साल 2018 में पत्रकार के ख़िलाफ़ दर्ज केस को जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट ने क़ानून का दुरुपयोग बताया

जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह एफआईआर दर्ज करना पत्रकार को ‘चुप कराने’ का तरीका था. पत्रकार की एक रिपोर्ट 19 अप्रैल 2018 को जम्मू के एक अख़बार में प्रकाशित हुई थी, जो एक व्यक्ति को पुलिस हिरासत में प्रताड़ित करने से संबंधित थी. इसे लेकर पुलिस ने उन पर केस दर्ज किया था.

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जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह एफआईआर दर्ज करना पत्रकार को ‘चुप कराने’ का तरीका था. पत्रकार की एक रिपोर्ट 19 अप्रैल 2018 को जम्मू के एक अख़बार में प्रकाशित हुई थी, जो एक व्यक्ति को पुलिस हिरासत में प्रताड़ित करने से संबंधित थी. इसे लेकर पुलिस ने उन पर केस दर्ज किया था.

जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट ने एक न्यूज रिपोर्ट के चलते साल 2018 में एक पत्रकार के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर को ‘कानून का दुरुपयोग’ बताया है. कोर्ट ने कहा कि यह दर्शाता है कि ‘पुलिस दुर्भावना से ग्रसित’ थी.

इतना ही नहीं न्यायालय ने यह भी कहा कि ये आसिफ इकबाल नाइक नामक पत्रकार को ‘चुप कराने’ का तरीका था, जिन्होंने एक व्यक्ति को प्रताड़ित करने की खबर लिखी थी.

रिपोर्ट प्रकाशित होने के चार हफ्ते बाद जम्मू कश्मीर पुलिस ने रणबीर दंड संहिता (आरपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत पत्रकार के खिलाफ मामला दर्ज किया था और दावा किया था कि वह सड़कों को अवरुद्ध करने और संपत्ति को बर्बाद करने के लिए लोगों को उकसाने की कोशिश कर रहे थे.

हाईकोर्ट ने पत्रकार के खिलाफ दर्ज मामले को रद्द करने का आदेश दिया है. नाइक किश्तवाड़ जिले का निवासी हैं. उनकी एक रिपोर्ट 19 अप्रैल 2018 को जम्मू के अखबार अर्ली टाइम्स (Early Times) में प्रकाशित हुई थी, जो एक व्यक्ति को पुलिस हिरासत में प्रताड़ित करने से संबंधित थी. इसी को लेकर पुलिस ने उन पर केस दर्ज किया था.

12 मई 2018 को किश्तवाड़ पुलिस ने अधिकारियों से अनुमति लेने के बाद नाइक के खिलाफ आरपीसी की धारा 500, 504 और 505 के तहत मामला दर्ज किया था. पत्रकार ने बाद में इसके खिलाफ जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.

याचिका में उन्होंने कहा कि यह केस उन्हें चुप कराने के लिए दायर किया गया है और पुलिस उन्हें उनके खिलाफ किसी भी समाचार को प्रकाशित करने से रोकना चाहती है.

नाइक ने यह भी कहा कि उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करना ‘कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग’ है. उन्होंने कहा कि एफआईआर में लगाए गए आरोप इतने बेतुके और असंभव हैं कि कोई भी विवेकपूर्ण व्यक्ति कभी भी इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकता है कि इस आधार पर कार्रवाई की जा सकती है.

जस्टिस रजनीश ओसवाल की एकल पीठ ने कहा कि पत्रकार के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करना ‘निस्संदेह प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला’ है.

जज ने कहा कि जिस तरीके से प्राथमिकी दर्ज की गई है, वह स्पष्ट रूप से पुलिस की दुर्भावना को दर्शाता है. उन्होंने याचिकाकर्ता को चुप कराने का अनूठा तरीका चुना और यह निस्संदेह प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला है.

जस्टिस ओसवाल ने आगे कहा, ‘यह कहने की जरूरत नहीं है कि प्रेस को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में जाना जाता है और प्रेस की स्वतंत्रता भारत जैसे किसी भी लोकतांत्रिक देश के कामकाज के लिए महत्वपूर्ण है. एक पत्रकार के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करके प्रेस की स्वतंत्रता पर कोई बंधन नहीं लगाया जा सकता है, जो तथ्यात्मक जानकारी के आधार पर खबर प्रकाशित करके अपना पेशेवर कर्तव्य निभा रहे थे.’

विभिन्न निर्णयों का हवाला देते हुए जज ने कहा कि यह एफआईआर कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग के अलावा और कुछ नहीं है. हाईकोर्ट ने कहा कि यदि पुलिस न्यूज रिपोर्ट से आहत हुई थी तो उसे अपना पक्ष प्रकाशित करवाना चाहिए था.

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न्यायालय ने कहा, ‘अदालत का मानना है कि अख्तर हुसैन के भाई और चचेरे भाई द्वारा दिए गए बयान के आधार पर समाचार का प्रकाशन करना आरपीसी की धारा 499 के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं आता है, क्योंकि याचिकाकर्ता रिपोर्टिंग के अपने पेशेवर कर्तव्य का पालन कर रहे थे.’

इसके साथ ही कोर्ट ने पत्रकार के खिलाफ दर्ज अन्य आरोपों को भी खारिज कर दिया.

18 अप्रैल 2018 को किश्तवाड़ के 26 वर्षीय अख्तर हुसैन को कथित तौर पर थर्ड डिग्री देने के बाद गंभीर हालात में जम्मू के सरकारी मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था. आरोप था कि तारिक हुसैन के लापता होने के संबंध में अवैध तरीके से हिरासत में रखकर प्रताड़ित किया गया था. इसी संबंध में 19 अप्रैल 2018 को आसिफ इकबाल नाइक ने अर्ली टाइम्स में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी.

द वायर से बात करते हुए पत्रकार आसिफ इकबाल नाइक ने सत्ता का दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की. उन्होंने कहा, ‘पत्रकारिता कोई अपराध नहीं है और पत्रकारों को अपने पेशेवर कर्तव्यों का पालन करने के लिए उनके साथ अपराधियों जैसा व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए.’

इस मामले को लेकर किश्तवाड़ के तत्कालीन उपायुक्त अंग्रेज सिंह ने कहा कि वह उच्च न्यायालय के फैसले पर टिप्पणी नहीं कर सकते हैं. यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने पत्रकार के खिलाफ मामले की अनुमति दी थी, सिंह ने कहा, ‘मुझे यह विशेष मामला याद नहीं है.’

उस समय किश्तवाड़ के जिला पुलिस प्रमुख के रूप में तैनात अबरार चौधरी ने कहा कि जब भी प्राथमिकी दर्ज की जाती है तो कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किया जाता है.

मालूम हो कि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद से पत्रकारों को अक्सर जम्मू कश्मीर पुलिस और अन्य एजेंसियों द्वारा आलोचनात्मक रिपोर्टिंग के लिए तलब कर पूछताछ की जाती है.

मालूम हो कि पत्रकार और लेखक गौहर गिलानी और फोटो जर्नलिस्ट मसरत जहरा पर कठोर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया था, जिसका इस्तेमाल ज्यादातर जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों और अलगाववादियों के खिलाफ किया जाता है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)