सिर्फ़ 56 फ़ीसदी स्वास्थ्यकर्मियों और 47 फ़ीसदी फ्रंटलाइन वर्कर्स का पूर्ण टीकाकरण हुआः सरकार

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्वीकार किया है कि 82 फ़ीसदी स्वास्थ्यकर्मियों को कोरोना वायरस टीके की सिर्फ़ एक डोज़ लगी है, जबकि 56 फ़ीसदी को वैक्सीन की दोनों डोज़ लग चुकी है. इसी तरह 85 फ़ीसदी फ्रंटलाइन वर्कर्स को टीके की एक, जबकि 47 फ़ीसदी को दोनों डोज़ लगी है.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्वीकार किया है कि 82 फ़ीसदी स्वास्थ्यकर्मियों को कोरोना वायरस टीके की सिर्फ़ एक डोज़ लगी है, जबकि 56 फ़ीसदी को वैक्सीन की दोनों डोज़ लग चुकी है. इसी तरह 85 फ़ीसदी फ्रंटलाइन वर्कर्स को टीके की एक, जबकि 47 फ़ीसदी को दोनों डोज़ लगी है.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

बेंगलुरूः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 16 जनवरी 2021 को देशभर में कोविड-19 टीकाकरण अभियान को हरी झंडी दिखाई थी, उस वक्त उन्होंने कहा था कि टीकाकरण के पहले चरण के तहत देश के फ्रंटलाइन वर्कर्स और स्वास्थ्यकर्मियों को जुलाई तक टीका लगाया जाएगा.

लेकिन 10 जून को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्वीकार किया कि 82 फीसदी स्वास्थ्यकर्मियों को टीके की सिर्फ एक डोज लगी है, जबकि 56 फीसदी को वैक्सीन की दोनों डोज लग चुकी है. ठीक इसी तरह 85 फीसदी फ्रंटलाइन वर्कर्स को टीके की एक, जबकि 47 फीसदी को दोनों डोज लगी है.

न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने बताया कि टीके की कमी गंभीर चिंता का विषय था और राज्य सरकारों को जल्द से जल्द इन फ्रंटलाइन वर्कर्स का पूरी तरह से टीकाकरण करना चाहिए.

वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज में लगभग 9,000 स्वास्थ्यकर्मियों पर किए गए अध्ययन के अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि शुरुआत में वैक्सीन की कमी की वजह से और बाद में वैक्सीन की उपलब्धता पर दोनों डोज के बीच के अंतराल पर दिशानिर्देशों में बदलाव को लेकर इनमें से कुछ को टीके की दूसरी डोज नहीं लग सकी.

देश में कोरोना टीकाकरण अभियान शुरू होने के बाद देश में मार्च तक टीके की सप्लाई की समस्याएं आनी लगीं. इसी समय सरकार ने अप्रैल में 45 से अधिक आयुवर्ग के लोगों और एक मई से 18 से 44 साल तक की उम्र के लोगों के लिए टीकाकरण की शुरुआत कर इसमें विस्तार किया.

भारत सरकार और वैक्सीन निर्माताओं दोनों ने वैक्सीन उत्पादन की क्षमता को अनुमान से अधिक आंका.  इस बीच सरकार ने वैक्सीन डिप्लोमेसी भी शुरू की, सरकार ने मार्च के अंत तक 70 देशों को 5.8 करोड़ डोज और अप्रैल के अंत तक 94 देशों को 6.6 करोड़ डोज का निर्यात किया.

इस दौरान स्थानीय वैक्सीन निर्माता टीकाकरण की दर के साथ तालमेल नहीं बिठा पाए. भारत में एक अन्य वैक्सीन रूस की स्पुतनिक-वी की सप्लाई भी लड़खड़ा गई.

टीकाकरण अभियान के शुरुआती दो या तीन महीनों में वैक्सीन को लेकर हिचकिचाहट रही, जो विशेष रूप से कोवैक्सीन को लेकर हुई, जिसे लेकर भारत के दवा नियामक ने उसके तीसरे चरण के क्लीनिकल ट्रायल के डेटा के बिना ही मंजूरी दे दी थी.

इसके साथ ही वैक्सीन रजिस्ट्रेशन सिस्टम और टीकाकरण नीति को लेकर भी समस्याएं थीं. शुरुआत में कोविन पोर्टल की आलोचना हुई, क्योंकि जो लोग तकनीक से वाकिफ नहीं है, उनके लिए वैक्सीन के लिए रजिस्ट्रेशन की यह प्रक्रिया काफी मुश्किल रही.

बाद में अप्रैल के अंत और जून की शुरुआत में मोदी सरकार खरीद नीति तैयार की, जिसमें केंद्र वैक्सीन निर्माताओं से कम दरों पर कोवैक्सीन और कोविशील्ड खरीदेगी, जबकि राज्य सरकारें और निजी अस्पताल अपनी जरूरतों के हिसाब से अलग से अलग-अलग बातचीत करें.

इसके अंतर्निहित नैतिकता के मुद्दों को लेकर सुप्रीम कोर्ट और कई नेताओं एवं स्वतंत्र विशेषज्ञों ने नाराजगी जताई थी. इसके बाद सरकार ने केंद्रीयकृत बातचीत की अपने वास्तिवक नीति को जारी रखा था, लेकिन इन मुद्दों को मिलाकर देखा जाए तो देश के पांचवें हिस्से तक कोविड वैक्सीन की एक भी खुराक नहीं पहुंची है. मौजूदा समय में 14 फीसदी भारतीयों को सिर्फ एक डोज लगी है, जबकि सिर्फ 3.3 फीसदी को दोनों डोज लगी है.

मालूम हो कि रोजाना मरीजों के संपर्क में आने से स्वास्थ्यकर्मियों में कोरोना का अत्यधिक जोखिम बना रहता है.

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने एक जून को कहा था कि महामारी शुरू होने से 1,300 स्वास्थ्यकर्मियों की मौत हो गई है, जिनमें लगभग 600 मौतें दूसरी लहर के दौरान हुई हैं.

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.