राजस्थान: शीर्ष अदालत ने ऑनर किलिंग के आरोपी को हाईकोर्ट से मिली ज़मानत रद्द की

मामला 2017 का है, जहां राजस्थान की युवती से अंतरजातीय विवाह करने पर केरल के एक युवक की कथित तौर पर लड़की के घरवालों के इशारे पर हत्या कर दी गई थी. 2018 में भी हाईकोर्ट से मिली ज़मानत को सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज किया था. 

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(फोटो: पीटीआई)

मामला 2017 का है, जहां राजस्थान की युवती से अंतरजातीय विवाह करने पर केरल के एक युवक की कथित तौर पर लड़की के घरवालों के इशारे पर हत्या कर दी गई थी. 2018 में भी हाईकोर्ट से मिली ज़मानत को सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज किया था.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को ऑनर किलिंग के मामले में एक आरोपी को राजस्थान उच्च न्यायालय से दी गई जमानत रद्द कर दी.

मामला 2017 का है जिसमें केरल के एक युवक की कथित तौर पर अन्य जाति की राजस्थानी युवती से विवाह करने पर उसके ससुराल वालों के इशारे पर हत्या कर दी गई थी.

प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने मृतक अमित नायर के साले और आरोपी मुकेश चौधरी को मिली जमानत को ‘बरकरार न रखने योग्य’ करार देते हुए चौधरी को निचली अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करने को कहा, जिसे एक साल के अंदर सुनवाई पूरी करनी होगी.

पीठ ने कहा, ‘अपराध की प्रकृति पर विचार करते हुए, यह उचित होगा कि मुकदमे की सुनवाई जल्द से जल्द पूरी की जाए. सुनवाई अदालत मुकदमे को समाप्त करने और यथाशीघ्र मामले को निस्तारित करने के लिए हरसंभव प्रयास करेगी लेकिन किसी भी सूरत में यह इस आदेश की प्रति प्राप्त होने के एक साल के बाद नहीं होना चाहिए.’

पीठ में जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस ऋषिकेश रॉय भी शामिल थे.

प्रधान न्यायाधीश ने मृतक के साले की जमानत रद्द करते हुए शीर्ष अदालत के एक पूर्व आदेश का हवाला दिया और कहा, ‘इस न्यायालय द्वारा पहले ही संज्ञान में लिए गए दस्तावेज इंगित करते हैं कि प्रतिवादी संख्या-2 (मुकेश चौधरी) के खिलाफ प्रथम दृष्टया सामग्री है.’

शीर्ष अदालत ने आरोपी की उस दलील को खारिज कर दिया कि प्रमुख गवाह, नायर की पत्नी से जिरह, सुनवाई के दौरान हो चुकी है इसलिए उसे जमानत दी जा सकती है. न्यायालय ने कहा कि पीड़ित की विधवा का बयान पूरी तरह से साक्ष्य नहीं है.

न्यायालय ने कहा, ‘हमारी यह सुविचारित राय है कि यहां आक्षेपित राजस्थान उच्च न्यायालय की जयपुर पीठ का एक दिसंबर 2020 का आदेश, कायम रखने योग्य नहीं है. इसलिए उसे दरकिनार किया जाता है और प्रतिवादी संख्या 2 को दी गई जमानत रद्द की जाती है.  हम इसलिए प्रतिवादी संख्या दो मुकेश चौधरी को अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश देते हैं.’

शीर्ष अदालत ने हालांकि यह स्पष्ट किया कि उसने मामले के गुण-दोष पर कोई टिप्पणी नहीं की है और निचली अदालत को उसके द्वारा व्यक्त राय से किसी भी तरह प्रभावित हुए बिना मामले को देखना चाहिए.

न्यायालय ने कहा कि 47 में से 21 गवाहों से अब तक पूछताछ हो चुकी है और निर्देश दिया की सुनवाई एक साल में पूरी की जाए.

न्यायालय ने मुकेश की जमानत रद्द करने का आदेश उसकी बहन ममता नायर की याचिका पर दिया है. ममता ने अपने माता-पिता की मर्जी के खिलाफ अगस्त 2015 में अमित से विवाह किया था. अमित जयपुर की रहने वाली ममता के भाई मुकेश का मित्र था.

