अल्पसंख्यक स्कूलों में इस समुदाय के आठ फीसदी से भी कम बच्चे पढ़ रहे: एनसीपीसीआर

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने इस संदर्भ में अल्पसंख्यक स्कूलों में अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों के लिए आरक्षण की सिफ़ारिश की है. इसके अलावा उन्होंने इन स्कूलों को शिक्षा के अधिकार और सर्व शिक्षा अभियान के दायरे में लाने की मांग की है.

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(इलस्ट्रेशन: द वायर)

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने इस संदर्भ में अल्पसंख्यक स्कूलों में अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों के लिए आरक्षण की सिफ़ारिश की है. इसके अलावा उन्होंने इन स्कूलों को शिक्षा के अधिकार और सर्व शिक्षा अभियान के दायरे में लाने की मांग की है.

(इलस्ट्रेशन: द वायर)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि देश भर के अल्पसंख्यक स्कूलों में अल्पसंख्यक समुदाय के आठ फीसदी से भी कम बच्चे पढ़ रहे हैं. इतना ही नहीं, इन स्कूलों में 60 फीसदी से अधिक बच्चे गैर-अल्पसंख्यक समुदाय के हैं.

ईसाई मिशनरी स्कूलों में तो करीब 74 फीसदी बच्चे गैर-अल्पसंख्यक समुदाय के हैं. आयोग ने इस संदर्भ में अल्पसंख्यक स्कूलों में अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों के लिए आरक्षण की सिफारिश की है. इसके अलावा उन्होंने इन स्कूलों को शिक्षा के अधिकार और सर्व शिक्षा अभियान के दायरे में लाने की मांग की है.

मालूम हो कि अल्पसंख्यक संस्थानों को शिक्षा का अधिकार कानून के अनिवार्य प्रावधानों से छूट दी गई है. एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि इस छूट पर पुनर्विचार करने की जरूरत है.

रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि स्कूल न जाने वाले बच्चों की सबसे बड़ी संख्या मुस्लिम समुदाय है, 1.1 करोड़ है.

साल 2006 में 93वें संविधान संशोधन के तहत शिक्षा का अधिकार कानून लागू किया गया था. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अल्पसंख्यक स्कूलों में नौ फीसदी से कम छात्र सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े पृष्ठभूमि से हैं.

धार्मिक अल्पसंख्यक स्कूलों में मुस्लिम अल्पसंख्यक स्कूलों की हिस्सेदारी महज 22.75 फीसदी है और समुदाय के स्कूलों में गैर-अल्पसंख्यक विद्यार्थियों की संख्या का प्रतिशत सबसे कम है. कुल अल्पसंख्यक आबादी में मुस्लिम समुदाय की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा 69.18 प्रतिशत है.

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्ययन में यह पाया गया है कि भारत में धार्मिक अल्पसंख्यक स्कूलों में ईसाई समुदाय की हिस्सेदारी 71.96 फीसदी है, जबकि कुल अल्पसंख्यक आबादी में समुदाय की हिस्सेदारी 11.54 प्रतिशत है.

आयोग के अध्ययन का मकसद उन तरीकों का पता लगाना था, जो सुनिश्चित करें कि अल्पसंख्यक समुदायों के बच्चों को भी गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक शिक्षा मिले.

अध्ययन में पाया गया है कि धार्मिक अल्पसंख्यक स्कूलों में मुस्लिम समुदाय की हिस्सेदारी 22.75 फीसदी है और उनके अल्पसंख्यक स्कूलों में गैर-अल्पसंख्यक विद्यार्थियों की संख्या सबसे कम 20.29 प्रतिशत है.

अध्ययन के मुताबिक, ‘सभी समुदायों में 62.50 फीसदी विद्यार्थी गैर-अल्पसंख्यक समुदायों से संबंधित है, जबकि 37.50 प्रतिशत अल्पसंख्यकों समुदायों से ताल्लुक रखते हैं.’

अध्ययन के मुताबिक, ईसाई समुदाय के स्कूलों में गैर-ईसाई समुदाय से संबंधित विद्यार्थियों की संख्या 74.01 प्रतिशत है.

इसमें कहा गया है कि सिख समुदाय कुल धार्मिक अल्पसंख्यक आबादी में 9.78 प्रतिशत है, जबकि धार्मिक अल्पसंख्यक स्कूलों में उसकी हिस्सेदारी 1.54 प्रतिशत है.

अध्ययन में कहा गया है, ‘बौद्ध समुदाय कुल अल्पसंख्यक आबादी का 3.38 प्रतिशत है और उसका भारत के कुल धार्मिक अल्पसंख्यक स्कूलों में 0.48 प्रतिशत की हिस्सेदारी है. जैन समुदाय धार्मिक अल्पसंख्यक आबादी में 1.90 प्रतिशत है और धार्मिक अल्पसंख्यक स्कूलों में उसकी हिस्सेदारी 1.56 प्रतिशत है.’

पारसी समुदाय कुल अल्पसंख्यक आबादी का 0.03 प्रतिशत है और भारत में कुल धार्मिक अल्पसंख्यक स्कूलों में उसकी हिस्सेदारी 0.38 प्रतिशत हिस्सा है.

अन्य धार्मिक समुदायों (आदिवासी धर्मों, बहाई, यहूदियों सहित) का धार्मिक अल्पसंख्यक आबादी में हिस्सेदारी 3.75 प्रतिशत हैं और धार्मिक अल्पसंख्यक स्कूलों में उनकी हिस्सेदारी 1.3 प्रतिशत है.

स्कूल से ‘बाहर के बच्चों’ की पहचान करने के लिए सभी गैर-मान्यता प्राप्त संस्थानों की मैपिंग की सिफारिश करते हुए एनसीपीसीआर ने कहा है कि बड़ी संख्या में बच्चे ऐसे स्कूलों/संस्थानों में पढ़ते हैं जो मान्यता प्राप्त नहीं हैं.

ऐसे संस्थानों की संख्या ज्ञात नहीं है. इसलिए, क्या ये संस्थान गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करते हैं, यह भी ज्ञात नहीं है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)