रूस के तानाशाह स्टालिन की बेटी स्वेतलाना और कालाकांकर (प्रतापगढ़) के राजकुमार बृजेश सिंह की प्रेम कहानी ने साठ के दशक में भारत, सोवियत संघ और अमेरिका के संबंधों में तनाव पैदा कर दिया था.
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की गहमा-गहमी में प्रतापगढ़ की चर्चा सिर्फ रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के चलते है लेकिन यह शहर अपने में तमाम कहानियां समेटे हुए है. कुछ कहानियां तो इतनी रोचक हैं कि देश की सीमाओं के बाहर भी उनकी चर्चा होती थी.
इन्हीं कहानियों में एक प्रेम कहानी कालाकांकर (प्रतापगढ़) के राजकुमार बृजेश सिंह की है. इस प्रेम कहानी ने साठ के दशक में देश में भूचाल ला दिया था. देश की संसद में इस प्रेम कहानी से उपजे संकट पर चर्चा हुई थी. रूस के तानाशाह स्टालिन की बेटी स्वेतलाना एलिल्युयेवा और बृजेश सिंह की प्रेम कहानी ने भारत, रूस और अमेरिका के राजनीतिक व कूटनीतिक संबंधों में तनाव पैदा कर दिया था.
कालाकांकर राजघराने के बृजेश सिंह काफी पढ़े-लिखे, नफ़ीस और सौम्य थे, जो भारत के बड़े कम्युनिस्ट नेताओं में से एक थे. देश की आजादी की लड़ाई में उन्होंने ज़ोर-शोर से हिस्सा लिया था. उनके भतीजे दिनेश सिंह केंद्र सरकार में मंत्री रहे थे.
उनके बारे में बताते हुए प्रतापगढ़ के शीतलमऊ गांव के अस्सी वर्षीय प्रधान छवि नारायण सिंह कहते हैं, ‘हम लोगों के जवानी के दिनों में बृजेश सिंह हमारे आदर्श हुआ करते थे. बिल्कुल गोरे-चिट्टे, सूट-बूट पहनने और धाराप्रवाह अंग्रेज़ी बोलने वाले बृजेश बहुत सहज थे. उस ज़माने में अंग्रेज़ों को छकाने वाले उनके क़िस्से हर क्रांतिकारी गाया करता था. कहा जाता था कि उन्हें अंग्रेज़ी हुकूमत ने काला पानी की सजा दे दी थी पर जिस पानी के जहाज़ से उन्हें भेजा जा रहा था चकमा देकर वे उससे निकल गए थे. वे युवाओं को खूब पसंद करते थे और हम लोगों से जब भी बातचीत होती थी तो बहुत जोश भरा करते थे.’
बृजेश सिंह अपना इलाज कराने रूस गए थे जहां उनकी मुलाकात स्टालिन की बेटी स्वेतलाना से हुई. बृजेश को स्वेतलाना से प्रेम हो गया. हालांकि तत्कालीन सोवियत सरकार ने उन्हें शादी की अनुमति नहीं दी.
जल्द ही बृजेश सिंह की 31 अक्टूबर, 1966 को मॉस्को में मौत हो गई. स्वेतलाना अपने पति की अस्थियां गंगा में प्रवाहित करने भारत आईं. वे उनके असामयिक निधन से बहुत आहत थीं और भारत आकर बसना चाहती थीं. स्वेतलाना ने कालाकांकर में गंगा के किनारे रहने की बात भी कही थी. एक साक्षात्कार में स्वेतलाना ने कहा कि उन्होंने बृजेश सिंह से शादी की थी.
उन दिनों सोवियत संघ में स्टालिन की आलोचक ख्रुश्चेव की सरकार थी और वह न सिर्फ़ स्टालिन के परिवार को प्रताड़ित कर रहा था बल्कि उनका नामोनिशान मिटाने पर तुला था. लेकिन तब भारत की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने स्वेतलाना को भारत में बसने देने का विरोध किया. उन्हें सोवियत संघ की नाराज़गी का डर था.
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कुछ नहीं बोलीं जबकि दिवंगत बृजेश सिंह के भतीजे और कांग्रेस के बड़े नेता दिनेश सिंह ने स्वेतलाना से कहा कि अगर सोवियत संघ सरकार इजाज़त दे तो भारत सरकार भी उन्हें इजाज़त देगी यानी परोक्ष रूप से इनकार.
हालांकि स्वेतलाना तब राम मनोहर लोहिया से मिलीं. लोहिया ने स्वेतलाना के पक्ष में संसद में भाषण दिया. वे इस बात से दुखी थे कि भारत ने अपनी बहु को ठुकरा दिया है. हालांकि लोहिया को अपने प्रयासों में सफलता नहीं मिली और स्वेतलाना को भारत छोड़ना पड़ा.
स्वेतलाना ने दिल्ली से ही अमेरिका में शरण लेने की ठानी. सोवियत संघ ने भारत से इसका कड़ा विरोध जताया. स्वेतलाना धोखे से अमेरिकी दूतावास में चली गईं. अमेरिका उस समय हर सोवियत संघ से भागे व्यक्ति को शरण देता था. स्वेतलाना को वहां से सुरक्षित अमेरिका पहुंचा दिया गया.
छवि नारायण सिंह कहते हैं, ‘दिसंबर 1966 में स्वेतलाना कालाकांकर आई थी. वह यहीं रहना चाहती थी लेकिन इंदिरा सरकार ने इजाजत नहीं दी थी. वह गुप्त रूप से अमेरिका चली गई थीं. अमेरिका पहुंचकर स्वेतलाना ने कालाकांकर में बृजेश अस्पताल का निर्माण कराने का निश्चय किया.
उनका उद्देश्य था कि बृजेश सिंह स्मारक चिकित्सालय में गरीबों का अच्छे से अच्छा इलाज हो सके. इसके लिए उन्होंने बहुत सारे पैसे भेजे. साहित्यकार सुमित्रा नंदन पंत और महादेवी वर्मा जैसे लोगों ने अस्पताल का उद्घाटन किया था. उस समय यह इलाके का सबसे आधुनिक अस्पताल था. इसके लिए विदेशों से उपकरण मंगाए गए थे. हालांकि एक दशक बाद यह बंद हो गया. फिलहाल अब अस्पताल की जगह इस इमारत में कोई निजी स्कूल चल रहा है.’
स्वेतलाना ने चार शादियां की थीं. आखिरी शादी उन्होंने विलियम पेट्रास से की थी. 22 नवंबर, 2011 को स्वेतलाना की मौत हो गई.