भारतीय हॉकी टीम 1980 मास्को ओलंपिक में आख़िरी पदक जीता था. भारतीय टीम ओलंपिक में अब तक आठ स्वर्ण पदक जीत चुकी है. टोक्यो ओलंपिक खेलों में यह भारत का पांचवां पदक होगा. इससे पहले भारोत्तोलन में मीराबाई चानू ने रजत, जबकि बैडमिंटन में पीवी सिंधु और मुक्केबाजी में लवलीना बोरगोहेन ने कांस्य पदक जीता है. इसके अलावा कुश्ती में रवि दहिया ने फाइनल में पहुंचकर पदक पक्का कर लिया है.
टोक्यो/नई दिल्ली: आखिर मॉस्को से शुरू हुआ 41 साल का इंतजार टोक्यो में खत्म हुआ. अतीत की मायूसियों से निकलकर भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने पिछड़ने के बाद जबर्दस्त वापसी करते हुए एक रोमांचकारी मैच में जर्मनी को 5-4 से हराकर ओलंपिक में कांसे का तमगा जीत लिया.
आखिरी पलों में ज्यों ही गोलकीपर पीआर श्रीजेश ने तीन बार की चैंपियन जर्मनी को मिली पेनल्टी को रोका, भारतीय खिलाड़ियों के साथ टीवी पर इस ऐतिहासिक मुकाबले को देख रहे करोड़ों भारतीयों की भी आंखें नम हो गईं. हॉकी के गौरवशाली इतिहास को नए सिरे से दोहराने के लिए मील का पत्थर साबित होने वाली इस जीत ने पूरे देश को भावुक कर दिया.
इस रोमांचक जीत के कई सूत्रधार रहे, जिनमें दो गोल करने वाले सिमरनजीत सिंह ((17वें मिनट और 34वें मिनट) हार्दिक सिंह (27वां मिनट), हरमनप्रीत सिंह (29वां मिनट) और रूपिंदर पाल सिंह (31वां मिनट) तो थे ही, लेकिन आखिरी पलों में पेनल्टी बचाने वाले गोलकीपर श्रीजेश भी शामिल हैं .
LA 1984, Seoul 1988, Barcelona 1992, Atlanta 1996, Sydney 2000, Athens 2004, London 2012, Rio 2016. #Tokyo2020….The drought ends and this is what it meant for the #IND men's #hockey players 🙌#Tokyo2020 pic.twitter.com/yuYpPJFrBv
— Olympic Khel (@OlympicKhel) August 5, 2021
भारतीय टीम 1980 मास्को ओलंपिक में अपने आठ स्वर्ण पदक में से आखिरी पदक जीतने के 41 साल बाद ओलंपिक पदक जीती है. मॉस्को से टोक्यो तक के सफर में बीजिंग ओलंपिक 2008 के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाने और हर ओलंपिक से खाली हाथ लौटने की कई मायूसियां शामिल रहीं.
टोक्यो खेलों में यह भारत का पांचवां पदक होगा. इससे पहले भारोत्तोलन में मीराबाई चानू ने रजत, जबकि बैडमिंटन में पीवी सिंधु और मुक्केबाजी में लवलीना बोरगोहेन ने कांस्य पदक जीते और कुश्ती में रवि दहिया ने फाइनल में पहुंचकर पदक पक्का किया.
Lifting hopes 💪
Smashing stereotypes 😎
Punching through barriers 👊Make way for #IND's #Tokyo2020 medal winners so far! 😍#UnitedByEmotion | #StrongerTogether | @mirabai_chanu @Pvsindhu1 @LovlinaBorgohai pic.twitter.com/kcvs8bQYPF
— Olympic Khel (@OlympicKhel) August 4, 2021
आठ बार की ओलंपिक चैंपियन और दुनिया की तीसरे नंबर की भारतीय टीम एक समय 1-3 से पिछड़ रही थी, लेकिन दबाव से उबरकर आठ मिनट में चार गोल दागकर जीत दर्ज करने में सफल रही.
