बाल मज़दूरी ख़त्म करने के लिए उठाए गए कदमों पर एनएचआरसी ने सभी राज्यों से रिपोर्ट मांगी

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राजस्थान से बच्चों की तस्करी के संबंध में मिली शिकायत को लेकर कहा कि स्वतंत्रता के 70 साल बाद भी बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए विभिन्न क़ानूनों और योजनाओं के बावजूद बाल मज़दूरी और बच्चों की तस्करी का जारी रहना राज्य की मशीनरी पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है.

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(फोटो: रॉयटर्स)

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राजस्थान से बच्चों की तस्करी के संबंध में मिली शिकायत को लेकर कहा कि स्वतंत्रता के 70 साल बाद भी बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए विभिन्न क़ानूनों और योजनाओं के बावजूद बाल मज़दूरी और बच्चों की तस्करी का जारी रहना राज्य की मशीनरी पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने मंगलवार को कहा कि उसने राजस्थान से बच्चों की तस्करी के संबंध में मिली विरोधाभासी जानकारी को गंभीरता से लिया है, जो 2019 में मिली एक शिकायत से जुड़ा है.

एनएचआरसी ने एक बयान में कहा कि स्वतंत्रता के 70 साल बाद भी बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए विभिन्न कानूनों और योजनाओं के बावजूद बाल मजदूरी और बच्चों की तस्करी का जारी रहना राज्य की मशीनरी पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है.

तदनुसार, एनएचआरसी ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासकों से संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार संधि और बाल एवं किशोर श्रम संशोधन कानून, 2016 के प्रावधानों के अनुपालन में उठाए गए कदमों पर रिपोर्ट मांगी है.

सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के श्रम सचिवों को बाल मजदूरी कराने में शामिल कंपनियों और उनके प्रबंधन के खिलाफ की गई कानूनी कार्रवाई के बारे में आठ सप्ताह के भीतर रिपोर्ट दायर करने का निर्देश दिया गया है.

आयोग ने बयान में कहा कि तात्कालिक मामला आयोग को 22 दिसंबर 2019 को मिली शिकायत से संबंधित है, जिसमें आरोप लगाया गया था कि राजस्थान के तीन जिलों- उदयपुर, बांसवाड़ा और डूंगरपुर में आठ से 15 साल की उम्र तक के बच्चों की तस्करी जोरों पर है, जिन्हें 500 से 3,000 रुपये तक में बेच दिया जाता है. यहां तक ​​कि हर सौदे पर 50 रुपये का कमीशन भी लिया जाता है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, शिकायतकर्ता ने इस मुद्दे पर एक प्रमुख अखबार की मीडिया रिपोर्ट के आधार पर भी अपने आरोपों का समर्थन किया है.

मामले में आयोग ने राजस्थान के पुलिस महानिदेशक को रिपोर्ट दायर करने का निर्देश देते हुए नोटिस जारी किया था. इसने कहा कि आयोग ने मामले में राजस्थान से मिली विरोधाभासी जानकारी को गंभीरता से लिया है.

बयान में कहा गया है कि आयोग के नोटिस के जवाब में पुलिस अधीक्षक (एचआर), आपराधिक जांच विभाग (सीबी), जयपुर, राजस्थान ने बताया था कि प्रकाशित खबर पुरानी घटनाओं की थी, जिसके संबंध में कोई मामला दर्ज नहीं किया गया था.

रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी लड़के और लड़कियां अपने परिवार के साथ मजदूरी करने गुजरात गए थे. गुजरात से आने के बाद राजस्थान के बच्चों के संबंध में आने, लापता होने या विकलांग होने का कोई मामला सामने नहीं आया है.

इसमें कहा गया है कि ज्यादातर बच्चे बाल श्रम के लिए गुजरात जाते रहते हैं. उसी समय पुलिस थानों और मानव तस्करी विरोधी इकाइयों द्वारा सीमावर्ती क्षेत्रों में कार्रवाई की गई थी.

डूंगरपुर के पुलिस अधीक्षक ने बताया कि डूंगरपुर में मानव तस्करी के लिए कोई संगठित गिरोह सक्रिय नहीं है.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए मानव तस्करी रोधी इकाई पहले से ही जिले में काम कर रही है. इसके अलावा मानव तस्करी को रोकने के लिए जिले की एक विशेष टीम भी बनाई गई है जो गुजरात की सीमा से लगे थाना क्षेत्र में लगातार चेकिंग की जा रही है.

आयोग ने कहा कि उसे राजस्थान के बांसवाड़ा जिला के  मानव तस्करी रोधी इकाई के प्रभारी अधिकारी से एक पत्र मिला, जिसमें यह कहा गया था कि मानव तस्करी विरोधी पुलिस ने राजस्थान के बच्चों की गुजरात में तस्करी को रोका और 16 को बचाया. उन नाबालिग बच्चों को बाल कल्याण समिति को सौंप दिया.

आयोग ने पाया कि पुलिस रिपोर्टों ने स्वयं स्वीकार किया था कि ऐसे मामले हैं, जहां बच्चों की तस्करी विभिन्न कारणों से की गई थी. दोनों राज्यों में दलालों को सुविधा दी गई थी. रिपोर्ट में कहा है कि वर्तमान मामला राजस्थान के दक्षिणी भाग के अनुसूचित जनजाति समुदाय के माता-पिता की गरीबी के कारण हो सकती है.

एनएचआरसी ने बयान में कहा कि उसने श्रम के लिए बाल तस्करी पर राजस्थान से विरोधाभासी रिपोर्टों पर गंभीरता से विचार किया है.

आयोग ने यह भी नोट किया कि 1988 में केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय ने देश के 12 बाल श्रम स्थानिक जिलों में कामकाजी बच्चों के पुनर्वास के लिए राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजनाओं (एनसीएलपी योजना) की शुरुआत की थी.

इस योजना का उद्देश्य खतरनाक व्यवसायों में बाल श्रमिकों का सर्वेक्षण करना, उनकी पहचान करना, स्वास्थ्य सुविधाएं, व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करके उनका पुनर्वास करना है और सभी प्रकार के बाल श्रमिकों को खत्म करना है.

रिपोर्ट में कहा है कि तब से इस परियोजना का विस्तार देश के 21 राज्यों के 312 जिलों में किया गया है.

श्रम और रोजगार मंत्रालय के 2019 के आंकड़ों के अनुसार, सर्वाधिक 52 जिले उत्तर प्रदेश से हैं, उसके बाद 30 तेलंगाना से हैं. राजस्थान से 27, पश्चिम बंगाल से 21, ओडिशा से 24, बिहार से 23, मध्य प्रदेश से 21, तमिलनाडु से 18, महाराष्ट्र और कर्नाटक से 16-16 जिले शामिल हैं.  हालांकि, देश में बाल तस्करी और बाल श्रम के रूप में बाल अधिकारों का बड़े पैमाने पर उल्लंघन अभी भी जारी है.

मालूम हो कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के 2019 के आंकड़ों के अनुसार बाल तस्करी के मामले में राजस्थान शीर्ष पर था. आंकड़ों के अनुसार, बाल तस्करी के 886 मामलों के साथ राजस्थान पहले स्थान पर है, जबकि पश्चिम बंगाल 450 ऐसे मामलों के साथ दूसरे स्थान पर था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)