अदालत ने फैमिली कोर्ट के तलाक़ की मंज़ूरी देने के को चुनौती देने वाली एक व्यक्ति की दो अपीलें ख़ारिज करते हुए कहा कि पत्नी के शरीर को अपनी संपत्ति मानना और उसकी इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध बनाना और कुछ नहीं बल्कि वैवाहिक बलात्कार है.
कोच्चि: केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि पत्नी के शरीर को पति द्वारा अपनी संपत्ति समझना और उसकी इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध बनाना वैवाहिक बलात्कार है.
अदालत ने पारिवारिक न्यायालय के तलाक की मंजूरी देने के फैसले को चुनौती देने वाली एक व्यक्ति की दो अपीलें खारिज करते हुए यह टिप्पणी की.
जस्टिस ए. मोहम्मद मुश्ताक और जस्टिस कौसर एडप्पागथ की खंडपीठ ने कहा कि समय की मांग यह है कि शादी और तलाक धर्मनिरपेक्ष कानून के तहत होने चाहिए और देश के विवाह कानून को फिर से बनाने का समय आ गया है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अदालत ने यह भी कहा कि कम से कम शादी और तलाक के लिए सभी समुदायों के लिए एक समान कानून होने में कोई कठिनाई नहीं हो सकती है.
अदालत ने कहा, ‘व्यक्तिगत कानून के अनुसार व्यक्ति अपनी शादी करने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन उन्हें धर्मनिरपेक्ष कानून के तहत विवाह के अनिवार्य अनुष्ठानों से मुक्त नहीं किया जा सकता. हमारे देश में विवाह कानून में बदलाव का समय आ गया है. हमारे कानून को वैवाहिक नुकसान और मुआवजे से निपटने के लिए भी तैयार होना चाहिए. हमें मानवीय समस्याओं से निपटने और मानवीय दिमाग से जवाब देने के लिए एक कानून बनाने की आवश्यकता है.’
पीठ ने आगे कहा, ‘दंडात्मक कानून के तहत वैवाहिक बलात्कार को कानून मान्यता नहीं देता, केवल यह कारण अदालत को तलाक देने के आधार के तौर पर इसे क्रूरता मानने से नहीं रोकता है. इसलिए हमारा विचार है कि वैवाहिक बलात्कार तलाक का दावा करने का ठोस आधार है.’
अदालत ने क्रूरता के आधार पर तलाक की याचिका स्वीकार करने वाले पारिवारिक न्यायालय के फैसले के खिलाफ पति की अपील खारिज कर दी. इसके अलावा अदालत ने पति द्वारा वैवाहिक अधिकारों की मांग करने वाली एक अन्य याचिका को खारिज कर दिया.
अदालत ने अपने 30 जुलाई के आदेश में कहा, ‘पत्नी के शरीर को पति द्वारा अपनी संपत्ति समझना और उसकी इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध बनाना वैवाहिक बलात्कार है.’ पीठ ने कहा कि उसकी शारीरिक और मानसिक गरिमा के अधिकार में शारीरिक सम्मान भी शामिल है, इसका कोई भी अनादर व्यक्तिगत स्वायत्तता का उल्लंघन है.
इस दंपति की शादी 1995 में हुई थी और उनके दो बच्चे हैं. अदालत ने कहा कि पेशे से डॉक्टर पति ने शादी के समय अपनी पत्नी के पिता से सोने के 501 सिक्के, एक कार और एक फ्लैट लिया था.
पारिवारिक न्यायालय ने पाया कि पति अपनी पत्नी के साथ पैसे कमाने की मशीन की तरह व्यवहार करता था और पत्नी ने विवाह की खातिर उत्पीड़न को सहन किया, लेकिन जब उत्पीड़न और क्रूरता बर्दाश्त से परे पहुंच गई तो उसने तलाक के लिए याचिका दायर करने का फैसला किया.
मामले के विस्तार में जाते हुए अदालत ने कहा कि पति की पैसे और सेक्स की अतृप्त इच्छा ने एक महिला को मुश्किल में डाल दिया है. वे तलाक लेने की इच्छा में उन्होंने अपने सभी आर्थिक दावों को छोड़ दिया है.
अपील का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि धन और सेक्स के लिए पति के आग्रह ने पत्नी को तलाक का विकल्प चुनने के लिए मजबूर किया. किसी पति या पत्नी की धन और अतृप्त इच्छा भी क्रूरता की श्रेणी में आती है.
पीठ ने कहा कि एक पति या पत्नी के पास पीड़ित न होने का विकल्प होता है और अदालत द्वारा तलाक से इनकार करके कानून पति या पत्नी को उसकी इच्छा के विरुद्ध पीड़ित होने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है.
अदालत ने यह भी कहा कि विवाह विच्छेद कानून की रूपरेखा किसी व्यक्ति के द्वारा उसके मामलों पर कोई फैसला लेने में मदद करने के उद्देश्य से होनी चाहिए.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)