दुनिया की चौथे नंबर की टीम जर्मनी की ओर से तिमूर ओरूज (दूसरे मिनट), निकलास वेलेन (24वें मिनट), बेनेडिक्ट फुर्क (25वें मिनट) और लुकास विंडफेडर (48वें मिनट) ने गोल दागे.
मध्यांतर तक दोनों टीमें 3-3 से बराबर थीं.
भारतीय टीम ने टूर्नामेंट में अपने प्रदर्शन ने न सिर्फ कांस्य पदक जीता, बल्कि सभी का दिल भी जीतने में सफल रही. आस्ट्रेलिया के खिलाफ दूसरे ग्रुप मैच में 1-7 की करारी हार के बावजूद भारतीय टीम अपने बाकी चारों ग्रुप मैच जीतकर दूसरे स्थान पर रही. टीम को सेमीफाइनल में विश्व चैंपियन बेल्जियम को शुरुआती तीन क्वार्टर में कड़ी चुनौती देने के बावजदू 2-5 से हार झेलनी पड़ी.
An UNFORGETTABLE moment! 🙌😍
The one that #IND has been hungry for over 41 long years. ❤️#Tokyo2020 | #UnitedByEmotion | #StrongerTogether | #BestOfTokyo | #Hockey | #Bronze pic.twitter.com/R530dyTjS1
— Olympic Khel (@OlympicKhel) August 5, 2021
भारत के लिए मुकाबले की शुरुआत अच्छी नहीं रही. भारतीय रक्षापंक्ति ने कई गलतियां की, लेकिन अग्रिम पंक्ति और गोलकीपर पीआर श्रीजेश इसकी भरपाई करने में सफल रहे.
जर्मनी ने बेहद तेज शुरुआत की, लेकिन बाकी मैच में इस दमखम को बनाए रखने में विफल रही. जर्मनी ने पहले क्वार्टर में दबदबा बनाया तो भारतीय टीम बाकी तीन क्वार्टर में हावी रही.
जर्मनी ने शुरुआत में ही दोनों छोर से हमले करके भारतीय रक्षा पंक्ति को दबाव में डाला. टीम को इसका फायदा भी मिला जब दूसरे ही मिनट में भारतीय गोलमुख के सामने गफलत का फायदा उठाकर तिमूर ओरूज ने गेंद को गोलकीपर पीआर श्रीजेश के पैरों के नीचे से गोल में डाल दिया.
भारत ने तेजी दिखाते हुए पलटवार किया. टीम को पांचवें मिनट में मैच का पहला पेनल्टी कॉर्नर मिला, लेकिन ड्रैग फ्लिकर रूपिंदर के शॉट में दम नहीं था.
जर्मनी ने लगातार हमले जारी रखे. पहले क्वार्टर में जर्मनी की टीम मनमाफिक तरीके से भारतीय ‘डी’ (डिफेंस क्षेत्र) में प्रवेश करने में सफल रही. श्रीजेश ने हालांकि शानदार प्रदर्शन करते हुए जर्मनी को बढ़त दोगुनी करने से रोका और उसके दो हमलों को नाकाम किया.
जर्मनी को अंतिम मिनट में लगातार चार पेनल्टी कॉर्नर मिले, लेकिन अमित रोहिदास ने विरोधी टीम को सफलता हासिल नहीं करने दी.
दूसरे क्वार्टर में भारत की शुरुआत अच्छी रही. सिमरनजीत ने दूसरे ही मिनट में नीलकांता शर्मा से ‘डी’ में मिले लंबे पास पर रिवर्स शॉट से जर्मनी के गोलकीपर एलेक्जेंडर स्टेडलर को छकाकर गोल किया और भारत को 1-1 से बराबरी दिला दी.
भारत ने इस बीच लगातार हमले किए लेकिन जर्मनी की रक्षापंक्ति को भेदने में नाकाम रहे.
भारतीय रक्षापंक्ति ने इसके बाद लगातार गलतियां की, जिसका फायदा उठाकर जर्मनी ने दो मिनट में दो गोल दागकर 3-1 की बढ़त बना ली. पहले तो नीलकांता ने यान क्रिस्टोफर रूर के पास को वेलेन को आसानी से लेने दिया, जिन्होंने श्रीजेश को छकाकर गोल दागा.
