संयुक्त राष्ट्र की आलोचना के बाद सरकार ने कहा- स्टेन स्वामी पर क़ानून के अनुसार कार्रवाई हुई थी

संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ की मानवाधिकार संस्था द्वारा आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी की मौत पर भारत सरकार की आलोचना करने के बाद विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि देश मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है. मंत्रालय ने कहा कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने क़ानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए उन्हें गिरफ़्तार करने के बाद हिरासत में लिया था.

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फादर स्टेन स्वामी. (इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रबर्ती/द वायर)

संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ की मानवाधिकार संस्था द्वारा आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी की मौत पर भारत सरकार की आलोचना करने के बाद विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि देश मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है. मंत्रालय ने कहा कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने क़ानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए उन्हें गिरफ़्तार करने के बाद हिरासत में लिया था.

स्टेन स्वामी. (इलस्ट्रेशन: परिप्लब/द वायर)

नई दिल्ली: आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी की मौत को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचनाओं का सामना कर रही मोदी सरकार के विदेश मंत्रालय ने बीते मंगलवार को कहा कि स्वामी के खिलाफ तमाम कार्रवाईयां कानून के अनुसार की गई थीं.

मंत्रालय ने कहा कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने फादर स्टेन स्वामी को कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए गिरफ्तार किया और हिरासत में लिया था.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, ‘उनके खिलाफ विशेष आरोपों के कारण उनकी जमानत याचिकाओं को अदालतों ने खारिज कर दिया था.’

मंत्रालय ने कहा कि भारत में प्राधिकारी, अधिकारों के वैध प्रयोग के विरुद्ध नहीं बल्कि कानून के उल्लंघन के खिलाफ काम करते हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि देश में सभी कार्रवाईयां कड़ाई से कानून के अनुसार की जाती हैं.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि स्वामी के स्वास्थ्य एवं उपचार पर अदालतों की नजर थी और स्वास्थ्य खराब होने के चलते पांच जुलाई को उनकी मृत्यु हो गई.

विदेश मंत्रालय ने स्टेन स्वामी मुद्दे पर कहा कि स्वतंत्र न्यायपालिका और विभिन्न मानवाधिकार निकायों ने भारत की लोकतांत्रिक और संवैधानिक राज्य तंत्र की सराहना की है.

उन्होंने आगे कहा, ‘भारत अपने सभी नागरिकों के मानवाधिकारों को बढ़ावा देने और उनके संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है.’

भारत सरकार का ये जवाब मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की संस्था के उस बयान पर आया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह 84 वर्षीय आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी की मृत्यु होने से बहुत दुखी और परेशान है.

मानवाधिकारों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (यूएनएचसीएचआर) मिशेल बाशेलेत और संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र विशेषज्ञों ने स्वामी और 15 अन्य कार्यकर्ताओं के मामले को भारत सरकार के समक्ष पिछले तीन वर्ष में उठाया था तथा हिरासत से उनकी रिहाई की आग्रह किया था.

एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले के सिलसिले में पिछले साल गैर-कानूनी गतिविधि रोकथाम अधनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार स्टेन स्वामी की बीते सोमवार को मुंबई के एक अस्पताल में मृत्यु हो गई. निधन के बाद उनके वकील मिहिर देसाई ने मामले में न्यायिक जांच की मांग की है.

कई बीमारियों से पीड़ित स्वामी हिरासत में कोरोना वायरस से संक्रमित भी पाए गए थे.

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त की प्रवक्ता लिज थ्रोस्सेल ने कहा, ‘भारत के गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत 2020 में गिरफ्तारी के बाद 84 वर्षीय फादर स्टेन स्वामी की मुंबई में मृत्यु हो जाने से हम बहुत दुखी हैं.’

उन्होंने एक बयान में कहा, ‘फादर स्टेन को गिरफ्तारी के बाद से बगैर जमानत के सुनवाई-पूर्व हिरासत में रखा गया, 2018 में हुए प्रदर्शनों को लेकर आतंकवाद से जुड़े आरोप लगाए गए.’

