छत्तीसगढ़ः दंतेवाड़ा में नक्सलियों की मौजूदगी के आधार पर हो रहा गांवों का वर्गीकरण

छत्तीसगढ़ की दंतेवाड़ा पुलिस ने ‘पंचायतवार नक्सल संवेदनशील सर्वे’ शुरू किया है, जिसे साल में दो बार छह महीने पर किया जा जाएगा. सर्वे में नक्सलियों की मौजूदगी से जुड़े सवाल होंगे हैं, जिनके आधार पर गांवों को हरे, पीले और लाल क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जाएगा. ‘हरे’ से मतलब नक्सल मुक्त क्षेत्र होगा, ‘पीले’ से नक्सल संवेदनशील क्षेत्र, जबकि ‘लाल’ से नक्सल अतिसंवेदनशील क्षेत्र से होगा. यह सर्वे इस साल जनवरी और जुलाई में किया जा चुका है.

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(प्रतीकात्मक फोटोः रॉयटर्स)

छत्तीसगढ़ की दंतेवाड़ा पुलिस ने ‘पंचायतवार नक्सल संवेदनशील सर्वे’ शुरू किया है, जिसे साल में दो बार छह महीने पर किया जा जाएगा. सर्वे में नक्सलियों की मौजूदगी से जुड़े सवाल होंगे हैं, जिनके आधार पर गांवों को हरे, पीले और लाल क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जाएगा. ‘हरे’ से मतलब नक्सल मुक्त क्षेत्र होगा, ‘पीले’ से नक्सल संवेदनशील क्षेत्र, जबकि ‘लाल’ से नक्सल अतिसंवेदनशील क्षेत्र से होगा. यह सर्वे इस साल जनवरी और जुलाई में किया जा चुका है.

(प्रतीकात्मक फोटोः रॉयटर्स)

रायपुरः छत्तीसगढ़ की दंतेवाड़ा पुलिस जिले के गांवों में माओवादियों की उपस्थिति की प्रकृति और स्तर का पता लगाने के लिए एक सर्वेक्षण शुरू किया है.

पहला‘पंचायतवार नक्सल संवेदनशील सर्वे’ इस साल जनवरी में शुरू किया गया था और अब इसे दोबारा जुलाई में शुरू किया गया है.

दंतेवाड़ा पुलिस की योजना है कि जिले की सभी 149 ग्राम पंचायतों को हर साल दो बार होने वाले इस सर्वे में शामिल किया जाए.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस सर्वे में शामिल कुछ सवाल इस प्रकार हैं, ‘क्या हथियारबंद नक्सलियों की आपके गांवों में बैठकें होती हैं?. क्या हथियारबंद नक्सल आपके गांव में रुकते हैं? क्या गांव में बिजली, पानी, सड़क और स्कूल जैसी बुनियादी सुविधाएं हैं?’

इसके अलावा भी कई सवाल हैं, ‘जैसे- क्या बीते एक साल में आपके इलाके में कोई नक्सली घटना हुई और क्या ग्राम पंचायत के प्रतिनिधि गांव में रहते हैं?’

यह सर्वे दंतेवाड़ा के पुलिस अधीक्षक अभिषेक पल्लव की पहल पर हो रहा है और इसके तहत इकट्ठा किए गए आंकड़ों के आधार पर ग्राम पंचायतों को हरे (Green), पीले (Yellow) और लाल (Red) क्षेत्र में वर्गीकृत किया जा सकता है.

हरे क्षेत्र से मतलब नक्सल मुक्त क्षेत्र होगा, पीले क्षेत्र से नक्सल संवेदनशील क्षेत्र जबकि लाल क्षेत्र से नक्सल अतिसंवेदनशील क्षेत्र से होगा.

पल्लव ने कहा, ‘हमारा दावा है कि गांवों में नक्सलियों का दबदबा घट रहा है, लेकिन इसका समर्थन करने के लिए हमारे पास कोई आंकड़ा नहीं है. हम इलाके को समझने के लिए हर छह महीने में यह सर्वे कराने की कोशिश कर रहे हैं.’

इस सर्वे में ग्रामीणों के अलावा गांवों के सरपंच, शिक्षक, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और अन्य सरकारी अधिकारियों को ‘हां’ या ‘नहीं’ में जवाब देना होगा.

पल्लव ने कहा, ‘अगर नक्सलियों से संबंधित सभी सवालों के जवाब ‘नहीं’ में मिलते हैं तो उस गांव को हरे ग्राम के तौर पर घोषित किया जाएगा. अगर एक भी सवाल का जवाब ‘हां’ होगा तो गांव को पीले क्षेत्र में चिह्नित किया जाएगा.’