इसके बाद दाएं छोर से जर्मनी के प्रयास पर भारतीय रक्षापंक्ति ने फिर गलती की और बेनेडिक्ट फुर्क ने गोल दाग दिया.
भारतीय टीम ने 1-3 से पिछड़ने के बाद पलटवार किया और तीन मिनट में दो गोल दागकर बराबरी हासिल कर ली. टीम को 27वें मिनट में पेनल्टी कॉर्नर मिला. ड्रैगफ्लिकर हरमनप्रीत के प्रयास को गोलकीपर ने रोका लेकिन रिबाउंड पर हार्दिक ने गेंद को गोल में डाल दिया.
भारत को एक मिनट बाद एक और पेनल्टी कॉर्नर मिला और इस बार हरमनप्रीत ने अपनी दमदार ड्रैगफ्लिक से गेंद को गोल में पहुंचाकर भारत को बराबरी दिला दी.
तीसरे क्वार्टर में भारतीय टीम पूरी तरह हावी रही. पहले ही मिनट में जर्मनी के डिफेंडर ने गोलमुख के सामने मनदीप सिंह को गिराया जिससे भारत को पेनल्टी स्ट्रोक मिला. रूपिंदर ने स्टेंडलर के दायीं ओर से गेंद को गोल में डालकर भारत को पहली बार मैच में आगे कर दिया. टोक्यो ओलंपिक में रूपिंदर का यह चौथा गोल है.
भारत ने इसके बाद दायीं छोर से एक ओर मूव बनाया और इस बार ‘डी’ के अंदर गुरजंत के पास पर सिमरनजीत ने गेंद को गोल में डालकर भारत को 5-3 से आगे कर दिया.
भारत को इसके बाद लगातार तीन और जर्मनी को भी लगातार तीन पेनल्टी कॉर्नर मिले, लेकिन दोनों ही टीमें गोल करने में नाकाम रहीं.
चौथे क्वार्टर के तीसरे मिनट में जर्मनी को एक और पेनल्टी कॉर्नर मिला और इस बार लुकास विंडफेडर ने श्रीजेश के पैरों के बीच से गेंद को गोल में डालकर स्कोर 4-5 कर दिया.
भारत को 51वें मिनट में गोल करने का स्वर्णिम मौका मिला. लंबे पास पर गेंद कब्जे में लेने के बाद मनदीप इसे ‘डी’ में ले गए. मनदीप को सिर्फ गोलकीपर स्टेडलर को छकाना था, लेकिन वह विफल रहे.
श्रीजेश ने इसके बाद जर्मनी के एक और पेनल्टी कॉर्नर को नाकाम किया.
जर्मनी की टीम बराबरी की तलाश में अंतिम पांच मिनट में बिना गोलकीपर के खेली. टीम को 58वें और 60वें मिनट में पनेल्टी कॉर्नर मिले, लेकिन भारतीय रक्षकों ने इन हमलों को विफल करके कांस्य पदक सुनिश्चित किया.
ओलंपिक में भारतीय पुरुष हॉकी टीम का अब तक का सफर
टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने 41 साल का इंतजार खत्म किया. मेजर ध्यानचंद से लेकर मनप्रीत सिंह तक ओलंपिक में भारतीय पुरुष हॉकी टीम का अब तक का सफर इस प्रकार है.
1928 एम्सटरडम: ब्रिटिश हुकूमत वाली भारतीय टीम ने फाइनल में नीदरलैंड को 3-2 से हराकर पहली बार ओलंपिक में हॉकी का स्वर्ण पदक जीता. भारतीय हॉकी को ध्यानचंद के रूप में नया सितारा मिला, जिन्होंने 14 गोल किए.
1932 लॉस एंजिलिस: टूर्नामेंट में सिर्फ तीन टीमें भारत, अमेरिका और जापान. भारतीय टीम 42 दिन का समुद्री सफर तय करके पहुंची और दोनों टीमों को हराकर खिताब जीता.
