असमी भाषा का समाचार पोर्टल ‘द क्रॉस करंट’ अपनी एक वीडियो रिपोर्ट को लेकर निशाने पर आया है, जिसमें दो आयोजनों से संबंधित पोस्टर/होर्डिंग्स में मुख्यमंत्री हिमंता बिश्वा शर्मा की तस्वीरों के अत्यधिक उपयोग पर सवाल उठाए गए थे. इनमें से एक आयोजन ओलंपिक में पदक विजेता मुक्केबाज़ लवलीना बोरगोहेन को बधाई देने से संबंधित था. विवाद तब शुरू हुआ जब होर्डिंग्स पर मुख्यमंत्री तथा खेल मंत्री की तो तस्वीर थी, लेकिन लवलीना की कोई तस्वीर नहीं थी.
गुवाहाटी: असम के सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय (डीआईपीआर) ने एक स्वतंत्र समाचार पोर्टल (वेबसाइट) ‘द क्रॉस करंट’ के खिलाफ सूचना और प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 45 के तहत ‘उचित कानूनी कार्रवाई शुरू करने’ का आग्रह करते हुए एक पुलिस शिकायत दायर की थी. बीते छह अगस्त को दिसपुर पुलिस ने इसी शिकायत के आधार पर मामला दर्ज किया है.
इससे पहले डीआईपीआर ने आईटी अधिनियम की धारा 66ए के तहत कानूनी कार्रवाई की मांग करते हुए एक शिकायत दर्ज कराई थी, जबकि इस धारा को साल 2015 में ही सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था.
ये शिकायत एक वीडियो समाचार रिपोर्ट को लेकर दर्ज की गई थी, जिसमें असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा, सूचना/जनसंपर्क मंत्री पीयूष हजारिका और राज्य डीआईपीआर पर कड़े सवाल उठाए गए थे.
इस रिपोर्ट को लिखने वाले पत्रकार गौतम प्रतिम गोगोई को दिसपुर पुलिस ने बीते छह अगस्त को तलब किया था और उन्हें पुलिस स्टेशन में रात बितानी पड़ी थी.
पत्रकार गोगोई के वकील शांतनु बोरठाकुर ने द वायर को बताया, ‘एफआईआर में आईपीसी की धारा 294/500/505(2) के तहत मानहानि के आरोप भी शामिल हैं.’ वीडियो रिपोर्ट को अब पोर्टल की वेबसाइट फेसबुक और यूट्यूब से हटा दिया गया है.
गोगोई ने द वायर को बताया कि वीडियो को एक ‘तकनीकी गड़बड़ी’ के कारण हटा दिया गया था. पुलिस ने उनकी पेन ड्राइव को जब्त कर लिया है.
असमिया समाचार पोर्टल ‘द क्रॉस करंट’ को साल 2019 में लॉन्च किया गया था, जो कि अपनी रिपोर्टिंग में सत्तारूढ़ भाजपा को लेकर काफी आलोचनात्मक रुख अपनाता रहा है. अपनी हालिया कुछ रिपोर्ट्स के चलते ये इस समय सरकार के निशाने पर है.
अब यह समाचार पोर्टल अपनी एक रिपोर्ट के कारण फिर निशाने पर आ गया है. इस रिपोर्ट में पोर्टल ने दो आयोजनों से संबंधित पोस्टर/होर्डिंग्स में मुख्यमंत्री हिमंता बिश्वा शर्मा की तस्वीरों के अत्यधिक उपयोग को लेकर सवाल उठाए थे. ये दो आयोजन ओलंपिक में पदक विजेता मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन को बधाई देने और असम के पहले मुख्यमंत्री गोपीनाथ बोरदोलोई की पुण्यतिथि से संबंधित थे.
होर्डिंग्स को लेकर विवाद ओलंपिक खेलों की पूर्व संध्या के आसपास शुरू हुआ, जब गुवाहाटी और उसके आसपास कई होर्डिंग लगे, जिसमें मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन के बजाय असम के खेल मंत्री बिमल बोरा की तस्वीर बनी हुई थी.
