इंटरनेशनल प्रेस इंस्टिट्यूट की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर बारबरा ट्रियंफी ने कहा कि द वायर भारत के डिजिटल न्यूज़ क्षेत्र में हुए बदलाव का प्रमुख नाम है और इसकी गुणवत्तापूर्ण व स्वतंत्र पत्रकारिता को लेकर प्रतिबद्धता दुनिया भर के आईपीआई सदस्यों के लिए एक प्रेरणा है.
नई दिल्ली: इंटरनेशनल प्रेस इंस्टिट्यूट (आईपीआई) ने बुधवार को घोषणा की है कि ‘भारत में डिजिटल न्यूज़ क्रांति के अगुआ और स्वतंत्र, उच्च गुणवत्ता वाली पत्रकारिता के एक साहसी रक्षक’ की भूमिका निभाने के लिए साल 2021 का फ्री मीडिया पायनियर अवॉर्ड द वायर को दिया गया है.
आईपीआई की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर बारबरा ट्रियंफी ने कहा, ‘हमें यह बताते हुए बेहद गर्व है कि द वायर इस साल आईपीआई-आईएमएस फ्री मीडिया पायनियर के बतौर चुना गया है. द वायर भारत के डिजिटल न्यूज़ क्षेत्र में हुए बदलाव का प्रमुख नाम है और इसकी गुणवत्तापूर्ण व स्वतंत्र पत्रकारिता को लेकर प्रतिबद्धता दुनिया भर के आईपीआई सदस्यों के लिए एक प्रेरणा है. हम द वायर के सभी कर्मचारियों को आलोचनात्मक रिपोर्टिंग और प्रेस की स्वतंत्रता में उनके बेहतरीन काम के लिए उन्हें बधाई देते हैं और उन पर बढ़ते राजनीतिक दबाव के खिलाफ उनके साथ हैं.’
यह अवॉर्ड 16 सितंबर को ऑस्ट्रिया के विएना में आईपीआई की सालाना वर्ल्ड कांग्रेस में दिया जाएगा.
आईपीआई मीडिया अधिकारियों, संपादकों और पत्रकारों का एक वैश्विक नेटवर्क है, जिसका उद्देश्य दुनिया भर में स्वतंत्र प्रेस की रक्षा करना है. 1996 में वार्षिक फ्री मीडिया पायनियर पुरस्कार ‘उन मीडिया संगठनों को पहचानने के लिए शुरू किया गया था, जो बेहतर पत्रकारिता और समाचार तक पहुंच के लिए नए तरीके से काम कर रहे हैं या अपने देश या क्षेत्र में दबावों से मुक्त और अधिक स्वतंत्र मीडिया सुनिश्चित करने में योगदान दे रहे हैं.’
पिछले साल यह पुरस्कार मिस्र की समाचार वेबसाइट ‘मादा मस्र’ को दिया गया था. अवॉर्ड के पिछले विजेताओं में फिलीपीन समाचार साइट ‘रैपलर’, अफगान पत्रकार सुरक्षा समिति और रूस की ‘नोवाया गज़येता’ शामिल हैं.
द वायर को यह अवॉर्ड दिए जाने की घोषणा के साथ आईपीआई ने उन खतरों और धमकियों- जिसमें आपराधिक मुक़दमे और सर्विलांस आदि भी शामिल हैं- का जिक्र भी किया है, जिनका सामना द वायर के संपादकों और पत्रकारों ने किया है.
भारत की प्रेस की स्वतंत्रता में गिरावट के बीच जनता से जुड़े समाचारों के प्रति द वायर की प्रतिबद्धता ने इसे सरकारी उत्पीड़न का निशाना बनाया है. अकेले इस साल संस्थान और उसके पत्रकारों के खिलाफ तीन मामले दर्ज किए गए हैं, जिसमें भारत के किसानों के विरोध प्रदर्शनों की कवरेज भी शामिल है. 2020 में द वायर और इसके संपादक सिद्धार्थ वरदराजन पर धार्मिक नेताओं द्वारा कोविड-19 नियमों के उल्लंघन की रिपोर्ट करने पर ‘डर फैलाने’ का आरोप लगाया गया था. संस्थान इससे पहले ही 14 मानहानि के मामलों का सामना कर रहा है, जहां सत्ताधारी दल ने उन पर करीब 1.3 बिलियन डॉलर का दावा किया है.
इस साल पेगासस प्रोजेक्ट के खुलासे के साथ द वायर और उसके पत्रकारों पर दबाव का और स्याह पहलू सामने आया. सिद्धार्थ वरदराजन और एमके वेणु के फोन संभवत: भारत सरकार के इशारे पर इजरायली स्पायवेयर पेगासस से संक्रमित मिले, जबकि द वायर की डिप्लोमैटिक एडिटर का नाम सर्विलांस के संभावित लक्ष्यों की लीक सूची में था. द वायर, फॉरबिडन स्टोरीज़ द्वारा समन्वित की गई एक साझा वैश्विक जांच का हिस्सा था, जिसने पेगासस के जरिये पत्रकारों और मानवाधिकार रक्षकों की सरकारी सर्विलांस को उजागर किया.
द वायर भारत में डिजिटल मंचों के लिए लाए गए नए नियमों, जो डिजिटल सामग्री को सेंसर करने के लिए अधिकारियों को अधिक शक्तियां प्रदान करते हैं, के खिलाफ लड़ाई में भी सबसे आगे रहा है. द वायर के प्रकाशक फाउंडेशन फॉर इंडिपेंडेंट जर्नलिज्म ने इन नियमों के खिलाफ अदालत का रुख किया है. इसके मुताबिक ये नियम सरकार द्वारा मीडिया को यह बताने का एक असंवैधानिक प्रयास हैं कि वे क्या प्रकाशित कर सकते हैं और क्या नहीं.
द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन ने पुरस्कार मिलने के बारे में कहा, ‘द वायर आईपीआई/आईएमएस फ्री मीडिया पायनियर अवॉर्ड मिलने पर काफी खुश है. हमने देश के अधिकांश मीडिया पर हावी राजनीतिक और कॉरपोरेट दबावों से मुक्त होकर देश के लोगों को उच्च गुणवत्ता वाली पत्रकारिता देने के अपने मिशन को पूरा करने की कोशिश की है. हमने अपनी आज़ादी के लिए एक कीमत चुकाई है- मानहानि के मामले और पत्रकारिता करने के लिए आपराधिक आरोप, और निश्चित रूप से फंड जुटाने में आने वाली मुश्किलें. लेकिन इस सफर को देश और दुनिया के अपने साथियों द्वारा पहचाना जाना इसे सार्थक बनाता है.’