दो साल बाद, मई 2017 में ममता के माता-पिता जीवनराम चौधरी और भगवानी देवी ने अपने दामाद अमित नायर की कथित तौर पर जयपुर में हत्या करने की साजिश रची. पुलिस ने बताया था कि ममता के माता-पिता एक अज्ञात व्यक्ति के साथ उसके घर में घुस आए और उस व्यक्ति ने अमित को गोली मारी. उनका एक अन्य साथी बाहर खड़ी कार में उनका इंतजार कर रहा था.

अमित की मां रमा देवी ने जयपुर में 17 मई, 2017 को हत्या, आपराधिक साजिश रचने समेत भारतीय दंड संहिता की अन्य संबंधित धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज करवाई थी.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, राजस्थान उच्च न्यायालय के जस्टिस पंकज भंडारी ने एक दिसंबर, 2020 को अपने आदेश में मुकेश की जमानत याचिका को एक लाख रुपये के निजी मुचलके पर मंजूर कर लिया था. उनके वकील ने दलील दी थी कि हत्या के समय मुकेश वहां मौजूद नहीं था.

उच्च न्यायालय के आदेश के बाद ममता ने वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह के माध्यम से शीर्ष अदालत में एक विशेष अनुमति याचिका दायर की और तर्क दिया था कि पूरी साजिश उनके माता-पिता और मुकेश ने रची थी.

उन्होंने आरोप लगाया कि अपराध के तुरंत बाद मुकेश ने घर पर अपने माता-पिता को शरण दी थी और अपराध में इस्तेमाल किया गया वाहन उसके आवास से बरामद किया गया था.

इसके अलावा उसने आरोप लगाया कि जब से वह जमानत पर रिहा हुआ है, वह अपने रिश्तेदारों और अन्य लोगों के माध्यम से उसे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से डराने की कोशिश कर रहा है. वह अपनी और अपने बेटे की सुरक्षा को लेकर चिंतित है, जो अगले महीने चार साल का हो जाएगा.

इससे पहले मुकेश को 2017 में उच्च न्यायालय द्वारा जमानत दी गई थी, जिसे 2018 में सुप्रीम ने ठुकरा दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, ‘एफआईआर और चार्जशीट को पढ़ने से पता चलता है कि प्रथमदृष्टया इसके खिलाफ सामग्री है. इसलिए हमारी राय से फिलहाल प्रतिवादी संख्या 2 (मुकेश) जमानत देना उचित नहीं है.’

मुकेश की जमानत रद्द करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर प्रतिक्रिया देते हुए, ममता ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘भगवान का शुक्र है कि सुप्रीम कोर्ट के जज ऑनर किलिंग के मामलों के बारे में गंभीर हैं, यहां तक ​​​​कि यह पूछने के लिए कि ऐसे मामले में जमानत कैसे दी गई.’

ममता का कहना है कि आरोपी उस पर केस वापस लेने का दबाव बना रहे हैं, लेकिन वह न्याय के लिए संघर्ष करती रहेंगी. फिलहाल ममता अपने बेटे, सास और भाभी के साथ रहती है.

ममता ने कहा, ‘वे मुझे उन्हें माफ करने के लिए कहते हैं, यह कहते हुए कि यह कानूनी लड़ाई उस व्यक्ति को वापस नहीं लाएगी जो चला गया है. मैं उनसे इतना ही कहती हूं कि उन्हें वापस लौटा दो और आप जिन-जिन को चाहते हो उन सभी की रिहाई सुनिश्चित करूंगी… मुझे कोई दिक्कत नहीं है.’

ममता के पिता सेवानिवृत्त फौजी जीवनराम चौधरी अभी जेल में हैं, वहीं 9 जुलाई को राजस्थान हाईकोर्ट ने उनकी मां भगवानी देवी को जमानत दे दी.

ममता ने कहा, ‘हमने अदालत को सूचित किया था कि मामला पहले से ही सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष है, लेकिन अदालत ने उसके उम्र का हवाला देते हुए रिहाई का आदेश दिया. मैं उनकी जमानत के खिलाफ भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाऊंगी.’

इसके अलावा इस मामले में भगवान राम खोखर भी जेल में है. जयपुर पुलिस ने कहा था, भगवान राम खोखर को ममता के माता-पिता ने कथित तौर पर दो निशानेबाजों, रामदेवराम और विनोद कुमार गौरा की व्यवस्था करने के लिए 3 लाख रुपये का भुगतान किया था. दोनों भी जेल में हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)