सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नामों पर मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया पवित्र है और इसके साथ गरिमा जुड़ी हुई है. मीडिया को इस पवित्रता को समझना और पहचानना चाहिए. मुख्य न्यायाधीश ने जस्टिस नवीन सिन्हा की सेवानिवृत्ति के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में यह टिप्पणी की है.
नई दिल्ली: मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने बीते बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में कॉलेजियम की बैठक के बारे में मीडिया में कुछ ‘अटकलों और खबरों’ को ‘बेहद दुर्भाग्यपूर्ण’ करार दिया.
मुख्य न्यायाधीश ने जस्टिस नवीन सिन्हा की सेवानिवृत्ति के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया पवित्र है और इसके साथ गरिमा जुड़ी हुई है तथा मीडिया को इस पवित्रता को समझना व पहचानना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘इस अवसर पर मैं मीडिया में कुछ अटकलों और खबरों पर चिंता व्यक्त करने की स्वतंत्रता लेना चाहता हूं. आप सभी जानते हैं कि हमें इस न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति करने की जरूरत है. यह प्रक्रिया चल रही है. बैठकें होंगी और फैसले लिए जाएंगे. न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया पवित्र है और इसके साथ एक गरिमा जुड़ी हुई है. मेरे मीडिया के मित्रों को इस प्रक्रिया की पवित्रता को समझना व पहचानना चाहिए.’
JUST IN: CJI NV Ramana expresses his displeasure at media reports speculating over Collegium's recommendations. Says process of appointment of judges is sacrosanct and has certain dignity attached to it. Media friends must understand and recognise the sanctity of this process. pic.twitter.com/cVMOutdJNo
— The Leaflet (@TheLeaflet_in) August 18, 2021
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि एक संस्था के तौर पर शीर्ष अदालत मीडिया की स्वतंत्रता और नागरिकों के अधिकारों का बेहद सम्मान करती है और प्रक्रिया के लंबित रहने के दौरान प्रस्ताव के निष्पादन से पहले ही मीडिया के एक वर्ग में जो प्रतिबंबित हुआ वह विपरीत असर डालने वाला है.
उन्होंने कहा, ‘ऐसे मामले भी सामने आए हैं जहां योग्य प्रतिभाओं के आगे बढ़ने का मार्ग ऐसी गैर-जिम्मेदाराना खबरों और अटकलों के कारण बाधित हो जाता है. यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है और मैं इससे बेहद व्यथित हूं.’
सीजेआई ने ऐसे गंभीर मामलों में अटकलें नहीं लगाने और संयम बरतने में अधिकांश वरिष्ठ पत्रकारों और मीडिया घरानों द्वारा दिखाई जाने वाली ‘परिपक्वता और जिम्मेदारी’ की भी सराहना की.
उन्होंने कहा, ‘ऐसे पेशेवर पत्रकार और नैतिक मीडिया विशेष तौर पर उच्चतम न्यायालय और लोकतंत्र की असली ताकत हैं. आप हमारी व्यवस्था का हिस्सा हैं. मैं सभी पक्षकारों से इस संस्थान के अक्षुण्ता और गरिमा को बरकरार रखने की उम्मीद करता हूं.’
जस्टिस रमना मीडिया में आईं उन खबरों के संदर्भ में बोल रहे थे, जिनमें कहा गया था कि उनकी अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति के लिए नौ नामों की सिफारिश की है.
भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाले उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम ने गतिरोध का समाप्त करते हुए शीर्ष अदालत में न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए नौ नामों की सिफारिश की है.
JUST IN: The Supreme Court Collegium recommends 9 names for the elevation as the Supreme Court judges. pic.twitter.com/ex4lbTxCvL
— The Leaflet (@TheLeaflet_in) August 18, 2021
पांच सदस्यीय कॉलेजियम ने तीन महिला न्यायाधीशों के नाम भेजे हैं, जिसमें कर्नाटक उच्च न्यायालय की जस्टिस बीवी नागरत्ना, तेलंगाना हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश जस्टिस हिमा कोहली और गुजरात हाईकोर्ट की जज जस्टिस बेला त्रिवेदी शामिल हैं. जस्टिस नागरत्ना देश की पहली महिला सीजेआई बन सकती हैं.
