में बीएचयू के महिला छात्रावास के कुछ नियमों की सूची भी दी गई है, जिसमे बताया गया है:
- लड़कियों को रात 8 बजे के बाद अपने हॉस्टल से बाहर जाने की अनुमति नहीं है. वे लाइब्रेरी या कैंपस में होने वाले किसी कार्यक्रम में नहीं जा सकतीं. यहां तक कि बस या ट्रेन पकड़ने की स्थिति में भी इस नियम में कोई छूट नहीं मिलती. हालांकि कैंपस के पुरुष छात्रावासों में यह नियम लागू नहीं है. वे रात 10 बजे तक बाहर रह सकते हैं और उसके बाद भी कहीं जाने के लिए उन्हें किसी से अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं होती. (यहां 2016 में यूजीसी द्वारा दिए हॉस्टलों में ‘कोई कर्फ्यू टाइमिंग’ न लगाने के नियम का भी हवाला दिया गया है)
- रात 10 बजे के बाद छात्राएं अपने मोबाइल फोन पर बात नहीं कर सकतीं. अगर वे ऐसा करती पायी जाती हैं, तो उन्हें कॉल स्पीकर मोड पर रखने को कहा जाता है.
- महिला छात्रावास में मांसाहार नहीं दिया जाता, जबकि लड़कों के हॉस्टल में ऐसा कोई नियम नहीं है.
- हॉस्टल के नियमों के अनुसार लड़कों के हॉस्टल में उनके पिता आकर ठहर सकते हैं, लेकिन लड़कियों के हॉस्टल में उनके परिजन, दोस्त या किसी डे-स्कॉलर के आने पर मनाही है.
- हॉस्टल की गाइडलाइन्स के अनुसार लड़कियों को हॉस्टल में ‘सभ्य’ पोशाक में रहने के लिए कहा गया है, लेकिन लड़कों के हॉस्टल में उनके पहनावे को लेकर कोई नियम नहीं है.
- महिला छात्रावास में लड़कियों को इंटरनेट की सुविधा नहीं दी गई है, लड़कों के हॉस्टल में ये सुविधा है.
- इसके अलावा महिला छात्रावास की नियमावली के अनुसार हॉस्टल की कोई छात्र किसी धरना या विरोध प्रदर्शन में भाग नहीं ले सकती. पुरुष छात्रावास के लिए ऐसा कोई नियम नहीं बनाया गया है.