सुप्रीम कोर्ट ने फ़रीदाबाद ज़िले के खोरी गांव के पास अरावली वन क्षेत्र में अतिक्रमण कर बनाए गए क़रीब 10,000 आवासीय निर्माण को हटाने के लिए हरियाणा और फ़रीदाबाद नगर निगम को दिए आदेश दिया है. इस बीच खोरी गांव के एक व्यक्ति की आत्महत्या का माला सामने आया है. परिजनों का कहना है कि मकान टूटने की आशंका से वह मानसिक तनाव में थे.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने खोरी गांव के पास अरावली वन क्षेत्र में अतिक्रमित करीब 10,000 आवासीय निर्माण को हटाने के लिए हरियाणा और फरीदाबाद नगर निगम को दिए अपने आदेश पर बृहस्पतिवार को रोक लगाने से इनकार कर दिया.
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘हम अपनी वन भूमि खाली चाहते हैं.’
जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने राज्य और नगर निकाय को इस संबंध में उसके सात जून के आदेश पर अमल करने का निर्देश दिया.
शीर्ष अदालत उस आवेदन पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें गांव में आवासीय ढांचों को तोड़ने पर रोक लगाने का आग्रह किया गया था.
न्यायालय ने सात जून को एक अलग याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य और फरीदाबाद नगर निगम को निर्देश दिया था कि गांव के पास अरावली वन क्षेत्र में सभी अतिक्रमण को हटाएं और कहा था कि जमीन पर कब्जा करने वाले कानून के शासन की आड़ नहीं ले सकते हैं और निष्पक्षता की बात नहीं कर सकते हैं.
शीर्ष अदालत ने फरीदाबाद जिले में खोरी गांव के पास वन भूमि से सभी अतिक्रमण हटाने के बाद राज्य सरकार से छह हफ्ते में अनुपालन रिपोर्ट तलब की थी.
इस साल अप्रैल में जब फरीदाबाद नगर निगम ने खोरी गांव के घरों को ध्वस्त करना शुरू किया तो यहां के निवासियों ने सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. तब पीठ ने उन्हें ‘भूमि हथियाने वाला’ करार दिया था और उनकी सहायता के लिए आने से इनकार कर दिया था.
बृहस्पतिवार को वीडियो कॉन्फ्रेंस से हुई सुनवाई के दौरान निर्माण को तोड़ने पर रोक का आग्रह कर रहे याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील अपर्णा भट ने कहा कि गांव में करीब 10,000 परिवार हैं.
पीठ ने कहा, ‘कृपया हमें संख्या न दें. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. हम अपनी वन भूमि खाली चाहते हैं.’
पीठ ने कहा, ‘हमने पर्याप्त समय दिया है. अधिसूचना जारी की गई थी, लेकिन आप अपने जोखिम पर वहां रुके रहे.’ पीठ ने कहा, ‘यह वन भूमि है. साधारण जमीन नहीं है.’
भट ने पुनर्वास की दलील देते हुए कहा कि राज्य के प्राधिकारियों ने पात्रता के मुद्दे को नहीं उठाया है और पहचान प्रक्रिया नहीं की गई है. पीठ ने संबंधित मामले में पांच अप्रैल को पारित किए गए अपने आदेश का हवाला देकर कहा कि नगर निकाय कानून के मुताबिक कदम उठाएगा.
पीठ ने नगर निगम के वकील से कहा, ‘आपको उन्हें कानून के अनुसार हटाना है. आपको उन लोगों को (पुनर्वास की) योजना का लाभ देना हैं, जो पात्र हैं.’
भट ने दलील दी कि प्राधिकारी वहां रहने वालों को जबरन हटाने के लिए आए हैं और निर्माण विध्वंस से पहले उन्हें सत्यापन की कवायद करनी चाहिए.
पीठ ने पूछा कि क्या याचिकाकर्ताओं ने सत्यापन के लिए निगम को अतिरिक्त दस्तावेज दिए हैं और कहा कि पहले ही पर्याप्त समय दिया जा चुका है.
भट ने कोविड-19 महामारी का हवाला देते हुए कहा, ‘इन लोगों और उनकी स्थिति को देखिए. वे प्रवासी मजदूर हैं. वहां बच्चे हैं.’
पीठ ने कहा, ‘यह राज्य को करना है. हमारा सरोकार केवल वन क्षेत्र को खाली कराने से है. हमने पहले ही पर्याप्त समय दिया है.’