1936 बर्लिन: ध्यानचंद की कप्तानी वाली भारतीय टीम ने मेजबान जर्मनी को 8-1 से हराकर लगातार तीसरी बार खिताब जीता.
1948 लंदन: आजाद भारत का पहला ओलंपिक खिताब, जिसने दुनिया के खेल मानचित्र पर भारत को पहचान दिलाई. ब्रिटेन को 4-0 से हराकर भारतीय टीम लगातार चौथी बार ओलंपिक चैंपियन बनी और बलबीर सिंह सीनियर के रूप में हॉकी को एक नया नायक मिला.
1952 हेलसिंकी: मेजबान नीदरलैंड को हराकर भारत फिर चैंपियन. भारत के 13 में से नौ गोल बलबीर सिंह सीनियर के नाम, जिन्होंने फाइनल में सर्वाधिक गोल करने का रिकॉर्ड भी बनाया.
1956 मेलबर्न: पाकिस्तान को फाइनल में एक गोल से हराकर भारत ने लगातार छठी बार ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतकर अपना दबदबा कायम रखा.
1960 रोम: फाइनल में एक बार फिर चिर प्रतिद्वंद्वी भारत और पाकिस्तान आमने सामने. इस बार पाकिस्तान ने एक गोल से जीतकर भारत के अश्वमेधी अभियान पर नकेल कसी.
1964 टोक्यो: पेनल्टी कॉर्नर पर मोहिदंर लाल के गोल की मदद से भारत ने पाकिस्तान को हराकर एक बार फिर ओलंपिक स्वर्ण जीता.
1968 मैक्सिको: ओलंपिक के अपने इतिहास में भारत पहली बार फाइनल में जगह नहीं बना सका. सेमीफाइनल में आस्ट्रेलिया से मिली हार.
1972 म्युनिख: भारत सेमीफाइनल में पाकिस्तान से हारा लेकिन प्लेआफ में नीदरलैंड को 2-1 से हराकर कांस्य पदक जीता.
1976 मांट्रियल: फील्ड हॉकी में पहली बार एस्ट्रो टर्फ का इस्तेमाल. भारत ग्रुप चरण में दूसरे स्थान पर रहा और 58 साल में पहली बार पदक की दौड़ से बाहर. सातवें स्थान पर.
1980 मॉस्को: नौ टीमों के बहिष्कार के बाद ओलंपिक में सिर्फ छह हॉकी टीमें. भारत ने स्पेन को 4-3 से हराकर स्वर्ण पदक जीता, जो उसका आठवां और अब तक का आखिरी स्वर्ण था.
1984 लॉस एंजिलिस: बारह टीमों में भारत पांचवें स्थान पर रहा.
1988 सियोल: परगट सिंह की अगुवाई वाली भारतीय टीम का औसत प्रदर्शन. पाकिस्तान से क्लासीफिकेशन मैच हारकर छठे स्थान पर.
1992 बार्सीलोना: भारत को सिर्फ दो मैचों में अर्जेंटीना और मिस्र के खिलाफ मिली जीत. निराशाजनक सातवें स्थान पर.
1996 अटलांटा: भारत के प्रदर्शन का ग्राफ लगातार गिरता हुआ. इस बार आठवें स्थान पर.
2000 सिडनी: एक बार फिर क्लासीफिकेशन मैच तक खिसका भारत सातवें स्थान पर.
2004 एथेंस: धनराज पिल्लै का चौथा ओलंपिक. भारत ग्रुप चरण में चौथे और कुल सातवें स्थान पर.
2008 बीजिंग: भारतीय हॉकी के इतिहास का सबसे काला पन्ना. चिली के सैंटियागो में क्वालीफायर में ब्रिटेन से हारकर भारतीय टीम 88 साल में पहली बार ओलंपिक के लिए क्वालीफाई नहीं कर सकी.
2012 लंदन: भारतीय हॉकी टीम एक भी मैच नहीं जीत सकी. ओलंपिक में पहली बार बारहवें और आखिरी स्थान पर.
