एनआईए ने ‘ड्राफ्ट’ आरोपों में आरोपियों के ख़िलाफ़ 17 आरोप तय किए गए हैं और उन पर यूएपीए और आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप तय करने का अनुरोध किया गया है. बचाव पक्ष के वकीलों ने सोमवार को अदालत से अनुरोध किया कि उनके ख़िलाफ़ आरोप तय करने से पहले आरोपियों द्वारा दाख़िल कई अर्ज़ियों पर सुनवाई की जाए और उनका निपटारा किया जाए.
मुंबई: राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने 2018 के एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में 15 आरोपियों के खिलाफ गैर कानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून और भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत एक विशेष अदालत में बीते सोमवार को मसौदा आरोप-पत्र प्रस्तुत किया.
विशेष अदालत 23 अगस्त को मसौदा आरोप-पत्र पर विचार करेगी और फिर आरोपियों के खिलाफ आरोप तय करेगी. किसी मामले में मुकदमा शुरू होने से पहले आरोप तय करना पहला कदम है, जहां अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ आरोपों के साथ-साथ सबूतों का वर्णन करता है. आरोप तय होने के बाद अदालत आरोपियों से पूछेगी कि क्या उन्हें मामले में अपना गुनाह कबूल है या नहीं?
अदालत में सोमवार को पेश किए गए ‘मसौदा’ आरोपों में आरोपियों के खिलाफ 17 आरोप तय किए गए हैं और उन पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप तय करने का अनुरोध किया गया है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, एनआईए ने भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत आतंकवादी कृत्यों, गैरकानूनी गतिविधियों, साजिश, प्रतिबंधित संगठन की सदस्यता और इसके लिए धन जुटाने से संबंधित आरोपों के लिए आपराधिक साजिश, युद्ध छेड़ने या भारत सरकार के खिलाफ युद्ध को बढ़ावा देने, देशद्रोह और दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोप लगाने का भी प्रस्ताव दिया है.
विशेष लोक अभियोजक प्रकाश शेट्टी ने अदालत के समक्ष मसौदा आरोप प्रस्तुत किया- जिसकी एक प्रति आरोपियों को उपलब्ध नहीं कराई गई थी, उनके खिलाफ पहले दायर आरोप-पत्र पर निर्भर करती है.
आरोपी व्यक्तियों के वकीलों ने सोमवार को अदालत से अनुरोध किया कि उनके खिलाफ आरोप तय करने से पहले आरोपियों द्वारा दाखिल कई अर्जियों पर सुनवाई की जाए और उनका निपटारा किया जाए.
रिपोर्ट के मुताबिक, आरोपियों के वकीलों ने कहा कि एनआईए ने पिछले साल गिरफ्तार किए गए सात आरोपियों के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से कथित तौर पर बरामद किए गए सबूतों पर भरोसा किया था, लेकिन उन्हें क्लोन प्रतियां उपलब्ध नहीं कराई गईं.
वकीलों ने कहा कि जब तक प्रतियां उपलब्ध नहीं कराई जाती हैं, तब तक आरोप तय नहीं किए जा सकते, क्योंकि उन्हें अपने बचाव के लिए सबूतों तक पहुंच प्रदान करने की आवश्यकता है.
यह भी कहा गया कि पुणे पुलिस ने भी कुछ उपकरणों की क्लोन कॉपी ही दी थी. उन्होंने कहा कि उपकरणों की प्रतियां मांगने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष एक अपील दायर की गई है.
विशेष न्यायाधीश दिनेश ई. कोठालीकर ने कहा कि चूंकि उच्च न्यायालयों द्वारा मामले पर कोई रोक नहीं है, अदालत आरोप तय करने के साथ आगे बढ़ेगी.
इसके बाद, विशेष एनआईए न्यायाधीश डीई कोठालीकर ने एनआईए को सभी अर्जियों पर अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करने को कहा और कहा कि अगली तारीख को उन पर दलीलें सुनी जाएंगी.
