जी-7 के शिखर सम्मेलन में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये शामिल हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि लोकतंत्र और स्वतंत्रता भारत के सभ्यागत लोकाचार का हिस्सा हैं. यह बयान ऐसे समय आया है जब नए आईटी नियमों को लेकर भारत सरकार और ट्विटर जैसी बड़ी टेक कंपनी आमने-सामने हैं. ट्विटर ने पिछले महीने भारत स्थित अपने कार्यालयों पर पुलिस की छापेमारी को अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए संभावित ख़तरा माना है.
नई दिल्ली: भारत ने रविवार को ‘खुले समाज’ (Open Societies) की अवधारणा पर जी-7 और अतिथि देशों के एक संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर किए, जो ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों के मूल्यों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की मजबूती के साथ पुष्टि और प्रोत्साहित करता है. एक स्वतंत्रता के रूप में जो लोकतंत्र की रक्षा करती है और लोगों को भय और दमन से मुक्त रहने में मदद करती है.
प्रधानमंत्री ने ब्रिटेन के कॉर्नवाल में आयोजित जी-7 के शिखर सम्मेलन के सत्र को डिजिटल माध्यम से संबोधित भी किया. विदेश मंत्रालय के अनुसार, जी-7 शिखर सम्मेलन के ‘बिल्डिंग बैक टुगेदर ओपेन सोसाइटीज़ एंड इकोनॉमिज़’ सत्र में मोदी ने अपने संबोधन में लोकतंत्र, वैचारिक स्वतंत्रता और स्वाधीनता के प्रति भारत की सभ्यतागत प्रतिबद्धता को रेखांकित किया.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जी-7 और अतिथि देशों के संयुक्त बयान में स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिए जोखिमों में से एक राजनीति से प्रेरित इंटरनेट शटडाउन का भी उल्लेख किया गया है.
सत्र के समापन पर ‘ओपन सोसाइटीज स्टेटमेंट’ को मंजूरी दी गई. समापन सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मुख्य वक्ता के तौर पर आमंत्रित किया गया था.
मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये इसमें हिस्सा लेते हुए कहा, ‘लोकतंत्र और स्वतंत्रता भारत के सभ्यागत लोकाचार का हिस्सा हैं.’
हालांकि मोदी ने अपने संबोधन में कई वैश्विक नेताओं द्वारा जताई गई चिंता को साझा किया कि खुले समाज में झूठी सूचनाएं फैलने और साइबर हमलों का ज्यादा खतरा रहता है.
प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के अनुसार, मोदी ने यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया कि साइबर स्पेस लोकतांत्रिक मूल्यों को नष्ट करने का नहीं बल्कि इसे आगे बढ़ाने का एक अवसर बना रहे.
इस संयुक्त बयान पर जी-7 देशों सहित भारत, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका ने हस्ताक्षर किए. इस दौरान जी-7 बैठक के मेजबान ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने इन्हें ‘डेमोक्रेसी- 11’ कहा.
हालांकि चीन और रूस को निशाना बनाकर यह बयान जारी किया गया. वहीं, भारत भी जम्मू कश्मीर में इंटरनेट प्रतिबंधों को लेकर आलोचनाओं के दायरे में रहा है.
किसी भी चुनी गई सरकार द्वारा सबसे लंबे समय के लिए (552 दिनों तक) जम्मू कश्मीर में 4जी इंटरनेट सेवाओं पर पांबदी लगाई गई थी. अगस्त 2019 में राज्य का विशेष दर्जा खत्म करने के बाद से पहली बार पूरे जम्मू कश्मीर में फरवरी 2021 में 4जी इंटरनेट सेवा बहाल की गई थी.
नए आईटी नियमों को लेकर भारत सरकार और ट्विटर जैसी बड़ी टेक कंपनी आमने-सामने हैं. ट्विटर ने पिछले महीने भारत स्थित अपने कार्यालयों पर पुलिस की छापेमारी को अभिव्यक्ति की आजादी के लिए संभावित खतरा माना है.
इस साल फरवरी से ही ट्विटर और केंद्र सरकार के बीच उस समय से खींचतान जारी है, जब केंद्रीय प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रशासन पर देश में किसानों के विरोध से संबंधित आलोचना को चुप कराने का आरोप लगाने वाली सामग्री को ब्लॉक करने के लिए ट्विटर से कहा गया था.
इतना ही नहीं साल 2021 के शुरुआती 40 दिनों के भीतर ही भारत में केंद्र या राज्य सरकार विभिन्न वजहों का हवाला देकर कम से कम 10 बार इंटरनेट पर पाबंदी लगा चुकी हैं.
कई स्वतंत्र ऑडिटर्स द्वारा इकट्ठा किए गए आंकड़ों के मुताबिक सिर्फ 2019 और 2020 में ही भारत में 13,000 घंटे से अधिक समय तक इंटरनेट बंद रहा और इस दौरान कम से कम 164 बार इंटरनेट बंद किया गया.
