कोरोना टीकाकरण के लिए दबाव बनाना मौलिक अधिकारों का हननः मेघालय हाईकोर्ट

मेघालय हाईकोर्ट ने कहा कि दुकानदारों, टैक्सी ड्राइवरों आदि को अपना व्यवसाय दोबारा शुरू करने के लिए टीका लगाने के लिए मजबूर करना इससे जुड़े भलाई के मूल उद्देश्य को प्रभावित करता है.

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(फोटो साभार: ट्विटर/स्वास्थ्य मंत्रालय)

मेघालय हाईकोर्ट ने कहा कि दुकानदारों, टैक्सी ड्राइवरों आदि को अपना व्यवसाय दोबारा शुरू करने के लिए टीका लगाने के लिए मजबूर करना इससे जुड़े भलाई के मूल उद्देश्य को प्रभावित करता है.

(फोटो साभार: ट्विटर/स्वास्थ्य मंत्रालय)
(फोटो साभार: ट्विटर/स्वास्थ्य मंत्रालय)

नई दिल्लीः मेघालय हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि जबरन टीकाकरण करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (जी) के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हनन है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने कहा कि दुकानदारों, टैक्सी ड्राइवरों आदि को अपना व्यवसाय दोबारा शुरू करने के लिए टीका लगाने के लिए मजबूर करना इससे जुड़े कल्याण के मूल उद्देश्य को प्रभावित करता है.

बार एंड बेंच के अनुसार,के अनुसार, कहा गया है कि हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जबरन टीकाकरण कराना और दंडात्मक तरीके अपनाकर इसे अनिवार्य करना इससे जुड़े कल्याण के मूल उद्देश्य को नष्ट कर देता है.

इस बीच चीफ जस्टिस बिश्वनाथ सोमद्दर और जस्टिस एचएस थांगखियू की पीठ ने कहा कि टीकाकरण आज की जरूरत है और कोरोना के प्रसार को फैलने से रोकने के लिए आवश्यक कदम है लेकिन राज्य सरकार ऐसी कोई कार्रवाई नहीं कर सकता, जो संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत निहित आजीविका के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो.

हाईकोर्ट ने कहा है कि ये राज्य की जिम्मेदारी है कि वह नागरिकों को वैक्सीनेशन के फायदे के बारे में अच्छे तरीके से समझाए. साथ ही यहभी सराकर की ही जिम्मेदारी है कि वह वैक्सीनेशन को लेकर किसी भी तरह की भ्रामक खबर फैलने से रोके.

इस बीच मेघालय हाईकोर्ट ने बुधवार को अपने आदेश में राज्य की सभी दुकानों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को विशिष्ट स्थान पर टीकाकरण होने के बारे में प्रमुखता से जानकारी प्रदर्शित करने का निर्देश दिया.

इसके साथ ही अदालत ने टैक्सियों, ऑटो-रिक्शा, कैब और बसों के मामले में मालिकों को ड्राइवरों, कंडक्टरों या सहायकों के टीकाकरण की स्थिति स्पष्ट करने को कहा ताकि लोग इन सेवाओं का इस्तेमाल करने से पहले उचित फैसला ले सकें.

अदालत ने आम लोगों के हित में स्वत: संज्ञान लेकर जनहित याचिका दायर करते हुए टीकाकरण अभियान के बारे में गलत सूचना फैलाने वाले लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की चेतावनी भी दी.

चीफ जस्टिस विश्वनाथ सोमद्दर की अध्यक्षता वाली पीठ ने बुधवार को अपने आदेश में कहा था, ‘शुरुआत में यह स्पष्ट तौर पर कहा जाना चाहिए कि इस वैश्विक महामारी से निपटने के लिए टीकाकरण समय की मांग है. नहीं, एक परम आवश्यकता है.’

कई क्षेत्रों में प्रशासन द्वारा दुकानदारों, वेंडर्स, टैक्सी ड्राइवर और अन्य को काम शुरू करने से पहले टीका लगाने को कहने के बाद यह जनहित याचिका दायर की गई.

इसी तरह के एक मामले में गुजरात हाईकोर्ट ने बुधवार को जामनगर में तैनात भारतीय वायुसेना (आईएएफ) के एक अधिकारी को अस्थाई राहत दी थी. दरअसल आईएएफ ने कोरोना टीका नहीं लगने की वजह से उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया था.

28 साल के योगेंद्र कुमार ने 10 मई को मिले इसे नोटिस के बाद हाईकोर्ट का रुख किया था. दरअसल इस नोटिस में उनसे पूछा गया था कि कोविड-19 वैक्सीन लगाने से मना करने की वजह से उन्हें टर्मिनेट क्यों ना कर दिया जाए?