शीर्ष अदालत ने कहा कि लोग पहचान और पुनर्वास के वास्ते निगम को अपने दस्तावेज पेश कर सकते हैं.
जब भट ने महामारी के दौरान न हटाए जाने से संबंधित वैश्वविक दिशा-निर्देशों का हवाला दिया तो पीठ ने कहा, ‘हमें वैश्विक दिशानिर्देशों से मतलब नहीं है. यह मुद्दा लंबे समय से चल रहा है. इस चरण पर कोई रियायत नहीं दिखाई जा सकती है.’
उसने कहा कि याचिकाकर्ताओं से निगम के समक्ष पुनर्वास योजना के लिए दस्तावेज पेश करने को कहा गया था लेकिन वे नाकाम रहे.
पीठ ने कहा कि वन भूमि से अतिक्रमण कानूनी प्रक्रिया का पालन करके ही हटाया जाएगा. उसने कहा कि मामले से संबंधित बड़ा मुद्दा लंबित है और वह 27 जुलाई को याचिका पर सुनवाई करेंगे.
मगर पीठ ने स्पष्ट किया कि याचिका का लंबित होना वन भूमि पर बनाए गए अनधिकृत ढांचों को हटाने में अधिकारियों के रास्ते में नहीं आएगा.
सुनवाई के आखिर में हरियाणा की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि निर्माण तोड़ने की प्रक्रिया के दौरान पथराव की कुछ घटनाएं हुई हैं, लिहाजा इस बाबत कुछ निर्देश दिए जाएं ताकि प्रक्रिया शांतिपूर्ण रहे.
इस पर पीठ ने कहा, ‘हम इस पर कुछ नहीं कहना चाहते हैं. हम चाहते हैं कि हमारे आदेश पर अमल हो.’
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने बीते सात जून को राज्य और फरीदाबाद नगर निगम को निर्देश दिया था कि गांव के पास अरावली वन क्षेत्र में सभी अतिक्रमण हटाया जाए और छह हफ्ते में अनुपालन रिपोर्ट सौंपी जाए.
इसी साल अप्रैल में जब फरीदाबाद नगर निगम ने खोरी गांव के घरों को ध्वस्त करना शुरू किया तो यहां के निवासियों ने सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. लगभग 300 घरों को गिराए जाने के बाद बाकी के 10,000 घरों में रहने वालों ने अपने घरों को ध्वस्त करने से पहले पुनर्वास की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था.
खोरी गांव में मकान टूटने की आशंका से लोग सदमे में, एक व्यक्ति ने की आत्महत्या
उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद फरीदाबाद के गांव खोरी में मकान टूटने की खबरों से करीब 10 हजार परिवार सदमे में हैं और इस बीच एक व्यक्ति ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली.
पुलिस सूत्रों ने बताया कि खोरी निवासी 55 वर्षीय गणेशीलाल ने मंगलवार को पेड़ से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली.
उन्होंने कहा कि पोस्टमॉर्टम के बाद शव परिजनों को सौंप दिया गया है.
गणेशीलाल के परिजनों ने कहा कि वे मूल रूप से दिल्ली के पहाड़गंज के रहने वाले हैं और उन्होंने फरीदाबाद के खोरी गांव में मकान बनवाया था.
उन्होंने दावा किया कि गणेशीलाल उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद मकान टूटने की आशंका से मानसिक तनाव में थे और इस कारण उन्होंने आत्महत्या कर ली.
लोगों का कहना है कि गांव में करीब दस हजार परिवार हैं, जिन्होंने अपनी तमाम पूंजी मकान बनवाने में लगा दी और अब मकान टूटने का खतरा सिर पर मंडराने से वे सदमे में हैं.
खोरी निवासी शीला, शबनम, आशा आदि महिलाओं का कहना है कि उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि उन्हें यह दिन भी देखना पड़ेगा.
उन्होंने कहा कि वे करीब 20-30 साल से खोरी गांव में रह रहे हैं और उन्होंने अधिकारियों तथा भू-माफिया को एक-एक ईंट लगाने का पैसा दिया है, ऐसे में अब उनके घरों को क्यों तोड़ा जा रहा है, उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा. हालात ऐसे हैं कि वे चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि अदालत के आदेशों का पालन जिला प्रशासन हर हालत में कराएगा.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)