नए आईटी नियमों पर रोक लगाने वाली याचिकाओं पर 7 जुलाई को सुनवाई करेगा दिल्ली हाईकोर्ट

क्विंट डिजिटल मीडिया लिमिटेड, द वायर प्रकाशित करने वाले फाउंडेशन फॉर इंडिपेंडेंट जर्नलिज़्म, फैक्ट-चेक वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ चलाने वाले प्रवदा मीडिया फाउंडेशन और अन्य द्वारा आईटी नियमों को चुनौती देने वाली याचिकाएं दायर की गई हैं. पीठ ने याचिकाकर्ताओं को अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया हैं.

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(फोटो: पीटीआई)

क्विंट डिजिटल मीडिया लिमिटेड, द वायर प्रकाशित करने वाले फाउंडेशन फॉर इंडिपेंडेंट जर्नलिज़्म, फैक्ट-चेक वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ चलाने वाले प्रवदा मीडिया फाउंडेशन और अन्य द्वारा आईटी नियमों को चुनौती देने वाली याचिकाएं दायर की गई हैं. पीठ ने याचिकाकर्ताओं को अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया हैं.

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नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने डिजिटल मीडिया के नियमन के लिए बनाए गए नए सूचना प्रौद्योगिकी नियमों पर रोक लगाने से सोमवार को इनकार कर दिया और कहा कि वह इस समय ऐसा आदेश पारित करने के लिए याचिकाकर्ताओं से सहमत नहीं है. मामले की सुनवाई अब 7 जुलाई को नियमित पीठ करेगी.

सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशा निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियमावली, 2021 को चुनौती देने वाली याचिकाएं क्विंट डिजिटल मीडिया लिमिटेड और इसकी निदेशक रितु कपूर, समाचार वेबसाइट द वायर प्रकाशित करने वाले फाउंडेशन फॉर इंडिपेंडेंट जर्नलिज्म, फैक्ट-चेकिंग वेबसाइट ऑल्ट न्यूज चलाने वाले प्रवदा मीडिया फाउंडेशन और अन्य द्वारा दायर की गई हैं.

इन कंपनियों का कहना था कि उन्हें एक ताजा नोटिस जारी किया गया है, जिसमें कहा गया है कि उन्हें नियमों का पालन करना होगा, अन्यथा उनके विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी.

जस्टिस सी. हरिशंकर और जस्टिस सुब्रह्मण्यम प्रसाद की अवकाश पीठ ने कहा कि उक्त कंपनियों को केवल अधिसूचना का पालन करने के लिए नोटिस जारी किया गया था, जिस पर कोई रोक नहीं है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, उक्त कंपनियों की ओर से पेश हुईं वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन ने सोमवार को कहा कि 18 जून को डिजिटल समाचार पोर्टलों को चेतावनी दी गई कि जब तक वे नियमों का पालन नहीं करते हैं, तब तक उन्हें परिणाम भुगतने पड़ेंगे और तर्क दिया कि केंद्र सरकार समाचार मीडिया की सामग्री पर निर्णय नहीं ले सकती है.

रामकृष्णन ने यह भी कहा कि समाचार पोर्टलों ने केंद्र को बताया है कि वे इसके साथ जुड़ने के इच्छुक हैं और सरकार जो जानकारी मांग रही है वह सार्वजनिक डोमेन में है, तो जबरदस्ती कार्रवाई की कोई आवश्यकता नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘जब वे (प्राधिकारी) जबरदस्ती कार्रवाई की धमकी दे रहे हैं तो मैं निश्चित रूप से उनके आधिपत्य में आने को बाध्य हूं. वे हमें केंद्र सरकार के अनुशासनात्मक शासन के लिए मजबूर कर रहे हैं. अब तक वे हमसे केवल पत्र-व्यवहार में उलझे रहते थे. 18 जून को उन्होंने कहा, ‘आप अनुपालन करें वरना’, उसके बाद हमें अदालत आना पड़ा.’

रिपोर्ट के अनुसार, याचिकाकर्ताओं ने पीठ को बताया कि अधिनियम के तहत गैर-अनुपालन के लिए जुर्माना है, हालांकि विडंबना यह है कि नियम स्वयं अधिनियम के दायरे से पूरी तरह से बाहर हैं.

रामकृष्णन ने पीठ से कहा कि जब तक अदालत दंडात्मक कार्रवाई पर रोक नहीं लगाती, तब तक दंड लागू होगा, जैसा कि हाल ही में केरल हाईकोर्ट ने किया है. उन्होंने कहा कि न तो आईटी अधिनियम और न ही संविधान केंद्र सरकार को मीडिया द्वारा प्रकाशित सामग्री पर निर्णय लेने की अनुमति देता है.

