फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल की वेबसाइट पर दंगा पीड़ितों की फोटो, परिवार को ‘विदेशी’ ठहराए जाने का डर

असम में साल 2012 में बोडो और बांग्ला भाषी मुस्लिमों के भीषण सांप्रदायिक दंगे हुए थे. इस दौरान विस्थापित हुए एक परिवार की तस्वीर को राज्य सरकार के गृह विभाग ने फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के बारे में जानकारी देते हुए अपने पेज पर लगाया है.

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सरकारी वेबसाइट पर लगाई गई फोटो. (साभार: homeandpolitical.assam.gov.in/)

असम में साल 2012 में बोडो और बांग्ला भाषी मुस्लिमों के भीषण सांप्रदायिक दंगे हुए थे. इस दौरान विस्थापित हुए एक परिवार की तस्वीर को राज्य सरकार के गृह विभाग ने फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के बारे में जानकारी देते हुए अपने पेज पर लगाया है.

सरकारी वेबसाइट पर लगाई गई फोटो. (साभार: homeandpolitical.assam.gov.in/)

नई दिल्ली: असम सरकार के गृह विभाग ने फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के बारे में जानकारी देते हुए अपने पेज पर साल 2012 के बोडो और बांग्ला भाषी मुस्लिमों के बीच हुए असम के सबसे भीषण सांप्रदायिक दंगे से प्रभावित एक परिवार की एक तस्वीर लगाई है, जिसे लेकर इस परिवार ने चिंता ज़ाहिर की है कि उन्हें विदेशी ठहराया जा सकता है.

फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल (एफटी) एक अर्धन्यायिक निकाय है, जिसका काम असम की नागरिकता संबंधी मामलों का निपटारा करना है. असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) से बाहर किए गए 19 लाख लोगों का आख़िरी सहारा अब यही संस्था है.

इब्राहिम अली (39), जिनके परिजन इस तस्वीर में हैं, ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि वे एकदम अचंभित रह गए जब उन्होंने देखा कि उनके परिवार को ‘विदेशीके रूप में दर्शाया गया है.

उन्होंने साल 2012 की हिंसा को याद करते हुए बताया, ‘हमारे घर जलाए जाने से पहले हम वहां से भागने में कामयाब हो पाए थे. यदि लोग इस वेबसाइट पर जाकर फोटो को देखेंगे तो क्या वे यही नहीं सोचेंगे (कि हम विदेशी हैं)? वैसे हमारे पास सारे काग़ज़ हैं और हमारा नाम एनआरसी में है.’

बीते शनिवार को ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन (आम्सू) ने असम के मुख्य सचिव को एक ज्ञापन देकर इस तस्वीर को हटाने की मांग की है. उन्होंने कहा कि ऐसी तस्वीर लगाकर प्रशासन एक भारतीय नागरिक को विदेशी के रूप में दर्शा रहा है.

संगठन ने कहा, ‘चिरांग जिले के बिजनी राजस्व मंडल के अंतर्गत ग्रामभवानीपुर में रहने वाले एक परिवार की तस्वीर को गृह और राजनीतिक विभाग की आधिकारिक वेबसाइट में विदेशी के रूप में चित्रित किया गया है. असम सरकार द्वारा वास्तविक भारतीय नागरिकों को विदेशियों के रूप में दर्शाना अपमानजनक है, असंवैधानिक, अवैध है.’

छात्र संगठन के अध्यक्ष रेजौल करीम सरकार ने दावा किया कि जब लोग वेबसाइट परफॉरेनर्समामलों को सर्च करते हैं तो यह तस्वीर निकलकर आती है, जबकि ये परिवार दंगों का शिकार रही है, जिसके चलते उन्हें विस्थापन की त्रासदी को झेलना पड़ा है.

असम सरकार के प्रधान सचिव नीरज वर्मा ने कहा कि टिप्पणी करने से पहले उन्हेंतस्वीर की जांचकरने की जरूरत है. उन्होंने कहा, ‘मुझे ज्ञापन के बारे में जानकारी नहीं है, लेकिन मुझे इसकी जांच करने दें कि यह कौन सी तस्वीर थी.’

24 जुलाई 2012 को इस दंगे की तस्वीर खींचने वाले फ़ोटोग्राफर और जर्नलिस्ट अब्दुल मालेक अहमद चिंता ज़ाहिर करते हुए उम्मीद जताते हैं कि इस तस्वीर का ग़लत इस्तेमाल न किया जाए.

उन्होंने कहा, ‘मैंने ये फोटो पीड़ित लोगों की मदद के लिए लिया था. विडंबना यह है कि अब इस फोटो को विदेशियों के रूप में दर्शाया जा रहा है.’

इस दंगे में क़रीब 100 लोगों की मौत हुई थी और चार लाख लोग विस्थापित हुए थे.