इसके अलावा जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका (कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश), जस्टिस विक्रम नाथ (गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश), जस्टिस जितेंद्र कुमार माहेश्वरी (सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश), जस्टिस सीटी रवि कुमार (केरल उच्च न्यायालय) और जस्टिस एमएम सुंदरेश (केरल उच्च न्यायालय) को सुप्रीम कोर्ट भेजने की सिफारिश की गई है.
कॉलेजियम ने बार से सीधी नियुक्ति के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पीएस नरसिम्हा को भी चयनित किया है.
19 मार्च 2019 को तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई की सेवानिवृत्ति के बाद शीर्ष न्यायालय में कोई नियुक्ति नहीं हुई है. अगर इन सिफारिशों को मंजूर कर लिया जाता है तो इससे शीर्ष न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या 33 हो जाएगी.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘जस्टिस सिन्हा सत्यनिष्ठा, नैतिकता और अपने सिद्धांतों पर हमेशा खड़े रहने के दृढ़ विश्वास वाले व्यक्ति हैं. वह बेहद स्वतंत्र और निष्पक्ष हैं.’
सीजेआई ने कहा, ‘न्यायाधीश अक्सर अपने व्यक्तिगत विचार रखते हैं- अपने पूर्वाग्रह जो अनजाने में निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं. सामाजिक परिस्थितियां, पालन-पोषण और जीवन के अनुभव अक्सर न्यायाधीशों की राय और धारणा को प्रभावित कर देते हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन, जब हम एक न्यायाधीश का पद धारण करते हैं, तो हमें अपने पूर्वाग्रहों को दूर करने के लिए सचेत प्रयास करना चाहिए. आखिरकार, समानता, उद्देश्यपरकता और समरूपता, निष्पक्षता के महत्वपूर्ण पहलू हैं. साथ ही हमें उन सामाजिक आयामों को नहीं भूलना चाहिए, जो हमारे सामने के हर मामले के केंद्र में हैं.’
सीजेआई एनवी रमना ने कहा कि जस्टिस सिन्हा ने इन मुद्दों को सराहनीय और सहजता से संतुलित किया और उच्चतम न्यायालय के एक न्यायाधीश के लिए आवश्यक गुणों को सही मायने में व्यक्त किया है.
जस्टिस सिन्हा ने कहा कि वह न्यायाधीशों के प्रशिक्षण के समर्थक रहे हैं. उन्होंने कहा कि विनम्रता अपनी कमियों को पहचानने में है और वकीलों की युवा पीढ़ी को प्रशिक्षित करने की जरूरत है.
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह ने कहा कि यह गलत धारणा है कि न्यायाधीश सुबह 10 बजे से शाम चार बजे तक काम करते हैं और लंबी छुट्टियां लेते हैं. उन्होंने कहा कि वकील जानते हैं कि न्यायाधीश कितनी मेहनत करते हैं.
जस्टिस नवीन सिन्हा को 17 फरवरी 2017 को सुप्रीम कोर्ट जज बनाया गया था. उन्होंने अपने कार्यकाल में 13,671 से अधिक मामलों का निपटारा किया.
19 अगस्त 1956 को जन्मे जस्टिस सिन्हा ने 1979 में दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री पूरी करने के बाद वकालत शुरू किया था. उन्होंने 23 वर्षों तक पटना उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस किया और 11 फरवरी, 2004 को वहां स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किए गए थे.
सर्वोच्च न्यायालय आने से पहले वे छत्तीसगढ़ और राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे.
शीर्ष अदालत में वह जनवरी 2019 के उस ऐतिहासिक फैसले सहित कई महत्वपूर्ण निर्णयों का हिस्सा थे, जिसमें दिवाला और दिवालियापन संहिता की संवैधानिक वैधता को पूरी तरह से बरकरार रखा गया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)