संयुक्त किसान मोर्चा ने हरियाणा भाकियू प्रमुख गुरनाम सिंह चढूनी को उनके एक बयान को लेकर निलंबित किया है. चढूनी ने कहा था कि किसान आंदोलन में शामिल पंजाब के किसान संगठनों को विधानसभा चुनाव लड़ना चाहिए. एसकेएम का कहना है वे कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं, राजनीति नहीं कर रहे.
चंडीगढ़: संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने बुधवार को हरियाणा भारतीय किसान यूनियन (चढूनी) के प्रमुख गुरनाम सिंह चढूनी को पंजाब चुनाव के संबंध में दिए गए उनके बयान को लेकर सात दिनों के लिए निलंबित कर दिया.
चढूनी ने सुझाव दिया था कि केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन में शामिल पंजाब के किसान संगठनों को अगले साल राज्य विधानसभा चुनाव लड़ना चाहिए.
मोर्चा ने कहा कि वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शासित उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में अपने पूर्व नियोजित विरोध के साथ आगे बढ़ेगा, जहां 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं.
सिंघू बॉर्डर आंदोलन स्थल के पास संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए मोर्चा के वरिष्ठ नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि चढूनी कई बार ऐसा नहीं करने के लिए कहे जाने के बावजूद अपने ‘मिशन पंजाब’ के बारे में बयान दे रहे हैं.
राजेवाल ने कहा, ‘फिलहाल हम केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ लड़ रहे हैं. हम कोई राजनीति नहीं कर रहे हैं.’
भाकियू (राजेवाल) के अध्यक्ष राजेवाल ने कहा, ‘इसके लिए आज हमने उन्हें सात दिन के लिए निलंबित करने का फैसला किया. वह कोई बयान जारी नहीं कर पाएंगे या मंच साझा नहीं कर पाएंगे. उन पर ये प्रतिबंध लगाए गए हैं.’
एक सवाल के जवाब में राजेवाल ने कहा कि चढूनी पंजाब किसान संघों के नेताओं को राजनीतिक रास्ता अपनाने के लिए कह रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘हम उनसे कह रहे थे कि हमारा ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं है. बाद में पंजाब के नेताओं ने उनके बयानों के संबंध में शिकायत की और मंगलवार को बैठक की. आज मोर्चा ने उन्हें सात दिनों के लिए निलंबित कर दिया.’
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, वरिष्ठ किसान नेता दर्शन पाल ने कहा कि इस तरह के बयान किसानों और मजदूरों के बीच भ्रम पैदा करते हैं.
पाल ने कहा, ‘इस मुद्दे पर लंबी चर्चा की गई है. चुनाव और ‘मिशन पंजाब’ के बयान से लोग नाखुश हैं. किसानों के आंदोलन के दौरान हमारी तरफ से कोई विचलन नहीं होना चाहिए. हमें केवल भाजपा और उसके सहयोगियों के संघर्ष और विरोध पर ध्यान देना चाहिए. जब तक आंदोलन नहीं जीता जाता है, तब तक हमारी चुनावी लड़ाई में शामिल होने या किसी पार्टी को समर्थन देने की कोई योजना नहीं है. आंदोलन अलग बात है और चुनावी राजनीति अलग है.’
हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले से ताल्लुक रखने वाली चढूनी तीन विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक हैं. वह एसकेएम के नौ सदस्यों में से एक है, जो आंदोलन के संबंध में महत्वपूर्ण निर्णय लेता है.
गौरतलब है कि चढूनी ने एक सप्ताह पहले कहा था कि केंद्र के नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन में शामिल पंजाब के संगठनों को पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ना चाहिए.
हालांकि, चढूनी अपने बयान पर अड़े रहे और कहा कि एक विचार रखने के लिए उन्हें निलंबित करना गलत था. साथ ही, किसान नेता ने कहा कि वह एसकेएम के फैसले का पालन करेंगे और कृषि कानूनों के खिलाफ जारी आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहेंगे.
संयुक्त किसान मोर्चा ने सितंबर में ‘महापंचायत’ और उत्तर प्रदेश में अन्य गतिविधियों की योजना बनाई है.
अपने निलंबन पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, चढूनी ने कहा, ‘मैंने एक विचार रखा था- मिशन पंजाब… किसी को भी विचार व्यक्त करने या विचार रखने से कोई नहीं रोक सकता. इससे कोई असहमत हो सकता है. लेकिन इस आधार पर किसी को निलंबित करना गलत है.’
उन्होंने कहा, ‘फिर भी उन्होंने जो फैसला लिया है, उससे मुझे कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन मेरा रुख अब भी वही है कि हमें मिशन पंजाब चलाना चाहिए.’
उन्होंने अपने निलंबन पर प्रतिक्रिया देते हुए एक वीडियो संदेश में कहा, ‘पंजाब में प्रदर्शनकारी (जो कृषि कानूनों के खिलाफ हैं), ईमानदार लोगों, मजदूरों, किसानों और छोटे दुकानदारों को अपनी सरकार बनानी चाहिए और पारंपरिक पार्टियों को हराना चाहिए. और ऐसा करके इसे देश के सामने एक मॉडल के रूप में पेश करें. आज हमें एक दल से दूसरे दल में शासन बदलने की जरूरत नहीं है, बल्कि व्यवस्था को बदलने की जरूरत है और सत्ता से व्यवस्था को बदला जा सकता है.’
चढूनी ने कहा कि वह किसान आंदोलन में अहम भूमिका निभाते रहेंगे. उन्होंने कहा कि सरकार को यह नहीं सोचना चाहिए कि किसान संघों में किसी प्रकार का विभाजन है.
इस बीच, अगले कुछ महीनों को लेकर अपनी रणनीति की घोषणा करते हुए, राजेवाल ने कहा कि उनका अगला कदम ‘मिशन उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड’ होगा.
उन्होंने कहा, ‘हमारा अगला लक्ष्य उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में अपने आंदोलन को मजबूत करना है. एक से 25 अगस्त तक हम जिलों में बैठकें करेंगे. पांच सितंबर को मुजफ्फरनगर में ‘महापंचायत’ होगी.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)