मामला सीतापुर ज़िले का है, जहां पुलिस ने चार लोगों को कथित तौर पर गोहत्या की बात करने को लेकर गोहत्या संरक्षण क़ानून के तहत हिरासत में लिया था. हाईकोर्ट ने एक आरोपी की ज़मानत याचिका पर सुनवाई करते हुए पुलिस की कार्रवाई पर नाराज़गी जताई और पुलिस अधीक्षक से जवाब तलब किया है.
नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मनमाने ढंग से गोहत्या कानून का इस्तेमाल करने को लेकर एक बार फिर से उत्तर प्रदेश पुलिस को कड़ी फटकार लगाई है. न्यायालय ने एक जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि याचिकाकर्ता पर इस कानून को गलत तरीके से लगाया गया है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, हाईकोर्ट ने यूपी की सीतापुर पुलिस की कार्रवाई पर गहरी नाराजगी जाहिर करते हुए यहां के पुलिस अधीक्षक (एसपी) से दो हफ्तों के भीतर जवाब मांगा है.
जस्टिस अब्दुल मोई की पीठ सूरज (22) नामक एक व्यक्ति की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिनके खिलाफ 25 फरवरी को उत्तर प्रदेश गोहत्या संरक्षण कानून की धारा तीन और आठ के तहत मामला दर्ज किया गया था.
इसी मामले में तीन अन्य इब्राहिम, अनीश और शहजाद के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया है.
हैरानी की बात ये है कि इस मामले में महज इस आधार पर एफआईआर दायर की गई थी कि पुलिस ने आरोपियों को ये कहते हुए सुना है कि उन्होंने गाय के तीन बच्चों को मारा है.
उन्होंने कहा, ‘सूचना मिलने के बाद पुलिस ने उन्हें झाड़ियों में आपस में बात करते हुए सुना था कि उन्होंने तीन बछड़ों को मार डाला है और उन्हें भारी मात्रा में धन प्राप्त हुआ है और अब उनके पास दो बैल हैं और उन्हें भी मारने की योजना बनाई गई है.’
अदालत के आदेश के अनुसार वरिष्ठ सब इंस्पेक्टर दीपक कुमार पांडे द्वारा दर्ज प्राथमिकी में कहा गया है कि आवेदक सहित चार लोगों को गिरफ्तार किया गया और ‘दो बैल, एक रस्सी का एक बंडल, एक हथौड़ा, एक गंड़ासा (छोटा), एक गंड़ासा (बड़ा), एक कील और 5-5 किलो के 12 खाली पैकेट आरोपी के कब्जे से बरामद किए गए.’
इसे लेकर सूरज के वकील ने कहा कि ‘महज इस तरह के सामान प्राप्त करने से गोहत्या कानून के तहत मामला दर्ज नहीं किया जा सकता है.’
हालांकि प्रशासन ने दलील दिया कि चूंकि इस तरह के सामान बरामद किए गए, इसलिए इस बात की आशंका थी कि आरोपी बैल को काटने की तैयारी में थे.
हालांकि कोर्ट ने कहा कि एफआईआर को पढ़ने से ये स्पष्ट हो जाता है कि न तो बैल की हत्या की गई थी और न ही उसे किसी तरह की चोट पहुंचाई गई.
हाईकोर्ट ने हैरानी जताते हुए कहा कि पुलिस ने सिर्फ इस आधार पर एफआईआर दर्ज कर लिया कि उन्होंने आरोपियों के बीच कथित तौर पर गोहत्या के बारे में बातचीत सुना था.
न्यायालय ने कहा कि आरोपियों के पास से सिर्फ दो बैल और अन्य सामान प्राप्त करने से गोहत्या कानून के तहत मामला नहीं बनता है. याचिकाकर्ता को ढाई महीने से भी ज्यादा वक्त तक उस आरोप में जेल में रहना पड़ा है, जो प्रथमदृष्टया उन्होंने किया ही नहीं था.
इन दलीलों के आधार पर कोर्ट ने आरोपी को जमानत दे दी और सीतापुर पुलिस से अधीक्षक से दो हफ्तों के भीतर जवाब मांगा कि आखिर क्यों इस मामले में गोहत्या कानून के तहत मामला दर्ज किया गया है.
इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी के गोहत्या संरक्षण कानून के मामलों में पुलिस द्वारा पेश किए गए साक्ष्यों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा था कि इस कानून का दुरुपयोग राज्य में निर्दोष लोगों के खिलाफ किया जा रहा है.
अदालत ने कहा था कि जब भी कोई मांस बरामद होता है तो फॉरेंसिक लैब में जांच कराए बिना उसे गोमांस करार दे दिया जाता है. अधिकतर मामलों में बरामद मांस को जांच के लिए लैब नहीं भेजा जाता. इस दौरान आरोपी को उस अपराध के लिए जेल में जाना होता है, जो उसने नहीं किया होता और जिसमें सात साल तक की सजा है और इस पर विचार प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाता है.
अदालत ने यह भी जोड़ा था, ‘जब भी कोई मांस बरामद होता है, उसका कोई रिकवरी मेमो तैयार नहीं किया जाता और किसी को पता नहीं होता कि बरामदगी के बाद उसे कहां ले जाया जाएगा.’
बता दें कि उत्तर प्रदेश गोहत्या संरक्षण कानून के तहत राज्य में गोवंश हत्या निषेध है. इसका उल्लंघन करने पर दस साल सश्रम कारावास और पांच लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है.