प्रवक्ता ने कहा कि स्वामी मुख्य रूप से आदिवासियों और हाशिये पर मौजूद अन्य समुदायों के अधिकारों के समर्थक थे.

उन्होंने कहा, ‘उच्चायुक्त ने मानवाधिकार उल्लंघन करने के सिलसिले में यूएपीए के इस्तेमाल को लेकर भी चिंता जताई है, एक ऐसा कानून जिसे फादर स्टेन स्वामी ने मरने से पहले भारतीय अदालत में चुनौती दी थी.’

संयुक्त राष्ट्र की ‘स्पेशल रेपोर्ट्योर ऑन ह्यूमन राइट्स’ मैरी लॉलर ने कहा, ‘आज भारत से बेहद दुखी करने वाली खबर आई है. मानवाधिकार कार्यकर्ता और ईसाई पादरी फादर स्टेन स्वामी का निधन हो गया है. उन्हें आतंकवाद के झूठे आरोपों में नौ महीने तक हिरासत में रखा गया था. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जेल में रखना स्वीकार्य नहीं है.’

इससे पहले भी उन्होंने स्वामी की बिगड़ती हालत पर चिंता जताई थी और उनके लिए विशेष उपचार की मांग की थी. उन्होंने स्वामी के खिलाफ आरोपों को ‘आधारहीन’ बताया.

संयुक्त राष्ट्र के अलावा यूरोपीय संघ के मानवाधिकार के लिए विशेष प्रतिनिधि ईमन गिलमोर ने लॉलर के ट्वीट को साझा कर ट्वीट किया, ‘भारत, मुझे यह सुनकर बहुत दुख हुआ कि स्टेन स्वामी का निधन हो गया है. वह मूल निवासी लोगों को अधिकारों के लिए लड़ने वाले कार्यकर्ता थे. उन्हें पिछले नौ महीने से हिरासत में रखा गया था. ईयू ने बार-बार इस मामले को उठाया था.’

भारतीय-अमेरिकी समूहों ने स्टेन स्वामी की मृत्यु पर जताया दुख

भारतीय-अमेरिकी समूहों ने बीते मंगलवार को फादर स्टेन स्वामी की मृत्यु पर दुख जताया और उन्हें एक ऐसा सामाजिक कार्यकर्ता बताया, जिन्होंने भारत में गरीब आदिवासियों की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया.

फेडरेशन ऑफ इंडियन अमेरिकन क्रिश्चियन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ एनए (एफआईएसीओएनए) ने एक बयान में कहा कि वह एक बहादुर व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत में आदिवासियों की रक्षा और उनकी मदद करने के लिए अथक परिश्रम किया.

एफआईएसीओएनए ने कहा, ‘एक सरल एवं नम्र व्यक्ति, फादर स्वामी एक ऐसी व्यवस्था के खिलाफ खड़े थे, जो गरीब आदिवासियों और उनके संसाधनों के संप्रभु अधिकारों का शोषण करने को आमादा है.’

इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के उपाध्यक्ष जॉर्ज अब्राहम ने कहा, ‘यह भारत में लोकतंत्र के लिए एक काला दिन है और राष्ट्रीय नेतृत्व तथा न्यायपालिका के सदस्यों को शर्म से सिर झुकाना चाहिए. फादर स्वामी को हिरासत में लेना और जेल में उनके साथ जो व्यवहार हुआ, उस कारण उनकी मृत्यु हुई. यह राष्ट्र की चेतना पर धब्बा है और न्याय का उपहास है.’

आईएनओसी ने यह भी कहा कि यह कई अन्य मानवाधिकार योद्धाओं को याद करने का भी समय है, जो अब भी जेल में हैं.

भारत में नॉर्थ ईस्ट इंडिया रिजनल बिशप्स काउंसिल (एनईआईआरबीसी) ने जेसुइट पादरी और आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्वामी के निधन पर दुख जताया है.

