कश्मीर में सीआईडी द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि पासपोर्ट और सरकारी नौकरी आदि हेतु सत्यापन के दौरान व्यक्ति की क़ानून-व्यवस्था उल्लंघन, पत्थरबाज़ी के मामलों और राज्य में सुरक्षा बलों के ख़िलाफ़ अन्य आपराधिक गतिविधियों में संलिप्तता की विशेष तौर पर जांच हो. जम्मू क्षेत्र के लिए ऐसा कोई आदेश जारी नहीं किया गया है.
नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर पुलिस की सीआईडी ने पत्थरबाजी या विध्वंसक गतिविधियों में शामिल लोगों को पासपोर्ट और सरकारी नौकरी के लिए जरूरी सुरक्षा अनापत्ति पत्र नहीं देने का आदेश दिया है.
कश्मीर में सीआईडी की विशेष शाखा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) आमोद अशोक नागपुरे ने बीते शनिवार को जारी आदेश में उनके अधीन सभी क्षेत्र यूनिटों को सुनिश्चित करने को कहा है कि पासपोर्ट और सरकारी नौकरी अथवा अन्य सरकारी योजनाओं हेतु सत्यापन के दौरान व्यक्ति की कानून-व्यवस्था उल्लंघन, पत्थरबाजी के मामलों और राज्य में सुरक्षा बलों के खिलाफ अन्य आपराधिक गतिविधियों में संलिप्तता की विशेष तौर पर जांच हो.
आदेश में कहा गया, ‘ऐसे मामलों का मिलान स्थानीय थाने में मौजूद रिकॉर्ड से किया जाना चाहिए.’
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने कहा कि इस तरह के सत्यापन के दौरान पुलिस, सुरक्षाबलों और अन्य सुरक्षा एजेंसियों के पास मौजूद डिजिटल सबूतों जैसे सीसीटीवी फुटेज, फोटोग्राफ, वीडियो और ऑडियो क्लिप को भी संज्ञान में लिया जाना चाहिए.
कश्मीर सीआईडी की विशेष शाखा के एसएसपी ने कहा, ‘अगर कोई व्यक्ति ऐसे मामलों में संलिप्त पाया जाता है तो उसको सुरक्षा मंजूरी देने से इनकार किया जाना चाहिए.’
No security clearance related to passport verification for subjects found involved in law & order, stone-pelting cases, and other crimes prejudicial to the security of the Union Territory: Govt of J&K pic.twitter.com/eb6oIRIa9N
— ANI (@ANI) August 1, 2021
गौरतलब है कि जम्मू क्षेत्र के आवेदकों के लिए ऐसा कोई आदेश जारी नहीं किया गया है.
जम्मू और कश्मीर सिविल सेवा (चरित्र एवं पृष्ठभूमि सत्यापन) निर्देश, 1997 के अनुसार सीआईडी को जम्मू कश्मीर में उन कैंडिडेट को चरित्र प्रमाण-पत्र देने का काम सौंपा गया है, जिन्होंने सरकारी नौकरी के लिए योग्यता परीक्षा उत्तीर्ण की है.
जम्मू कश्मीर प्रशासन ने इस साल 21 जून को नए कर्मचारियों की नियुक्ति के संबंध में नियमों में संशोधन किया था. सरकारी आदेश के अनुसार जम्मू और कश्मीर सिविल सेवा (चरित्र एवं पृष्ठभूमि सत्यापन) निर्देश, 1997 में एक निर्देश 2 जोड़ा गया है, जिसके तहत सरकारी कर्मचारियों के लिए सीआईडी सत्यापन अनिवार्य हो गया है.
आदेश में कहा गया है कि कैंडिडेट्स से सत्यापन प्रपत्र प्राप्त होने पर नियुक्ति प्राधिकारी को इन फॉर्म्स को सत्यापन के लिए सीधे सीआईडी मुख्यालय भेजना होगा.
इस तरह सेवा निर्देश के अनुसार जम्मू कश्मीर के सेवा चयन बोर्ड जैसी भर्ती एजेंसियों को सरकारी नौकरी के लिए चुने गए उम्मीदवारों की सूची जम्मू कश्मीर पुलिस की सीआईडी विंग के पास भेजना अनिवार्य है.
इसके बाद सीआईडी को एक महीने के भीतर सत्यापन का कार्य पूरा करना होता है, जिसे दो महीने से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है.
पुलिस द्वारा ये नया सर्कुलर उन रिपोर्ट्स के बीच आया है जिनमें बताया जा रहा है कि सीआईडी ने जम्मू कश्मीर में ऐसे 5,362 कर्मचारियों की पहचान की है, जिन्होंने अनिवार्य सुरक्षा मंजूरी के बिना हाल ही में सरकारी सेवा में प्रवेश किया है.
आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि इनमें से कई कर्मचारी पिछली पीडीपी-भाजपा सरकार के तहत भर्ती किए गए थे. इनमें जम्मू कश्मीर प्रशासनिक सेवा के अधिकारी और अन्य शामिल हैं, जिनमें से कुछ ‘संवेदनशील’ पदों पर काम कर रहे हैं.
रिपोर्टों के अनुसार असत्यापित कर्मचारियों में एक सहायक आयुक्त, एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट, ब्लॉक अधिकारी और अन्य शामिल हैं, जिन्हें जम्मू कश्मीर सरकार के छह विभागों में तैनात किया गया है.
सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने द वायर को बताया, ‘इनमें से अधिकांश कर्मचारियों को राजस्व विभाग और कानून विभाग द्वारा भर्ती किया गया है और उन्हें वेतन-भत्ते मिलना जारी है, भले ही उनकी भर्ती के नियमों को दरकिनार कर दिया गया हो.’
इससे पहले, जम्मू कश्मीर प्रशासन ने सभी विभागों को उन कर्मचारियों की पूरी सूची उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था, जिनका सीआईडी सत्यापन नहीं किया गया है. साथ ही इन कर्मचारियों का वेतन रोकने को भी कहा गया था.
वैसे तो जम्मू कश्मीर पुलिस आतंकवाद और अलगाववाद में शामिल लोगों या पासपोर्ट के लिए आवेदन करने वाले उनके परिजनों को सुरक्षा मंजूरी देने से इनकार करती रही है, यह पहली बार है जब आदेश को सार्वजनिक किया गया है.
यह पुलिस सर्कुलर प्रशासन द्वारा लगभग दो दर्जन कर्मचारियों को बर्खास्त करने के हफ्तों बाद आया है, जिन पर ‘राज्य की सुरक्षा के खिलाफ’ काम करने का आरोप लगाया गया है. वहीं प्रशासन पर आरोप है कि उन्हें उचित स्तर पर अपनी बात रखने का मौका नहीं दिया गया.
कार्यकर्ताओं को डर है कि ये फैसले जम्मू कश्मीर में बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर असर डालेंगे, जहां अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद से ही असहमति का दमन हो रहा है.
निष्पक्ष जांच के बिना कर्मचारियों को नौकरी से निकालने फैसले पर विपक्षी दलों ने भी सवाल उठाए हैं, जिसमें नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी शामिल हैं, जिन्होंने उपराज्यपाल के प्रशासन पर कर्मचारियों को उनके राजनीतिक विचारों के लिए निशाना बनाने का आरोप लगाया है.