2016 रियो: भारतीय टीम क्वार्टर फाइनल में पहुंची लेकिन बेल्जियम से हारी. आठवें स्थान पर रही.
2020 टोक्यो: तीन बार की चैंपियन जर्मनी को 5-4 से हराकर भारत ने 41 साल बाद ओलंपिक में पदक जीता. मनप्रीत सिंह की कप्तानी में भारतीय टीम ने रचा इतिहास.
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री समेत पूरे देश ने भारतीय हॉकी टीम को बधाई दी
भारतीय पुरुष हॉकी टीम के 41 साल बाद टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टीम के प्रदर्शन की सराहना करते हुए कहा कि यह दिन हर भारतीय की स्मृतियों में हमेशा रहेगा.
Congratulations to our men's hockey team for winning an Olympic Medal in hockey after 41 years. The team showed exceptional skills, resilience & determination to win. This historic victory will start a new era in hockey and will inspire the youth to take up and excel in the sport
— President of India (@rashtrapatibhvn) August 5, 2021
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ट्वीट किया, ‘41 साल बाद ओलंपिक में पदक जीतने वाली हमारी पुरुष हॉकी टीम को बधाई. इस टीम ने बेहतरीन कौशल और दृढ निश्चय का प्रदर्शन किया. इस जीत से देश में हॉकी के एक नए युग का उदय होगा और युवाओं को हॉकी खेलने तथा उसमें उत्कृष्ट प्रदर्शन की प्रेरणा मिलेगी.’
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारतीयों को यह दिन हमेशा याद रहेगा.
उन्होंने ट्वीट किया, ‘ऐतिहासिक. यह दिन हर भारतीय की स्मृतियों में हमेशा रहेगा. कांस्य पदक जीतने के लिए हमारी पुरुष हॉकी टीम को बधाई. इससे उन्होंने पूरे देश को, खासकर युवाओं को रोमांचित किया है. भारत को अपनी हॉकी टीम पर गर्व है.’
Historic! A day that will be etched in the memory of every Indian.
Congratulations to our Men’s Hockey Team for bringing home the Bronze. With this feat, they have captured the imagination of the entire nation, especially our youth. India is proud of our Hockey team. 🏑
— Narendra Modi (@narendramodi) August 5, 2021
खेलमंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा, ‘भारत के लिए करोड़ों चीयर्स. आखिर भारतीय हॉकी टीम ने कर दिया. हमारी पुरुष हॉकी टीम ने ओलंपिक की इतिहास पुस्तिका में अपना नाम अंकित करा लिया. एक बार फिर से. हमें आप पर गर्व है.’’
गृहमंत्री अमित शाह ने कहा, ‘बधाई टीम इंडिया. यह पल हर भारतीय के लिए गर्व और हर्ष का है. हमारी पुरुष हॉकी टीम ने टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर पूरे देश को गौरवान्वित किया है.’
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने पर भारतीय पुरुष हॉकी टीम की बृहस्पतिवार को प्रशंसा की और कहा कि पूरे देश को उनकी उपलब्धि पर गर्व है.
गांधी ने ट्वीट किया, ‘भारतीय पुरुष हॉकी टीम को बधाई. यह बहुत बड़ा क्षण है. पूरे देश को आपकी उपलब्धि पर गर्व है. आप इस जीत के काबिल हैं.’
सेमीफाइनल में बुसेनाज से हारीं मुक्केबाज लवलीना, कांस्य पदक मिला
हॉकी टीम की इस शानदार जीत से एक दिन पहले बुधवार को भारत की स्टार मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन को महिला वेल्टरवेट वर्ग (69 किग्रा) के सेमीफाइनल में तुर्की की मौजूदा विश्व चैंपियन बुसेनाज सुरमेनेली के खिलाफ शिकस्त के साथ कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा. इसके साथ ही टोक्यो ओलंपिक में भारतीय मुक्केबाजों का अभियान एक कांस्य पदक के साथ खत्म हुआ.
ओलंपिक में पदार्पण कर रहीं विश्व चैंपियनशिप की दो बार की कांस्य पदक विजेता लवलीना के खिलाफ बुसेनाज ने शुरुआत से ही दबदबा बनाया और सर्वसम्मति से 5-0 से जीत दर्ज करने में सफल रहीं.