एनईआईआरबीसी के उप सचिव फादर जीपी अमलराज ने एक बयान में कहा, ‘हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि 84 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता, जो विभिन्न बीमारियों से काफी कमजोर हो चुके थे, उन्हें उस मामले में जमानत क्यों नहीं मिली. जमानत याचिका में उन्होंने बेगुनाह होने का दावा किया था.’

इस बीच, कुछ वकीलों ने हिरासत में मौत के बारे में कानूनी परिभाषा का विस्तार करने की मांग की.

वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन ने कहा, ‘मैं हिरासत में मौत की परिभाषा का विस्तार करना चाहूंगी जिसकी अभी तक संकुचित परिभाषा है. चूंकि वह (स्टेन) प्राणसंकट रोग से पीड़ित होने के कारण उपचार करवा रहे थे और हिरासत के तहत अस्पताल में भर्ती थे, इसलिए न तो हमारे कारागार तंत्र और ना ही हमारी एजेंसियों या अदालतों ने यह सोचा कि उन्हें जमानत पर रिहा किया जाना आवश्यक है.’

एक अन्य वरिष्ठ वकील गीता लूथरा के अनुसार स्टेन की मौत हमारी व्यवस्था की विफलता है. उन्होंने इस बात पर बल दिया कि प्रत्येक व्यक्ति को सुनवाई से पहले जमानत दी जानी चाहिए.

मालूम हो कि एल्गार परिषद मामले में एनआईए द्वारा गिरफ्तार किए जाने वाले स्टेन स्वामी सबसे वरिष्ठ और 16वें व्यक्ति थे. स्टेन स्वामी अक्टूबर 2020 से जेल में बंद थे.

वह पार्किंसंस बीमारी से जूझ रहे थे और उन्हें गिलास से पानी पीने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था. इसके बावजूद स्टेन स्वामी को चिकित्सा आधार पर कई बार अनुरोध के बाद भी जमानत नहीं दी गई.

इस साल मई में स्वामी ने उच्च न्यायालय की अवकाश पीठ को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से बताया था कि तलोजा जेल में उनका स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता ही रहा है.

उन्होंने उच्च न्यायालय से उस वक्त अंतरिम जमानत देने का अनुरोध किया था और कहा था कि अगर चीजें वहां ऐसी ही चलती रहीं तो वह ‘बहुत जल्द मर जाएंगे.’ वे अपने आखिरी समय में रांची में अपने लोगों के साथ रहना चाहते थे.

स्टेन स्वामी की मौत को लेकर उनके करीबियों के अलावा कई राजनीतिक दलों ने भी गहरी नाराजगी जताई है और उनकी मौत के लिए केंद्र सरकार एवं जांच एजेंसियों को जिम्मेदार ठहराया है.

विपक्ष ने स्वामी के निधन को ‘हिरासत में हत्या’ बताते हुए कहा है कि वे इस मामले को संसद में उठाएंगे और जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग करेंगे.

गौरतलब है कि एल्गार परिषद मामले में स्वामी और सह आरोपियों को राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने आरोपित किया है. एजेंसी के मुताबिक आरोपी मुखौटा संगठन के सदस्य हैं जो प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के लिए काम करता है.

एनआईए ने पिछले महीने हाईकोर्ट में हलफनामा दाखिल कर स्वामी की जमानत याचिका का विरोध किया था. एजेंसी ने कहा कि उनकी बीमारी का ‘निर्णायक सबूत’ नहीं है. हलफनामे में कहा गया कि स्वामी माओवादी हैं, जिन्होंने देश में अशांति पैदा करने की साजिश रची.

एल्गार परिषद मामला पुणे में 31 दिसंबर 2017 को आयोजित संगोष्ठी में कथित भड़काऊ भाषण से जुड़ा है. पुलिस का दावा है कि इस भाषण की वजह से अगले दिन शहर के बाहरी इलाके में स्थित कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई. पुलिस का दावा है कि इस संगोष्ठी का आयोजन करने वालों का संबंध माओवादियों के साथ था.

(समाचार एजेंसी पीटीआई से इनपुट के साथ)

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