पिछले तीन वर्षों में पुलिस हिरासत में 348 और न्यायिक हिरासत में 5,221 लोगों की मौत: सरकार

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा में कहा कि उत्तर प्रदेश में 2018 से 2020 के दौरान 23 लोगों की पुलिस हिरासत में मौत हो गई, जबकि न्यायिक हिरासत में 1,295 लोगों की जान गई. मध्य प्रदेश में इस अवधि के दौरान पुलिस हिरासत 34, जबकि न्यायिक हिरासत में 441 लोगों की मौत के मामले सामने आए हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा में कहा कि उत्तर प्रदेश में 2018 से 2020 के दौरान 23 लोगों की पुलिस हिरासत में मौत हो गई, जबकि न्यायिक हिरासत में 1,295 लोगों की जान गई. मध्य प्रदेश में इस अवधि के दौरान पुलिस हिरासत 34, जबकि न्यायिक हिरासत में 441 लोगों की मौत के मामले सामने आए हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: सरकार ने बुधवार को कहा कि पिछले तीन साल के दौरान पुलिस हिरासत में 348 लोगों, जबकि न्यायिक हिरासत में 5,221 लोगों की मौत हो गई.

गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने एक सवाल के लिखित जवाब में राज्यसभा को यह जानकारी दी.

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में 2018 से 2020 के दौरान 23 लोगों की पुलिस हिरासत में मौत हो गई, जबकि न्यायिक हिरासत में 1,295 लोगों की मौत हो गई.

राय ने बताया कि मध्य प्रदेश में इस अवधि के दौरान पुलिस हिरासत 34 लोगों, जबकि न्यायिक हिरासत में 441 लोगों की मौत हुई.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, इस अवधि के दौरान पश्चिम बंगाल में पुलिस हिरासत में आठ मौतें और न्यायिक हिरासत में 407 मौतें हुईं. वहीं, महाराष्ट्र में पुलिस हिरासत में 27 मौतें और न्यायिक हिरासत में 370 मौतें हुईं.

बीते तीन अगस्त को लोकसभा में नित्यानंद राय ने बताया था कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से मिली सूचना के अनुसार, 2018 में पुलिस हिरासत में 136 लोगों की मौत हुई तो 2019 में 112 और 2020 में 100 लोगों की जान गई. इसी अवधि में हिरासत में 1,189 लोगों को यातना झेलनी पड़ी.

राय ने कहा था कि पुलिस और लोक व्यवस्था राज्य के विषय हैं. मानवाधिकारों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए, गृह मंत्रालय और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग समय-समय पर परामर्श जारी करते हैं. इसके अलावा आयोग द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के तहत, पुलिस हिरासत अथवा न्यायिक हिरासत में, प्राकृतिक अथवा किसी भी प्रकार की हुई प्रत्येक मौत की सूचना घटना के 24 घंटे के भीतर आयोग को दी जानी होती है.

उन्होंने कहा कि यदि आयोग द्वारा पुलिस हिरासत या न्यायिक हिरासत में हुई मौत की जांच में किसी लोक सेवक की लापरवाही का खुलासा होता है, तो आयोग दोषी लोक सेवक के विरुद्ध मुकदमा चलाने की कार्यवाही शुरू करने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों के प्राधिकारियों को सिफारिशें करता है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)