सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने राज्यसभा में बताया कि देश भर में हाथ से मैला ढोने वाले कुल 58,098 सफाईकर्मियों की पहचान की गई है. हाथ से मैला ढोने के कारण किसी की मौत होने की ख़बर नहीं है लेकिन सीवर या सैप्टिक टैंक की सफाई के दौरान कर्मियों की मौत होने की जानकारी है.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने बुधवार को कहा कि वर्ष 1993 से सैप्टिक टैंक साफ करने के दौरान 941 सफाईकर्मियों की मौत हुई है किंतु हाथ से मैला ढोने के कारण किसी की मौत होने की कोई जानकारी नहीं है.
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में राज्यसभा को यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि देश भर में हाथ से मैला ढोने वाले कुल 58,098 सफाईकर्मियों की पहचान की गई है.
कुमार ने कहा, ‘हाथ से मैला ढोने के कारण किसी की मौत होने की कोई खबर नहीं है. यद्यपि सीवर या सैप्टिक टैंक की सफाई के दौरान कर्मियों की मौत होने की जानकारी हमारे पास है.’
मंत्री द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार सीवर या सैप्टिक टैंक की सफाई के दौरान 941 कर्मियों की मौत हुई. इनमें सबसे अधिक तमिलनाडु में 213 मौत, गुजरात में 163 मौत, उत्तर प्रदेश में 104 , दिल्ली में 98 , कर्नाटक में 84 और हरियाणा में 73 मौत हुईं.
एक अन्य प्रश्न के उत्तर में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास आठवले ने बताया कि वर्ष 1993 से 941 सफाई कर्मियों की मौत की जानकारी मिली है.
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, सामाजिक न्याय मंत्री ने कहा, ‘सभी पहचान किए गए 58,098 मैला ढोने वालों को 40,000 रुपये की एकमुश्त नकद सहायता का भुगतान किया गया है. पुनर्वास को सक्षम करने के लिए 1,6057 मैला ढोने वालों और उनके आश्रितों को कौशल विकास प्रशिक्षण प्रदान किया गया है.’
उन्होंने यह भी बताया कि 1,387 हाथ से मैला ढोने वालों, सफाई कर्मचारियों और उनके आश्रितों को स्वच्छता संबंधी परियोजनाओं सहित स्वरोजगार परियोजनाओं के लिए पूंजीगत सब्सिडी प्रदान की गई है.
पिछले हफ्ते राज्यसभा में मैनुअल स्कैवेंजिंग पर इसी तरह के एक सवाल पर सरकार की प्रतिक्रिया के बाद सरकार और कार्यकर्ताओं बीच विवाद छिड़ गया था.
बीते 28 जुलाई को पिछले पांच वर्षों में मरने वाले लोगों की संख्या के बारे में पूछे जाने पर सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने कहा था, ‘हाथ से मैला ढोने के कारण ऐसी कोई मौत नहीं हुई है.’
उसके बाद अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए इसकी निंदा की थी. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहा था कि हाथ से मैला ढोना पहले से ही अमानवीय है. सरकार सम्मान के मौलिक अधिकार से इनकार कर रही है. इन लोगों और मौतों की गिनती तक नहीं कर रही है. यह अस्पृश्यता का एक आधुनिक रूप है. एक दलित के जीवन की अनदेखी है.
बता दें कि इससे पहले बीते फरवरी महीने में केंद्र सरकार ने बताया कि देश में हाथ से मैला ढोने वाले (मैनुअल स्कैवेंजर) 66,692 लोगों की पहचान कर ली गई है. इनमें से 37,379 लोग उत्तर प्रदेश के हैं.
राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में सामाजिक न्याय व अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले ने कहा था कि पिछले पांच सालों में नालों और टैंकों की सफाई के दौरान 340 लोगों की जान गई है.
उन्होंने बताया था कि जिन 340 लोगों की मौत हुई है, उनमें से 217 को पूरा मुआवजा दिया जा चुका है, जबकि 47 को आंशिक रूप से मुआवजा दिया गया है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)