लवलीना का पदक पिछले नौ वर्षों में भारत का ओलंपिक मुक्केबाजी में पहला पदक है.
असम की मुक्केबाज को कई चेतावनियों के बावजूद रेफरी के निर्देश नहीं मानने के लिए दूसरे दौर में एक अंक की कटौती का सामना भी करना पड़ा.
#IND's Lovlina Borgohain wins India's THIRD medal at #Tokyo2020 – and it's a #Bronze in the women's #Boxing welterweight category! #StrongerTogether | #UnitedByEmotion | #Olympics pic.twitter.com/wcX69n3YEe
— Olympic Khel (@OlympicKhel) August 4, 2021
लवलीना ने हार के बाद कहा, ‘मुझे नहीं पता कि मुझे क्या कहना चाहिए. मैंने जो योजना बनाई थी, उसे लागू नहीं कर पाई. मैं इससे बेहतर कर सकती थी.’
लवलीना ओलंपिक मुक्केबाजी प्रतियोगिता फाइनल में जगह बनाने वाली पहली भारतीय मुक्केबाज बनने के लिए चुनौती पेश कर रही थीं, लेकिन विश्व चैंपियन बुसेनाज ने उनका सपना तोड़ दिया. भारतीय मुक्केबाज के पास तुर्की की खिलाड़ी के दमदार मुक्कों और तेजी का कोई जवाब नहीं था. इस बीच हड़बड़ाहट में भी लवलीना ने गलतियां कीं.
लवलीना ने मुकाबले की अच्छी शुरुआत की थी, लेकिन लेकिन बुसेनाज अपने दमदार हुक और शरीर पर जड़े मुक्कों से धीरे-धीरे हावी होती चली गईं.
तीसरा दौर पूरी तरह एकतरफा रहा, जिसमें लवलीना को दो बार दमदार मुक्के खाने के बाद ‘8 काउंट’ (रेफरी मुकाबला रोकर आठ तक गिनती गिनता है) का सामना करना पड़ा.
लवलीना हालांकि क्वार्टर फाइनल में चीनी ताइपै की पूर्व विश्व चैंपियन नीन चिन चेन को हराकर पहले ही पदक पक्का करके इतिहास रच चुकी थीं.
असम की 23 वर्षीय लवलीना ने विजेंदर सिंह (बीजिंग 2008) और एमसी मैरीकोम (लंदन 2012) की बराबरी की. विजेंदर और मैरीकोम दोनों ने कांस्य पदक जीते थे.
तुर्की की 23 साल की मुक्केबाज बुसेनाज 2019 चैंपियनशिप में विजेता रही थीं, जबकि उस प्रतियोगिता में लवलीना को कांस्य पदक मिला था. तब इन दोनों के बीच मुकाबला नहीं हुआ था.
भारत का कोई पुरुष मुक्केबाज क्वार्टर फाइनल से आगे नहीं बढ़ पाया था. क्वार्टर फाइनल में पहुंचे सतीश कुमार (91 किग्रा से अधिक) को विश्व चैंपियन बकोहोदिर जलोलोव के खिलाफ शिकस्त झेलनी पड़ी थी. चार अन्य पुरुष मुक्केबाज पहले दौर में ही हार गए थे.
महिला वर्ग में भारत की अन्य मुक्केबाजों में छह बार की विश्व चैंपियन एमसी मैरीकोम (51 किग्रा) को प्री क्वार्टर फाइनल जबकि पूजा रानी (75 किग्रा) को क्वार्टर फाइनल में शिकस्त झेलनी पड़ी थी.
स्वर्ण नहीं जीत पाने से दुखी हूं पर कांस्य का जश्न छुट्टी के साथ मनाऊंगी: लवलीना
अपने पहले ओलंपिक में सिर्फ कांस्य जीतकर वह खुश नहीं हैं, लेकिन भारतीय मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन ने बुधवार को कहा कि पिछले आठ साल के उसके बलिदानों का यह बड़ा इनाम है और अब वह 2012 के बाद पहली छुट्टी लेकर इसका जश्न मनाएंगी.
