तेलंगाना हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस विजयसेन रेड्डी ने राज्य सरकार को नौकरशाहों के ख़िलाफ़ लंबित अदालती अवमानना के मामलों से लड़ने के लिए निर्धारित राशि जारी न करने का निर्देश दिया है.
नई दिल्ली: तेलंगाना सरकार ने हाईकोर्ट में राज्य सरकार के नौकरशाहों के खिलाफ लंबित अदालती अवमानना के मामलों से लड़ने के लिए 60 करोड़ रुपये निर्धारित किए हैं. राज्य सरकार के इस फैसले पर कई वरिष्ठ जजों ने अपनी नाराजगी जाहिर की है.
समाचार एजेंसी आईएएनएस की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य सरकार के इस फैसले से तेलंगाना हाईकोर्ट आश्चर्यचकित रह गया.
चीफ जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस विजयसेन रेड्डी ने राज्य सरकार को निर्धारित राशि जारी न करने का निर्देश देते हुए बुधवार को अंतरिम आदेश जारी किया.
इस मामले को एक लेक्चरर हाईकोर्ट के संज्ञान में लेकर आए थे. एक जनहित याचिका में उन्होंने कहा था कि राज्य सरकार ने अदालती अवमानना के मामलों से लड़ने के लिए नौकरशाहों को वित्तीय सहायता प्रदान करने का निर्णय लिया था.
याचिकाकर्ता ने मुख्य रूप से भूमि प्रशासन के मुख्य आयुक्त (सीसीएलए) को किए गए वित्तीय आवंटन का हवाला दिया था. सीसीएलए के पद पर फिलहाल राज्य के मुख्य सचिव सोमेश कुमार हैं.
दिलचस्प बात है कि मुख्य सचिव के रूप में सोमेश कुमार ने ही 7 जून को अवमानना के मामलों की लड़ाई के लिए 60 करोड़ रुपये निर्धारित करने का सरकारी आदेश जारी किया.
7 जून के आदेश में कहा गया कि राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में लंबित अवमानना के मामलों के लिए 58,95,63,000 रुपये मंजूर करने का निर्णय लिया था. अनुमान के मुताबिक, राज्य के नौकरशाहों के खिलाफ अवमानना के लगभग 25o मामले हैं.
सरकारी आदेश का संज्ञान लेते हुए दो जजों की पीठ ने बुधवार को पूछा कि राज्य सरकार करदाताओं के पैसे को इस तरह कैसे खर्च कर सकती है. उसने संबंधित अधिकारियों को ट्रेजरी नियमों के बारे में और अगर ऐसी आर्थिक सहायता की अनुमति हो तो उसकी जानकारी देने के लिए कहा.
जजों ने वित्त एवं राजस्व विभाग के सचिवों, ट्रेजरी निदेशक, सीसीएलए और सोमेश कुमार को व्यक्तिगत तौर पर नोटिस दिया. अदालत ने मामले की सुनवाई 27 अक्टूबर तक के लिए टाल दी.
तेलंगाना सरकार के फैसले को उसकी इस नीति को आगे बढ़ाने के रूप में देखा जा सकता है जिसमें नौकरशाहों को अदालती आदेशों की अवहेलना करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, चाहे अवमानना का मामला ही क्यों न बन जाए. ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि राज्य सरकारों के फैसले किसी भी कीमत पर लागू, चाहे अदालतें उसके खिलाफ फैसला दें.
हाल ही में कई मामलों में हाईकोर्ट ने जिलाधिकारियों पर जुर्माना लगाया था और अदालत के आदेशों का पालन नहीं करने पर नौकरशाहों को कारावास की सजा भी सुनाई है.
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