उन्होंने आगे कहा, ‘लाल गांव के तौर पर चिह्नित होने के लिए ग्रामीणों और सरकारी अधिकारियों को सर्वे में पूछे गए सवाल 1, 4 और 5 का जवाब जरूर देना होगा, जिनमें पूछा गया है कि क्या बीते एक साल में आपके गांव में कोई नक्सली घटना हुई है और क्या हथियारबंद नक्सली आपके गांव आए हैं या रुके हैं? इन सवालों का जवाब ‘हां’ मिलने पर उस गांव को लाल गांव के तौर पर चिह्नित किया जाएगा.’

उन्होंने कहा, ‘हरे क्षेत्रों में हमें सर्वेक्षण के लिए लगभग 15-20 लोग मिलते हैं. जिन गांवों में कुछ ही लोग सर्वे में शामिल होना चाहते हैं और जिन्हें हम पहले से ही जानते हैं कि वे माओवादी उपस्थिति वाले क्षेत्रों में हैं तो स्वत: ही उस गांव को लाल गांव के तौर पर चिह्नित कर देंगे.’

दंतेवाड़ा पुलिस के मुताबिक, जनवरी में हुए सर्वे के बाद से ही स्थिति सुधरी है. पुलिस ने उस समय 33 गांवों को लाल, 42 को पीले और 74 को हरे गांवों के तौर पर चिह्नित किया था. जुलाई तक यह संख्या बदल गई और 26 गांव लाल, 34 गांव पीले और 89 गांव हरे के तौर पर चिह्नित हुए.

इसमें 15 नए हरे गांव गामावाड़ा और आठ अन्य गांव दंतेवाड़ा ब्लॉक के हैं. गीदम ब्लॉक के दो गांव और जिले के कुआकोंडा ब्लॉक का एक गांव शामिल है.

पल्लव ने कहा, ‘इस सर्वे से हमें यह जानने में मदद मिलती है कि कौन सा क्षेत्र अधिक संवेदनशील हैं और कौन से क्षेत्र को प्रशासन की ओर से व्यापक हस्तक्षेप की जरूरत है.’

उन्होंने कहा, ‘हम अपने सवालों के जरिये यह भी पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि कितने गांवों में नक्सलियों के अग्रिम संगठनों के सदस्य सक्रिय हैं. इससे पुलिस के प्रति विद्वेष भी कम होगा, क्योंकि ग्रामीण चाहते हैं कि उनका क्षेत्र हरे के तौर पर चिह्नित हो.’

उन्होंने कहा कि जो गांव हरे क्षेत्र के तौर पर चिह्नित हो रहे हैं, उनके लिए 100 सवालों से युक्त अधिक व्यापक सर्वे भी तैयार किया जा रहा है, ताकि इससे अतिरिक्त फीडबैक लिया जा सके.

बस्तर के पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी) सुंदरराज पट्टीलिंगम ने कहा कि जिले में नक्सलियों की मौजूदगी का विश्लेषण नया नहीं है. हालांकि, जोन का नामकरण कुछ अलग हो सकता है.

आईजीपी ने कहा, ‘इससे हमें मदद मिलती है कि क्या हमारी नीति काम कर रही है और इससे हमें यह पहचानने में भी मदद मिलती है कि नक्सल विरोधी जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) को कहां तैनात करना है और इन इलाकों में किन स्थानों पर पुलिस स्टेशन स्थापित किए जा सकते हैं. यह प्रक्रिया राष्ट्रीय, राज्य और जिलावार सभी स्तरों पर की जा रही है.’

बस्तर से कांग्रेस के लोकसभा सांसद दीपक बैज ने कहा कि वह पुलिस के सर्वे के नतीजों से वाकिफ नहीं हैं.

बैज ने कहा, ‘मुझे मीडिया के जरिये इस सर्वे के बारे में पता चला. इस सर्वे के पूरा हो जाने के बाद ही मैं इस पर कोई टिप्पणी कर पाऊंगा.’

दरभा में 2013 के नक्सली हमले में मारे गए दिवंगत महेंद्र कर्मा के बेटे कांग्रेस नेता छविंद्र कर्मा ने कहा कि पुलिस हद से ज्यादा पहुंच बना रही है. माओवाद कम होने का दावा करने वाली पुलिस ऐसा सर्वे कैसे कर रही है? राजस्व विभाग या कोई अन्य विभाग यह जानकारी क्यों नहीं जुटा रहा है?