हिमाचल प्रदेश: 2017 के गुड़िया बलात्कार और हत्या मामले में दोषी को आजीवन कारावास की सज़ा

हिमाचल प्रदेश के शिमला ज़िले में जुलाई, 2017 में स्कूल से घर जा रही नाबालिग छात्रा की कोटखाई जंगल इलाके में बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई थी. कांग्रेस विधायक विक्रमादित्य सिंह और माकपा विधायक राकेश सिंघा ने मामले की सीबीआई जांच पर सवाल उठाते हुए दावा किया कि असली अपराधी अब भी खुलेआम घूम रहे हैं, जबकि मृत्युपर्यंत आजीवन कारावास की सज़ा पाने वाले लकड़हारे को झूठा फंसाया गया है.

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गुड़िया गैंगरेप मर्डर के विरोध में शिमला में उस दौरान हुए प्रदर्शनों की एक तस्वीर (फाइल फोटो: पीटीआई)

हिमाचल प्रदेश के शिमला ज़िले में जुलाई, 2017 में स्कूल से घर जा रही नाबालिग छात्रा की कोटखाई जंगल इलाके में बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई थी. कांग्रेस विधायक विक्रमादित्य सिंह और माकपा विधायक राकेश सिंघा ने मामले की सीबीआई जांच पर सवाल उठाते हुए दावा किया कि असली अपराधी अब भी खुलेआम घूम रहे हैं, जबकि मृत्युपर्यंत आजीवन कारावास की सज़ा पाने वाले लकड़हारे को झूठा फंसाया गया है.

गुड़िया गैंगरेप मर्डर के विरोध में शिमला में उस दौरान हुए प्रदर्शनों की एक तस्वीर (फाइल फोटो: पीटीआई)
गुड़िया गैंगरेप मर्डर के विरोध में शिमला में उस दौरान हुए प्रदर्शनों की एक तस्वीर (फाइल फोटो: पीटीआई)

शिमला: हिमाचल प्रदेश के बहुचर्चित गुड़िया बलात्कार और हत्या के मामले में अदालत ने शुक्रवार को दोषी को मृत्यु होने तक आजीवन कारावास की सजा सुनाई. चार साल पहले हुए इस अपराध की घटना के सामने आने के बाद पूरे राज्य में रोष व्याप्त हो गया था.

शिमला की एक अदालत ने इस मामले में लकड़हारे अनिल कुमार उर्फ नीलू (28 वर्ष) पर 10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है. विशेष न्यायाधीश राजीव भारद्वाज ने दोषी की मौजूदगी में यह आदेश सुनाया.

अदालत ने इससे पहले 28 अप्रैल को 16 वर्षीय स्कूली छात्रा के साथ बलात्कार और हत्या के मामले में अनिल को दोषी ठहराया था.

गौरतलब है कि चार जुलाई, 2017 को स्कूल से घर जा रही छात्रा की शिमला के कोटखाई के जंगल इलाके में बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई थी.

विशेष न्यायाधीश भारद्वाज ने 28 अप्रैल को अनिल कुमार को बलात्कार और हत्या से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धाराओं के साथ-साथ यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत दोषी ठहराया था.

फैसले से नाखुश गुड़िया की मां ने मामले की दोबारा जांच की मांग की. उन्होंने बताया कि अपराध किसी एक व्यक्ति ने नहीं किया है. उन्होंने मांग की कि मामले की दोबारा जांच की जाए और सभी दोषियों को फांसी दी जाए.

निर्दोष होने का दावा करते हुए दोषी ने अदालत के बाहर संवाददाताओं से कहा कि वह हाईकोर्ट में आदेश को चुनौती देगा.

इस बीच कांग्रेस विधायक विक्रमादित्य सिंह और माकपा विधायक राकेश सिंघा ने भी सीबीआई जांच पर सवाल उठाते हुए दावा किया कि असली अपराधी अब भी खुलेआम घूम रहे हैं.

हालांकि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि मामला बहुत चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं था और यह अपराध घने जंगल में हुआ था.

सीबीआई ने कहा कि अन्य सबूतों के साथ डीएनए के माध्यम से अपराध में आरोपी की संलिप्तता स्थापित की गई थी.

