कर्नाटक हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार पर उन फिल्मों के संबंध में दोबारा समीक्षा की शक्तियों के प्रयोग पर रोक लगाई हुई है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी बरक़रार रखा है. केंद्र सरकार ने मसौदा सिनेमेटोग्राफ (संशोधन) विधेयक 2021 पर दो जुलाई तक जनता की राय मांगी है. विधेयक में फिल्मों की पायरेसी पर जेल की सज़ा और जुर्माने का प्रावधान भी प्रस्तावित है.
नयी दिल्ली: केंद्र सरकार ने मसौदा सिनेमेटोग्राफ (संशोधन) विधेयक 2021 पर शुक्रवार को जनता की राय मांगी, जिसमें फिल्मों की पायरेसी पर जेल की सजा और जुर्माने का प्रावधान प्रस्तावित है. इसमें केंद्र सरकार को शिकायत मिलने के बाद पहले से प्रमाणित फिल्म को पुन: प्रमाणन का आदेश देने का अधिकार भी प्रस्तावित किया गया है.
सूचना और प्रसारण मंत्रालय (एआईबी) ने आम जनता से मसौदा विधेयक पर दो जुलाई तक अपने सुझाव भेजने को कहा है.
अधिसूचना के अनुसार, ‘सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने सिनेमेटोग्राफ (संशोधन) विधेयक, 2021 प्रस्तावित किया है, जिसमें फिल्मों के प्रदर्शन के लिए स्वीकृति की प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बनाने, बदलते समय के साथ बदलने और पायरेसी की समस्या पर लगाम लगाने के लिए प्रावधान हैं.’
मंत्रालय ने कहा कि प्रस्तावित बदलावों में फिल्मों को ‘अप्रतिबंधित सार्वजनिक प्रदर्शन’ की श्रेणी में प्रमाणित करने से संबंधित प्रावधानों में संशोधन का प्रस्ताव है, ताकि मौजूदा ‘यू/ए’ श्रेणी को आयु के आधार पर और श्रेणियों में विभाजित किया जा सके.
मंत्रालय ने विधेयक के मसौदे में फिल्म पायरेसी के लिए दंडनीय प्रावधान शामिल किया है और कहा कि इंटरनेट पर फिल्मों के पायरेटेड संस्करण जारी करने से फिल्म जगत और सरकारी खजाने को बहुत नुकसान होता है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, नवंबर 2000 में सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट के एक फैसले को बरकरार रखा था, जिसमें केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) या सेंसर बोर्ड द्वारा पहले से प्रमाणित फिल्मों के संबंध में केंद्र की निगरानी शक्तियों को रद्द कर दिया गया था.
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने कहा कि वह अधिनियम की धारा 5बी(1) के उल्लंघन पर केंद्र सरकार को पुनरीक्षण शक्तियां देने का प्रावधान जोड़ना चाहते हैं.
मसौदे में कहा गया, ‘चूंकि धारा 5बी(1) के प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 19(2) से लिए गए हैं और बातचीत योग्य नहीं है. मसौदा बिल में धारा 6 की उपधारा (1) जोड़ने का भी प्रावधान प्रस्तावित है, जिसमें सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए फिल्मों के प्रमाणीकरण और अधिनियम की धारा 5बी(1) के उल्लंघन के संबंध में केंद्र सरकार द्वारा कोई संदर्भ प्राप्त होने पर यदि आवश्यक हो तो केंद्र बोर्ड के चेयरमैन को फिल्मों का दोबारा मूल्यांकन करने का निर्देश दे सकती है.’
इसमें कहा गया कि मौजूदा सिनेमेटोग्राफ अधिनियम 1952 की धारा 6 के तहत केंद्र सरकार को किसी फिल्म के प्रमाणन के लिए कार्यवाही को रिकॉर्ड करने के लिए शक्तियां थीं. इसका मतलब है कि अगर स्थिति जरूरी है तो केंद्र सरकार के पास केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड का फैसले पलटने की शक्ति है.
हालांकि कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा था कि केंद्र सरकार उन फिल्मों के संबंध में दोबारा समीक्षा की शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकती, जो पहले से ही बोर्ड द्वारा प्रमाणित हैं. इस फैसले को 28 नवंबर 2000 को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा था.
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि कुछ मामलों में विधानमंडल उचित कानून बनाकर न्यायिक या कार्यकारी फैसलों को रद्द कर सकता है.’
इस संबंध में कहा गया कि कभी-कभी किसी फिल्म के खिलाफ शिकायतें मिलती हैं, जो फिल्म के प्रमाणीकरण के बाद सिनेमेटोग्राफ अधिनियम 1952 की धारा 5बी(2) के उल्लंघन का संकेत देती है.
इस अधिसूचना में कहा गया है, ‘अप्रतिबंधित सार्वजनिक प्रदर्शनी श्रेणी के तहत फिल्मों के प्रमाणन से संबंधित प्रावधानों में संशोधन का प्रस्ताव है, ताकि मौजूदा यू/ए श्रेणी को आयु के आधार पर यू/ए 7+, यू/ए 13+ और यू/ए 16+ श्रेणियों में विभाजित किया जा सके.’
मंत्रालय ने फिल्म पायरेसी पर कहा, ‘अधिकतर मामलों में सिनेमा हॉल में गैरकानूनी ढंग से फिल्मों का डुप्लीकेशन किया जाता है. मौजूदा समय में सिनेमेटोग्राफ अधिनियम, 1952 में फिल्म पायरेसी को रोकने के लिए कोई सक्षम प्रावधान नहीं हैं.’
मसौदा बिल में धारा 5एए को शामिल करने का प्रस्ताव रखा गया है, जो गलत तरीके से फिल्म को रिकॉर्ड करने से रोकता है.
मंत्रालय ने विधेयक के मसौदे में फिल्म पायरेसी के लिए दंडनीय प्रावधान शामिल किया है और कहा कि इंटरनेट पर फिल्मों के पायरेटेड संस्करण जारी करने से फिल्म जगत और सरकारी खजाने को बहुत नुकसान होता है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)