.@LovlinaBorgohai – India's lone boxer at #Tokyo2020 is set to pack a punch in her first-ever Olympic semi-final bout now!
BRING. IT. ON. 🥊#StrongerTogether | #UnitedByEmotion | #Olympics pic.twitter.com/zZB4YXs3Ve
— Olympic Khel (@OlympicKhel) August 4, 2021
बोरगोहेन ने मुकाबले के बाद कहा, ‘अच्छा तो नहीं लग रहा है. मैंने स्वर्ण पदक के लिए मेहनत की थी तो यह निराशाजनक है.’
उन्होंने कहा, ‘मैं अपनी रणनीति पर अमल नहीं कर सकी. वह काफी ताकतवर थी. मुझे लगा कि बैकफुट पर खेलने से चोट लगेगी तो मैं आक्रामक हो गई, लेकिन इसका फायदा नहीं मिला.’
उन्होंने कहा, ‘मैं उसके आत्मविश्वास पर प्रहार करना चाहती थी, लेकिन हुआ नहीं. वह काफी चुस्त थीं.’
विजेंदर सिंह (2008) और एम सी मैरीकॉम (2012) के बाद ओलंपिक पदक जीतने वाली तीसरी भारतीय मुक्केबाज बनी लवलीना ने कहा, ‘मैं हमेशा से ओलंपिक में पदक जीतना चाहती थी. मुझे खुशी है कि पदक मिला लेकिन इससे अधिक मिल सकता था.’
उन्होंने कहा, ‘मैंने इस पदक के लिए आठ साल तक मेहनत की है. मैं घर से दूर रही, परिवार से दूर रही और मनपसंद खाना नहीं खाया, लेकिन मुझे नहीं लगता कि किसी को ऐसा करना चाहिए. मुझे लगता था कि कुछ भी गलत करूंगी तो खेल पर असर पड़ेगा.’
नौ साल पहले मुक्केबाजी में करिअर शुरू करने वाली लवलीना दो बार विश्व चैंपियनशिप कांस्य भी जीत चुकी हैं. उनके लिए ओलंपिक की तैयारी आसान नहीं थी, क्योंकि कोरोना संक्रमण के कारण वह अभ्यास के लिए यूरोप नहीं जा सकीं. इसके अलावा उनकी मां की तबीयत खराब थी और पिछले साल उनका किडनी प्रत्यारोपण हुआ जब लवलीना दिल्ली में राष्ट्रीय शिविर में थीं.
लवलीना ने कहा, ‘मैं एक महीने या ज्यादा का ब्रेक लूंगी. मैं मुक्केबाजी करने के बाद से कभी छुट्टी पर नहीं गई. अभी तय नहीं किया है कि कहां जाऊंगी लेकिन मैं छुट्टी लूंगी.’
यह पदक उनके ही लिए नहीं बल्कि असम के गोलाघाट में उनके गांव के लिए भी जीवन बदलने वाला रहा, क्योंकि अब बारो मुखिया गांव तक पक्की सड़क बनाई जा रही है.
इस बारे में बताने पर उन्होंने कहा, ‘मुझे खुशी है कि सड़क बन रही है. जब घर लौटूंगी तो अच्छा लगेगा.’
मुक्केबाजी में भारत के ओलंपिक अभियान के बारे में उन्होंने कहा, ‘मेरे भीतर आत्मविश्वास की कमी थी जो अब नहीं है. अब मैं किसी से नहीं डरती. मैं यह पदक अपने देश के नाम करती हूं जिसने मेरे लिए दुआएं की. मेरे कोच, महासंघ, प्रायोजक सभी ने मदद की.’
उन्होंने राष्ट्रीय सहायक कोच संध्या गुरूंग की तारीफ करते हुए कहा, ‘उन्होंने मुझ पर काफी मेहनत की है. उन्होंने द्रोणाचार्य पुरस्कार के लिए आवेदन किया है और उम्मीद है कि उन्हें मिल जाएगा.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)