इस मामले में कई नाटकीय मोड़ आए, जिसमें अपराध करने के संदेह में एक व्यक्ति की हिरासत में मौत और इस संबंध में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की गिरफ्तारी शामिल है.

सीबीआई ने तब मामले की कमान संभाली और तीन साल पहले अनिल कुमार को गिरफ्तार किया.

न्यायाधीश ने कहा कि सीबीआई द्वारा पेश किए गए सबूतों के 14 महत्वपूर्ण बिंदुओं में से 12 दोषी के खिलाफ गए. उन्होंने कहा कि उनमें से सबसे महत्वपूर्ण था, उसके डीएनए का अपराध स्थल पर मिले नमूनों से मिलान करना.

इस बीच शिमला (ग्रामीण) से कांग्रेस विधायक विक्रमादित्य सिंह ने एक फेसबुक पोस्ट में कहा कि उनके पिता और तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने गुड़िया को न्याय दिलाने के लिए सीबीआई को जांच सौंपी थी, लेकिन एक गरीब लकड़हारे को गलत जांच के कारण मामले में फंसा दिया गया था.

कांग्रेस विधायक ने कहा कि कोटखाई पुलिस सीबीआई से बेहतर जांच करती. उन्होंने कहा कि असली अपराधी अभी भी फरार हैं, जबकि लकड़हारे को झूठा फंसाया गया है.

माकपा के एकमात्र विधायक राकेश सिंघा ने पत्रकारों से कहा कि मामले की दोबारा जांच होनी चाहिए. आम आदमी भी जानता है कि अपराध किसी एक व्यक्ति ने नहीं बल्कि एक गिरोह ने किया है और अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं.

किशोरी के लापता होने के दो दिन बाद उसका शव जंगल में मिला था. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में बलात्कार और हत्या की बात सामने आई थी. कुछ दिनों बाद राज्य पुलिस ने महानिरीक्षक जेड जहूर जैदी की अध्यक्षता में एक विशेष जांच दल का गठन किया.

पुलिस ने 13 जुलाई 2017 को छह लोगों को गिरफ्तार किया था. उनमें से एक सूरज सिंह की 19 जुलाई 2017 को पुलिस हिरासत में मौत हो गई थी.

साल 2017 में जनता के आक्रोश के बीच हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने मामला सीबीआई को सौंप दिया, जिसने हिरासत में मौत और असली आरोपियों को बचाने के आरोप में आईजीपी सहित नौ पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया था. सूरज के साथ गिरफ्तार किए गए पांच लोगों के खिलाफ कार्रवाई सबूतों के अभाव में रद्द कर दी गई.

पुलिस अधिकारियों के खिलाफ सूरज की हिरासत में मौत के मामले को बाद में चंडीगढ़ स्थानांतरित कर दिया गया, जहां इस पर सुनवाई हुई.

मालूम हो कि साल 2018 में सीबीआई के जांच पर गुड़िया के पिता ने सवाल उठाए थे. उन्होंने कहा था, ‘जिस व्यक्ति (अनिल कुमार उर्फ नीलू) को पकड़कर सीबीआई ने मामला सुलझा लेने का दावा किया है, वह अकेला मुजरिम नहीं हो सकता है. मामले में प्रभावशाली लोग हैं.’

इसके अलावा उन्होंने सीबीआई जांच पर सवाल उठाते हुए कहा, ‘सीबीआई का कहना है कि मेरी बेटी का चार जुलाई को ही बलात्कार के बाद नीलू ने कत्ल कर दिया. लेकिन सवाल उठता है कि जंगली जानवरों से भरे दांदी जंगल में दो दिन तक उसकी लाश कैसे सुरक्षित रही? लाश में खून तक नहीं था. एक टांग टूटी हुई नजर आ रही थी. कपड़े किनारे से ऐसे रखे गए थे मानो लाश लाश वहां फेंकने के बाद रखे हों.’

तीन साल में दो बार- पहले एसआईटी और फिर सीबीआई ने मामले को सुलझाने का दावा किया था. उसके बाद साल 2020 में पीड़िता की मां ने सुप्रीम कोर्ट से आपराधिक रिट याचिका वापस लेकर हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट का रुख कर मामले की दोबारा जांच की मांग की थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)