कोरोना महामारी के बीच नई दिल्ली में सेंट्रल विस्टा परियोजना के निर्माण कार्य पर रोक लगाने से इनकार करने के दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई थी, जिसने मामले में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के मद्देनजर ‘सेंट्रल विस्टा’ के निर्माण कार्य पर रोक लगाने से इनकार करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका मंगलवार को खारिज कर दी.
जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि वह हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करना चाहती, क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने चुनकर सेंट्रल विस्टा परियोजना का निर्माण कार्य रोकने का अनुरोध किया और राष्ट्रीय राजधानी में लॉकडाउन के दौरान जारी अन्य सार्वजनिक परियोजनाओं के बारे में बुनियादी शोध भी नहीं किया था.
पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने जनहित याचिका के बारे में कहा था कि यह ‘दुर्भावना से प्रेरित’ थी और इसमें ‘प्रामाणिकता का अभाव’ था तथा यह भी एक नजरिया हो सकता है.
उल्लेखनीय है कि उच्च न्यायालय ने 31 मई को इस परियोजना पर रोक लगाने के लिए दायर जनहित याचिका खारिज कर दी थी और इसके साथ ही याचिकाकर्ताओं पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था.
शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ताओं पर लगाए गए एक लाख रुपये के जुर्माने के मामले में भी हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, पीठ ने कहा, ‘असल जनहित याचिकाओं ने चमत्कार किया है, लेकिन संदिग्ध जनहित याचिकाओं ने मुश्किलें पैदा की हैं। जनहित याचिकाओं की अपनी शुचिता होती है.’
केंद्र ने हाईकोर्ट को बताया था कि निर्माण स्थल पर रहने वाले कामगारों को सभी सुविधाएं दी गई हैं और सभी कोविड दिशानिर्देशों का पालन हो रहा है.
परियोजना के तहत एक नए संसद भवन और एक नए आवासीय परिसर के निर्माण की परिकल्पना की गई है, जिसमें प्रधानमंत्री और उप-राष्ट्रपति के आवास के साथ-साथ कई नए कार्यालय भवन और मंत्रालयों के कार्यालयों के लिए केंद्रीय सचिवालय का निर्माण होना है.
पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, ‘यदि आपका आचरण यह था, तो एक लाख रुपये जुर्माना कम है.’
उसने कहा कि जब उच्च न्यायालय में हलफनामा दाखिल किया गया था कि परियोजना में कोविड-19 संबंधी प्रोटोकाल का पूरी तरह पालन किया गया, तो आपने मुकदमा क्यों जारी रखा.
याचिकाकर्ताओं अनुवादक अन्या मल्होत्रा और इतिहासकार एवं वृत्तचित्र फिल्म निर्माता सोहैल हाशमी की पैरवी करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि जब याचिका दायर की गई थी, तब कोविड-19 संबंधी नियमों का पालन नहीं किया जा रहा था और उन्होंने बाद में नियमों का पालन किया. उन्होंने कहा, ‘19 अप्रैल से 30 अप्रैल तक नियमों का पालन नहीं किया गया.’
पीठ ने कहा कि लोकहितैषी व्यक्ति होने के नाते क्या उन्होंने यह पता किया कि इस दौरान कितनी परियोजनाओं को निर्माण गतिविधि जारी रखने की अनुमति दी गई.
न्यायालय ने सवाल किया कि याचिकाकर्ताओं ने सेंट्रल विस्टा परियोजना का चयन किस आधार पर किया.
लूथरा ने कहा कि याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वे केवल उस निर्माण गतिविधि को रोकने के संबंध में आदेश चाहते थे, जिसमें दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) द्वारा जारी किए गए कोविड-9 प्रोटोकॉल निर्देशों के अनुपालन नहीं किया गया.
दिल्ली उच्च न्यायालय ने सेंट्रल विस्टा परियोजना के निर्माण कार्य को जारी रखने की 31 मई को अनुमति देते हुए कहा था कि यह राष्ट्रीय महत्व की एक ‘अहम एवं आवश्यक’ परियोजना है. इसके साथ ही अदालत ने इस परियोजना के खिलाफ याचिका खारिज करते हुए कहा था कि यह किसी मकसद से ‘प्रेरित’ और ‘दुर्भावनापूर्ण’ थी. अदालत ने याचिकाकर्ताओं पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया था.
अदालत ने कहा था कि वह याचिकाकर्ताओं के इस दावे से असहमत है कि यह परियोजना कोई आवश्यक गतिविधि नहीं है और इसलिए, मौजूदा महामारी के दौरान इसे रोक दिया जाना चाहिए.
उसने कहा था, ‘मौजूदा याचिका सेंट्रल विस्टा एवेन्यू के पुनर्विकास को तत्काल प्रभाव से रोकने के लिए दायर की गई है. यह कार्य सेंट्रल विस्टा परियोजना का हिस्सा है और महत्वपूर्ण लोक महत्व का है. सेंट्रल विस्टा एवेन्यू पुनर्विकास परियोजना के निर्माण को अलग करके नहीं देखा जा सकता.’
अदालत ने याचिकाकर्ताओं पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए चार सप्ताह के भीतर यह राशि दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के पास जमा करने का निर्देश दिया था.
मालूम हो कि बीते जनवरी महीने में सुप्रीम कोर्ट ने 2:1 की बहुमत से फैसला सुनाते हुए सेंट्रल विस्टा परियोजना की खातिर पर्यावरण मंजूरी और भूमि उपयोग में बदलाव की अधिसूचना को बरकरार रखा और इसके साथ परियोजना को हरी झंडी दे दी थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)