साल 2019 में भारत सरकार ने 4,196 घंटों के लिए इंटरनेट बैन किया, जिसके चलते 1.3 अरब डॉलर का आर्थिक प्रभाव पड़ा. साल 2020 में ये आंकड़ा दोगुना हो गया और इस दौरान सरकार ने 8,927 घंटों के लिए इंटरनेट पर पाबंदी लगाई.
ये आंकड़े वैश्विक वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (वीपीएन) रीव्यू वेबसाइट ‘Top10VPN.com’ द्वारा इकट्ठा किए गए हैं.
जी-7 की ओर से जारी संयुक्त बयान में कहा गया है, ‘हम एक महत्वपूर्ण मोड़ पर हैं, जहां बढ़ते अधिनायकवाद, चुनावी हस्तक्षेप, भ्रष्टाचार, सूचना के हेरफेर के चलते स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिए खतरों का सामना करना पड़ रहा है. इन खतरों में दुष्प्रचार, साइबर हमले, राजनीति से प्रेरित इंटरनेट शटडाउन, मानवाधिकारों का उल्लंघन आतंकवाद और हिंसक उग्रवाद भी शामिल हैं.’
जी-7 देशों के विदेश मंत्रियों की मई में बैठक में हिस्सा ले चुके विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा था कि खुले समाजों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए सावधानी की जरूरत है. फर्जी खबरों और डिजिटल छेड़छाड़ से सुरक्षा की जरूरत है.
हालांकि, भारत सरकार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि अंतिम संयुक्त बयान को लेकर भारत को कोई आपत्ति नहीं है. सूत्रों के अनुसार, हालांकि यह बयान सीधे तौर पर चीन और रूस को निशाना बनाते हुए दिए गए लेकिन जी-7 की बैठक में भारत की स्थिति पर चर्चा नहीं की गई थी.
बयान में कहा गया कि लोकतंत्र में हर नागरिक को मुक्त और निष्पक्ष चुनावों में वोट देने का अधिकार और जवाबदेह एवं पारदर्शी शासन प्रणाली के दायरे में सभी को शांतिपूर्ण ढंग से इकट्ठा होने का अधिकार है.
इसके साथ ही मीडिया की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बढ़ावा देकर एक साथ इकट्ठा होने की स्वतंत्रता, धर्म या आस्था की स्वतंत्रता को सुरक्षित कर और नस्लवाद सहित सभी तरह के भेदभाव का सामना करते हुए वैश्विक स्तर पर खुले समाजों को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्धता जताई गई.
रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में संसद द्वारा पारित किए गए विवादास्पद नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पर वैश्विक चिंता के बीच यह प्रतिबद्धताएं भारत के लिए महत्वपूर्ण हैं.
एक अन्य जी-7 बयान जिस पर भारत और अन्य देशों ने हस्ताक्षर नहीं किए, उसमें शिनजियांग और हांगकांग में मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता को लेकर और दक्षिण चीन सागर में यथास्थिति बदलने के एकपक्षीय प्रयासों को लेकर चीन पर निशाना साधा गया है.
सात देशों के समूह जी-7 में ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और अमेरिका शामिल हैं. जी-7 के अध्यक्ष के रूप में ब्रिटेन ने भारत, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, दक्षिण अफ्रीका को शिखर सम्मेलन में विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया था.
Also participated in the @G7 session on Climate and reiterated India's strong commitment to climate action. India is the only G20 country on track to meet its Paris Commitments. And Indian Railways is committed to "Net Zero" by 2030.
— Narendra Modi (@narendramodi) June 13, 2021
संबोधन के बाद मोदी ने ट्वीट किया, ‘जी-7 में ‘खुले समाज’ पर अग्रणी वक्ता के तौर पर संबोधित करते हुए खुशी हुई. लोकतंत्र और स्वतंत्रता भारत के सभ्यतागत लोकाचार का हिस्सा हैं और भारत के समाज की जीवंतता और विविधता में इनकी अभिव्यक्ति होती है.’
कोविड-19 टीकों पर पेटेंट छूट
प्रधानमंत्री ने कोविड-19 टीकों पर पेटेंट छूट के लिए समूह के समर्थन का भी आह्वान किया. विदेश मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव (आर्थिक संबंध) पी. हरीश ने कहा कि मोदी के आह्वान का दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन, डब्ल्यूटीओ के महानिदेशक ओकोंजो इविला और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतेरेस ने भी समर्थन किया.
जलवायु परिवर्तन पर एक सत्र में प्रधानमंत्री ने सामूहिक कार्रवाई पर जोर दिया. उन्होंने पर्यावरण के संबंध में भारत की उपलब्धियों को रेखांकित किया और कहा कि जी-20 समूह में भारत इकलौता देश है जो पेरिस समझौते को पूरा करने के रास्ते पर है.
उन्होंने भारत द्वारा शुरू दो महत्वपूर्ण वैश्विक पहल आपदा प्रबंधन अवसंरचना पर अंतरराष्ट्रीय गठबंधन (सीडीआरआई) और अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) के बढ़ते प्रभाव का भी जिक्र किया.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)