इसके अलावा अदालत को तलोजा सेंट्रल जेल के अधीक्षक से भी एक रिपोर्ट मिली, जहां पुरुष आरोपी बंद हैं, जिसमें दावा किया गया है कि कार्यकर्ता सुधीर धावले, रमेश गायचोर और अरुण फरेरा के खिलाफ कदाचार की शिकायत है.
अदालत ने एनआईए को गायचोर और गोरखे द्वारा दायर जमानत अर्जी पर जवाब दाखिल करने का भी निर्देश दिया.
दोनों ने अपनी दलीलों में कहा है कि एनआईए के पास यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं है कि आरोपियों ने किसी भी आतंकवादी गतिविधि को आगे बढ़ाने का प्रयास किया है. उनकी याचिका में यह भी कहा गया है कि आरोप अस्पष्ट हैं. अदालत इस पर 23 अगस्त को सुनवाई करेगी.
एल्गार परिषद का मामला 31 दिसंबर 2017 को महाराष्ट्र के पुणे शहर के ऐतिहासिक शनिवारवाड़ा में आयोजित एक सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है. पुलिस ने दावा किया है कि इन भाषणों के चलते अगले दिन पुणे के कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा भड़की. पुणे पुलिस ने दावा किया कि यह सम्मेलन माओवादियों द्वारा समर्थित था.
हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और कई लोग घायल हो गए थे.
इस मामले में एनआईए ने 2020 में पुणे पुलिस से जांच अपने हाथ में ली थी. पिछले साल अक्टूबर में केंद्रीय एजेंसी ने अकादमिक आनंद तेलतुम्बडे, कार्यकर्ता गौतम नवलखा, दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू, सांस्कृतिक समूह के सदस्यों सागर गोरखे, रमेश गायचोर और ज्योति जगताप फादर स्टेन स्वामी और फरार आरोपी मिलिंद तेलतुंबडे सहित आठ आरोपियों के खिलाफ आरोप-पत्र दायर किया था.
यह कई बार आलोचना के केंद्र में आया है, क्योंकि कई जाने-माने अधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी को (सरकार से) असंतुष्ट लोगों पर रोक लगाने के रूप में देखा जाता रहा है. इसके अलावा एक डिजिटल फोरेंसिक फर्म ने पाया है कि आरोपियों के खिलाफ तथाकथित सबूतों में से अधिकांश अज्ञात हैकर द्वारा एक कार्यकर्ता रोना विल्सन के कंप्यूटर पर डाले गए थे.
इसी तरह 2018 में जांच एजेंसियों ने एल्गार परिषद मामले में विल्सन सहित 15 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था.
2018 में शुरू हुए एल्गार परिषद मामले की जांच में कई मोड़ आ चुके हैं, जहां हर चार्जशीट में नए-नए दावे किए गए. मामले की शुरुआत हुई इस दावे से कि ‘अर्बन नक्सल’ का समूह ‘राजीव गांधी की हत्या’ की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की योजना बना रहा है.
हालांकि एनआईए ने डिजिटल फोरेंसिक फर्म आर्सेनल कंसल्टिंग की उस रिपोर्ट का खंडन किया है, जिसमें यह बताया गया है कि भारत के प्रधानमंत्री की हत्या और सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश सहित भड़काऊ सामग्री एलगार परिषद-भीमा कोरेगांव मामले के आरोपी शोधकर्ता रोना विल्सन के लैपटॉप को हैक कर रखे गए थे.
यह विस्फोटक दावा पुणे पुलिस ने किया था, जिसके फौरन बाद 6 जून 2018 को पांच लोगों- रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, कार्यकर्ता सुधीर धावले, महेश राउत और शिक्षाविद शोमा सेन को गिरफ्तार किया गया था.
इसके बाद अगस्त 2018 को महाराष्ट्र की पुणे पुलिस ने माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर पांच कार्यकर्ताओं- कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंजाल्विस को गिरफ्तार किया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)