भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी मानवाधिकार वकील सुधा भारद्वाज ने बीते 11 जून को डिफॉल्ट ज़मानत के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की है. जस्टिस एसएस शिंदे और जस्टिस एनजे जामदार की खंडपीठ ने एनआईए को इस पर हलफ़नामा दाख़िल करने के लिए तीन जुलाई तक का समय दिया है.
मुंबई: बॉम्बे उच्च न्यायालय ने मंगलवार को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को एल्गार परिषद-भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी सुधा भारद्वाज की जमानत अर्जी पर तीन जुलाई तक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया.
भारद्वाज को 28 अगस्त, 2018 को गिरफ्तार किया गया था और वे तब से जेल में हैं. उनके और कुछ अन्य कार्यकर्ताओं के खिलाफ गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था.
उल्लेखनीय है कि बीते 11 जून को सुधा भारद्वाज ने डिफॉल्ट जमानत के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
भारद्वाज ने जमानत की गुहार लगाते हुए दलील दी थी कि निचली अदालत के न्यायाधीश को उनके खिलाफ दायर 2019 के आरोपपत्र पर संज्ञान लेने का अधिकार नहीं है क्योंकि उस समय न्यायाधीश यूएपीए से जुड़े मामलों पर सुनवाई के लिए एनआईए कानून के तहत विशेष न्यायाधीश नहीं थे.
सुधा भारद्वाज ने अपनी याचिका में सूचना के अधिकार कानून के तहत उच्च न्यायालय से प्राप्त दस्तावेजों को आधार बनाते हुए तर्क दिया कि पुणे में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश किशोर वदाने को पुणे पुलिस द्वारा फरवरी 2019 में दाखिल 1,800 पन्नों के पूरक आरोपपत्र पर संज्ञान लेने का अधिकार नहीं है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, हालांकि, एनआईए की ओर से दलील देते हुए अधिवक्ता संदेश पाटिल ने याचिका का विरोध किया और कहा कि चूंकि केंद्रीय एजेंसी ने जांच अपने हाथ में ले ली है, इसलिए इस स्तर पर राज्य पुलिस के खिलाफ शिकायतें सुनवाई योग्य नहीं हैं और उन्होंने जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा.
जस्टिस एसएस शिंदे और जस्टिस एनजे जामदार की खंडपीठ ने मंगलवार को एनआईए के वकील संदेश पाटिल को याचिका के जवाब में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया और अगली सुनवाई के लिए तीन जुलाई की तारीख तय की.
बता दें कि मई में सुधा भारद्वाज सहित एल्गार परिषद मामले में जेल में बंद कार्यकर्ताओं के परिवार के सदस्यों ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर महामारी की दूसरी लहर के संबंध में जेल से उनकी रिहाई की मांग की थी.
पिछले साल भारद्वाज के परिवार ने जेल में उनकी स्वास्थ्य स्थिति पर गंभीर चिंता जताई थी.
बीते साल कोरोना की पहली लहर के दौरान एनआईए ने कार्यकर्ताओं की जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि मधुमेह और उच्च रक्तचाप से जूझ रहे उम्रदराज कार्यकर्ता जमानत के लिए अपील करने में महामारी का अनुचित लाभ उठा रहे हैं.
मानवाधिकारों के लिए लड़ने वाली वकील सुधा भारद्वाज ने करीब तीन दशकों तक छत्तीसगढ़ में काम किया है. सुधा पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की राष्ट्रीय सचिव भी हैं.
उन्हें अगस्त 2018 में पुणे पुलिस द्वारा जनवरी 2018 में भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा और माओवादियों से कथित संबंधों के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
उन पर हिंसा भड़काने और प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के लिए फंड और मानव संसाधन इकठ्ठा करने का आरोप है, जिसे उन्होंने बेबुनियाद बताते हुए राजनीति से प्रेरित कहा था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)