10 मार्च को केरल हाईकोर्ट की जस्टिस पीवी आशा ने लाइव लॉ द्वारा दायर एक याचिका पर कार्रवाई करते हुए स्पष्ट रूप से केंद्र सरकार को नियमों के भाग III में प्रावधानों का पालन न करने के लिए याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई भी कठोर कार्रवाई करने से रोक दिया, क्योंकि याचिकाकर्ता कानून की रिपोर्ट और कानूनी साहित्य के प्रकाशक हैं.

दिल्ली हाईकोर्ट की अवकाश पीठ को अपनी लिखित प्रस्तुति में याचिकाकर्ताओं ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि केंद्र सरकार ने केरल हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती नहीं दी है और यह कि संघ ने एक स्थानांतरण याचिका दायर की है, जिसमें कहा गया है कि इन सभी मामलों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुना और तय किया जाना चाहिए.

याचिकाकर्ताओं ने अवकाश पीठ को यह भी बताया कि केंद्र सरकार ने अभी तक उनकी याचिका पर या तो नियमों को चुनौती देने वाली याचिका या स्टे के लिए आवेदन का जवाब दाखिल नहीं किया है, जबकि पर्याप्त समय मांगा और दिया गया है.

हालांकि, पीठ ने कहा, ‘हम आपसे सहमत नहीं हैं. आप चाहते हैं तो हम एक विस्तृत आदेश जारी कर देंगे या यदि आप चाहते हैं तो हम इसे रोस्टर पीठ के सामने दोबारा अधिसूचित कर देंगे. अनुदेश लेने के बाद आप हमें बता दीजिए.’

इस पर रामकृष्णन ने अदालत से अनुरोध किया कि अवकाश के बाद अदालत खुलने पर मामले को सूचीबद्ध किया जाए.

अदालत ने रोक लगाने के आवेदनों को रोस्टर पीठ के समक्ष सात जुलाई को सूचीबद्ध करने का आदेश दिया.

संशोधित आईटी नियमों के अनुसार, सोशल मीडिया और स्ट्रीमिंग कंपनियों को विवादास्पद सामग्री को तेजी से हटाना होगा, शिकायत निवारण अधिकारियों को नियुक्त करना होगा और जांच में सहायता करनी होगी.

इस बीच, आईटी नियमों की वैधता को लेकर प्रवदा मीडिया फॉउंडेशन की ओर से दायर नई याचिका पर अदालत ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है.

अदालत ने इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को चार सप्ताह के भीतर याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा और मामले को चार अगस्त को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया.

इसी तारीख पर ‘फॉउंडेशन फॉर इंडिपेंडेंट जर्नलिज्म’, द वायर और क्विंट डिजिटल मीडिया लिमिटेड की ओर से दायर याचिकाओं पर भी सुनवाई होनी है.

आईटी नियमों पर रोक के लिए दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि मामला रोस्टर पीठ के सामने तीन बार सुनवाई के लिए आया था और याचिकाकर्ताओं को उसी समय रोक का अनुरोध करना चाहिए था.

पीठ ने कहा, ‘मामला 27 मई को भी सामने आया था. तब भी आपको अंतरिम राहत नहीं मिली थी. अभी वे (प्राधिकारी) जो कार्रवाई कर रहे हैं वह केवल नियमों को लागू कर रहे हैं. अब आपको जो नोटिस जारी की गई है वह नियमों के पालन के लिए है क्योंकि उन पर रोक नहीं है. हम आपसे सहमत नहीं हैं.’

बता दें कि क्विंट द्वारा दायर याचिका में यह तर्क दिया गया है कि डिजिटल समाचार पोर्टलों पर सामग्री को वस्तुतः निर्देशित करने की कार्यकारी शक्ति संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 (1) (ए) का पूरी तरह से उल्लंघन करेगी.

याचिका में यह भी तर्क दिया गया है कि नियम सरकार को डिलीट करने, संशोधन या अवरुद्ध करने, निंदा, माफी के लिए मजबूर करने और नियंत्रित करने के लिए अधिकार देते हैं.

इसमें तर्क दिया गया, ऑनलाइन न्यूज पोर्टल्स को सोशल मीडिया से जोड़ना और प्रिंट न्यूज मीडिया से अलग करना अनुचित और तर्कहीन वर्गीकरण है.

(समाचार एजेंसी पीटीआई से इनपुट के साथ)