कर्नाटक हाईकोर्ट का यह आदेश पिछले हफ़्ते के सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के बाद आया है, जिसमें उच्च न्यायालयों की मंज़ूरी के बिना राज्यों द्वारा विधायकों और सांसदों के ख़िलाफ़ मामलों को वापस लेने पर रोक लगा दिया गया था. मामले वापस लेने से इससे हिंदुत्ववादी समूहों के 205 सदस्यों, मैसूर से भाजपा सांद प्रताप सिम्हा और 106 मुस्लिमों को फ़ायदा पहुंचा था.
बेंगलुरु: कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार को राज्य सरकार से कहा कि वह 16 सितंबर, 2020 के बाद राज्य में मौजूदा या पूर्व सांसदों या विधायकों के खिलाफ बंद किए गए मामलों का विवरण प्रदान करे.
हाईकोर्ट का यह आदेश पिछले हफ्ते के सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के बाद आया है, जिसमें उच्च न्यायालयों की मंजूरी के बिना राज्यों द्वारा विधायकों और सांसदों के खिलाफ मामलों को वापस लेने पर रोक लगा दिया गया.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश अभय श्रीनिवास ओका की अगुवाई वाली खंडपीठ ने 31 अगस्त, 2020 के राज्य सरकार के 62 मामलों को वापस लेने के आदेश के खिलाफ दायर एक याचिका के निपटारे के दौरान यह विवरण मांगा.
इनमें से कम से कम 21 मामले भाजपा सरकार के आदेश पर अदालतों द्वारा अक्टूबर 2020 और दिसंबर 2020 के बीच बंद किए गए, जिसमें सांप्रदायिक हिंसा और गोरक्षा से जुड़ी हिंसा के मामले शामिल थे.
इससे हिंदुत्ववादी समूहों के 205 सदस्यों, मैसूर से भाजपा सांद प्रताप सिम्हा और 106 मुस्लिमों को फायदा पहुंचा था.
कानून मंत्री जेसी मधुस्वामी, भटकल से भाजपा सांसद सुनील नाइक और पशुपालन मंत्री प्रभु चवाण सहित अन्य के अनुरोधों पर ये मुकदमे वापस लिए गए थे.
इनमें से प्रत्येक मुकदमों को बंद को लेकर राज्य पुलिस, अभियोजन एवं विधि विभाग द्वारा लिखित आपत्ति जताए जाने के बाद भी मामलों को बंद कर दिया गया था.
अदालत ने कहा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार मौजूदा या पूर्व संसद सदस्यों या विधानसभा के सदस्यों के खिलाफ मुकदमा वापस लेने की 16 सितंबर, 2020 के बाद की गई राज्य सरकार की कार्रवाई की वैधता पर विचार और जांच करनी होगी.
जेसी मधुस्वामी ने 2015 और 2018 के बीच मैसूर जिले के हुनसुर क्षेत्र से संबंधित 13 मामलों को बंद करने की मांग की थी.
इसमें दिसंबर 2017 की एक घटना भी शामिल है, जब भाजपा सांसद प्रताप सिम्हा ने कथित तौर पर अपनी जीप को एक पुलिस बैरिकेड में घुसा दिया था, जिसे सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील हुनसुर शहर में हनुमान जयंती जुलूस को विनियमित करने के प्रयासों के तहत बनाया गया था.
हुनसुर की एक अदालत ने 31 अगस्त, 2020 के आदेश के आधार पर 10 अक्टूबर, 2020 को भाजपा सांसद के खिलाफ आरोप हटा दिए थे.
सिम्हा पर पुलिस के सार्वजनिक आदेश की अवहेलना करने, तेज गति से गाड़ी चलाने, एक लोक सेवक को अपना कर्तव्य करने से रोकने और एक लोक सेवक को स्वेच्छा से चोट पहुंचाने का आरोप लगाया गया था.
सिम्हा के खिलाफ मुकदमा बंद करते हुए अदालत ने दर्ज किया था कि राज्य सरकार ने मामला वापस ले लिया है.
अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत सरकार एवं अन्य के मामले में 11 अगस्त को दिए गए अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हाईकोर्ट की अनुमति के बिना किसी मौजूदा या पूर्व सांसद/विधायक के खिलाफ कोई मुकदमा वापस नहीं लिया जाएगा.