इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 161 (3) के प्रावधानों के तहत बलात्कार और यौन शोषण पीड़िताओं के बयान महिला पुलिस अधिकारी द्वारा ऑडियो-वीडियो के माध्यम से दर्ज करना अनिवार्य है और अधिकांश मामलों में ऐसा नहीं होता. अदालत ने राज्य के पुलिस महानिदेशक और प्रमुख सचिव (गृह) को दो महीने के भीतर सीआरपीसी के प्रावधानों के अनुपालन संबंधी दिशानिर्देश जारी करने को कहा है.
लखनऊः इलाहाबाद हाईकोर्ट का कहना है कि बलात्कार के अधिकतर मामलों में सीआरपीसी की धारा 161 (3) के प्रावधानों का पालन नहीं किया जाता है.
दरअसल सीआरपीसी की धारा 161 (3) के प्रावधानों के तहत बलात्कार और यौन शोषण की पीड़िताओं के बयान महिला पुलिस अधिकारी द्वारा ऑडियो-वीडियो के माध्यम से दर्ज करना अनिवार्य है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने राज्य के पुलिस महानिदेशक और प्रमुख सचिव (गृह) को दो महीने के भीतर सीआरपीसी की धारा 161 (3) के पहले और दूसरे प्रावधानों का पालन करने के लिए सभी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों (एसएसपी) को दिशानिर्देश जारी करने का निर्देश दिया है.
सीआरपीसी की धारा 161 (3) के पहले और दूसरे प्रावधानों के तहत कहा गया है कि बलात्कार और यौन शोषण के मामलों में पीड़िताओं का बयान महिला पुलिस अधिकारी द्वारा ऑडियो-वीडियो माध्यम से दर्ज किया जाना चाहिए.
इलाहाबाद जिले में बलात्कार के आरोपी शख्स की जमानत याचिका पर सुनवाई करने के दौरान 11 अगस्त को जस्टिस संजय कुमार सिंह की पीठ ने यह टिप्पणी की.
आरोपी के वकील ने अदालत में बताया किया कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत चार दिसंबर 2020 को बलात्कार पीड़िता का बयान दर्ज किया गया था. पीड़िता ने आरोप लगाया था कि याचिकाकर्ता और उसके एक साथी ने बलात्कार किया.
वकील ने कहा कि पीड़िता के पहले बयान के बाद जांचकर्ता अधिकारी ने तीन दिन बाद उसका एक अन्य बयान दर्ज किया, जिसमें उसने केवल याचिकाकर्ता के खिलाफ बलात्कार का आरोप लगाया और जहां तक सह-आरोपी का संबंध हैं, पीड़िता का कहना है कि उसने अपने पहले बयान में वकील की सलाह पर बादल पर बलात्कार के आरोप लगाए थे.
वकील ने अदालत को बताया कि सह-आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 366 (अपहरण, महिला को अगवा कर उसे शादी करने के लिए मजबूर करना) के तहत चार्जशीट दायर की गई थी.
वकील ने कहा कि जांचकर्ता अधिकारी ने निष्पक्ष जांच नहीं की और उन्होंने (जांच अधिकारी) सह-आरोपी के साथ सांठगांठ कर पीड़िता का दूसरा बयान दर्ज कर सह-आरोपी के खिलाफ अपराध की गंभीरता का कम किया.
अदालत ने 30 जुलाई को जांचकर्ता अधिकारी को व्यक्तिगत तौर पर पेश होने और हलफनामा जमा करने का निर्देश दिया था, जिसमें यह बताने को कहा था कि आखिर क्यों पीड़िता के दूसरे बयान को ऑडियो-वीडियो माध्यम के जरिये दर्ज नहीं किया गया.
पुलिस प्रशासन की ओर से मामले में पेश एडिशनल एडवोकेट जनरल (एएजी) एमसी चतुर्वेदी ने कहा कि जांचकर्ता अधिकारी ने सीआरपीसी की धारा 161 (3) के तहत पीड़िता का दूसरा बयान पुलिस रेगुलेशन के पैराग्राफ 107 के तहत अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए सही मंशा के साथ दर्ज किया था.
एएजी ने कहा कि पीड़िता का दूसरा बयान किसी महिला पुलिस अधिकारी नहीं बल्कि जांचकर्ता अधिकारी द्वारा ही दर्ज किया गया था.
उन्होंने यह भी कहा कि बयान ऑडियो-वीडियो माध्यम के जरिये भी दर्ज नहीं किया गया. उन्होंने कहा, ‘जांचकर्ता अधिकारी ने अपनी गलत का अहसास करते हुए बिना शर्त लिखित माफी मांगी और अब वह भविष्य में सावधान रहेंगे.’
अदालत ने इस तथ्य पर ध्यान देते हुए कि जांचकर्ता अधिकारी ने अपने हलफनामे में प्रावधानों का पालन नहीं करने का कारण नहीं बताया है, कहा कि किसी अपराध में निष्पक्ष, उचित और पारदर्शी जांच आरोपी और पीड़िता दोनों का अधिकार है इसलिए इसकी जिम्मेदारी जांचकर्ता अधिकारी पर है कि वह निष्पक्ष और उचित ढंग से जांच करें.
अदालत ने कहा, ‘यह देखने को मिला है कि अधिकतर मामलों में जांचकर्ता अधिकारियों द्वारा सीआरपीसी की धारा 161 (3) के प्रावधानों का पालन नहीं किया जा रहा है और सीआरपीसी की धारा 164 के तहत पीड़िता का बयान दर्ज करने के बाद सीआरपीसी की धारा 161 के तहत पीड़िता का दूसरा बयान दर्ज किया जाता है. कुछ मामलों में सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज बयान को नजरअंदाज कर सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज दूसरे बयान के आधार पर जांचकर्ता अधिकारी निष्कर्ष निकालते हैं.’
अदालत ने आदेश दिया कि उनके इस आदेश की कॉपी इलाहाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को भेजी जाए ताकि वह इस मामले में जांचकर्ता अधिकारी के व्यवहार क जांच कर सकें और उचित कार्रवाई कर सकें.