बाद में फिर से लवलीना की बजाय मुख्यमंत्री शर्मा की तस्वीर वाले होर्डिंग लगाए गए. होर्डिंग्स में संदेश था, ‘टोक्यो ओलंपिक 2020 में क्वालीफाई करने के लिए लवलीना बोरगोहेन (मुक्केबाज) को बधाई और शुभकामनाएं.’ इसमें यह भी लिखा था, ‘आप असम का गौरव हैं.’
पांच अगस्त को असम के पहले मुख्यमंत्री गोपीनाथ बोरदोलोई की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में होर्डिंग लगाए गए थे. इन पर मुख्यमंत्री की एक बड़ी तस्वीर दिखाई दे रही थी, जबकि बोरदोलोई की छवि मुख्यमंत्री के ठीक ऊपर एक छोटे गोलाकार फ्रेम में दिखाई दे रही थी.
दिलचस्प बात यह थी कि इन होर्डिंग्स पर किसी सरकारी विभाग का नाम नहीं था.
इसी को लेकर सरकार पर सवाल उठाए जा जाने लगे. कई सोशल मीडिया यूजर्स ने मुख्यमंत्री शर्मा और बिमल बोरा पर खुद का प्रचार, घमंड और अहंकार का आरोप लगाते हुए ऐसे होर्डिंग लगाने की आलोचना की.
अपनी वीडियो रिपोर्ट में पत्रकार गोगोई ने सवाल किया था कि इन होर्डिंग्स का ऑर्डर और भुगतान किसने किया है, क्योंकि इनमें किसी भी सरकारी विभाग का नाम नहीं लिखा गया था.
इसके बाद पांच अगस्त को हिमंता बिस्वा शर्मा ने ट्वीट किया, ‘मैं इस तरह की ब्रांडिंग का बिल्कुल भी समर्थन नहीं करता हूं. मेरे कार्यालय की पूर्व स्वीकृति के बिना अब से मेरी तस्वीर का उपयोग नहीं करने का निर्देश जारी किया गया है.’
I do not endorse this kind of branding at all. Instruction has been issued not to use my picture from now onwards without prior approval of my office pic.twitter.com/Pl7p20IsxO
— Himanta Biswa Sarma (@himantabiswa) August 5, 2021
पत्रकार गोगोई ने द वायर से कहा, ‘वीडियो रिपोर्ट में कुछ बुनियादी सवाल उठाए गए थे. हमने पूछा था कि होर्डिंग किसने लगाए, क्योंकि वहां किसी राज्य विभाग का नाम नहीं था. एक और सवाल जो हमने पूछा वह यह था कि मुख्यमंत्री ने ट्वीट किया था कि वह इस तरह की ब्रांडिंग का समर्थन नहीं करते हैं, लेकिन होर्डिंग्स उनकी जानकारी के बिना कैसे लगाए गए हैं? क्या इसके पीछे जनसंपर्क विभाग था? क्या यह मंत्री पीयूष हजारिका द्वारा मुख्यमंत्री के करीब आने की कोशिश थी, जिसका उल्टा असर हुआ?’
उन्होंने आगे कहा, ‘डीआईपीआर ने कहा है कि हम फर्जी खबरें प्रसारित करते हैं. एफआईआर में यह भी कहा गया है कि वीडियो में हमने कहा है कि होर्डिंग्स डीआईपीआर द्वारा लगाए गए थे. लेकिन हमने ऐसा नहीं कहा. हमने सिर्फ सवाल पूछे थे. मुझे एक रात थाने में बितानी पड़ी. यह काफी चौंकाने वाला है क्योंकि हमने कहानी को मुख्यमंत्री के ट्वीट पर आधारित किया है.’
डीआईपीआर द्वारा दर्ज की गई पहले की पुलिस शिकायत में कहा गया है, ‘हम स्पष्ट करते हैं कि सूचना और जनसंपर्क विभाग उपरोक्त होर्डिंग्स को प्रकाशित करने और लगाने में बिल्कुल भी शामिल नहीं है. उक्त टेलीकास्ट में माननीय सूचना एवं जनसम्पर्क मंत्री पीयूष हजारिका के नाम का उपयोग लोगों की नजरों में मंत्री और विभाग की छवि खराब करने की कोशिश है. जबकि इस मामले में न तो मंत्री और न ही सूचना/जनसंपर्क एवं मुद्रण/स्टेशनरी विभाग शामिल हैं.’
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)