पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती ने केंद्र पर सवाल उठाते हुए कहा कि जहां भारत सरकार अफ़ग़ानिस्तान में लोगों के अधिकारों के लिए चिंता व्यक्त कर रही है, वहीं कश्मीरियों को उनके अधिकारों से वंचित रखा गया है.
नई दिल्ली: पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती को मंगलवार को कहा कि उन्हें नजरबंद कर दिया गया है. उन्होंने कहा कि इस कदम से सरकार के जम्मू कश्मीर में ‘स्थिति सामान्य होने के दावों की सच्चाई सामने आ गई है.’
उन्होंने केंद्र पर भी आरोप लगाया कि जहां भारत सरकार अफगानिस्तान में लोगों के अधिकारों के लिए चिंता व्यक्त कर रही है, वहीं कश्मीरियों को उनके अधिकारों से वंचित रखा गया है.
पूर्ववर्ती राज्य जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री ने श्रीनगर में गुपकर स्थित अपने आवास के मुख्य द्वार के बाहर खड़े सुरक्षा बल के वाहनों की तस्वीरें ट्विटर पर साझा कीं.
GOI expresses concern for the rights of Afghan people but wilfully denies the same to Kashmiris. Ive been placed under house arrest today because according to admin the situation is far from normal in Kashmir. This exposes their fake claims of normalcy. pic.twitter.com/m6sR9vEj3S
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) September 7, 2021
उन्होंने लिखा, ‘मुझे आज नजरबंद कर दिया गया, क्योंकि प्रशासन के अनुसार कश्मीर में स्थिति अभी सामान्य नहीं है. उसके इस बयान से स्थिति सामान्य होने के दावों की सच्चाई सामने आ गई है.’
पीडीपी की नेता ने केंद्र पर निशाना साधते हुए कहा, ‘भारत सरकार ने अफगान लोगों के अधिकारों को लेकर चिंता व्यक्त की है, लेकिन जान-बूझकर कश्मीरियों को इससे वंचित रख रही है.’
अधिकारियों के अनुसार, महबूबा ने दक्षिण कश्मीर के संवेदनशील कुलगाम जिले में एक पारिवारिक समारोह में शामिल होने की इच्छा जाहिर की थी, लेकिन अधिकारियों ने उनसे वहां न जाने को कहा, क्योंकि अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी के निधन के बाद कुछ लोग अब भी घाटी में कथित तौर पर माहौल खराब करने की कोशिश कर रहे हैं.
गिलानी के निधन के बाद से ही महबूबा खुलकर अपने विचार व्यक्त करती रही हैं और बीते सोमवार को उन्होंने प्रशासन पर घाटी को एक ‘खुली जेल में तब्दील करने’ का आरोप भी लगाया था, जहां ‘मृतक को भी बख्शा’ नहीं जा रहा है.
उन्होंने ट्वीट किया था, ‘गिलानी के परिवार को उनका अंतिम संस्कार करने और अलविदा कहने की अनुमति नहीं दी गई. गिलानी साहब के परिवार के खिलाफ यूएपीए के तहत मामला दर्ज करना, भारत सरकार की निर्दयता दिखाता है. यह नए भारत का नया कश्मीर है.’
Having turned Kashmir into an open air prison, now even the dead aren’t spared.A family isn’t allowed to mourn & bid a final farewell as per their wishes. Booking Geelani sahab’s family under UAPA shows GOI’s deep rooted paranoia & ruthlessness.This is New India’s Naya Kashmir.
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) September 5, 2021
इसके कुछ घंटे बाद ही जम्मू कश्मीर पुलिस ने गिलानी के अंतिम संस्कार के कुछ वीडियो जारी किए थे. गिलानी का निधन लंबी बीमारी के बाद एक सितंबर को हो गया था. वह 91 वर्ष के थे.
उनकी मृत्यु के बाद की घटनाओं पर पुलिस द्वारा एक बयान भी जारी किया गया था, जिसमें कहा गया था कि उसके अधिकारियों को तब अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी के घर पर तीन घंटे इंतजार करना पड़ा था, जब वे उनके निधन के बाद उन्हें दफनाने के लिए गए थे.
जम्मू कश्मीर पुलिस ने गिलानी के शव को पाकिस्तानी झंडे में लपेटने और उनके घर पर कथित तौर पर देश विरोधी नारे लगाने को लेकर गैर-कानूनी गतिविधियां रोकथाम (यूएपीए) कानून के तहत मामला दर्ज किया गया था.
पुलिस ने कहा था कि ‘शायद पाकिस्तान और असमाजिक तत्वों के दबाव में गिलानी का परिवार देश विरोधी गतिविधियों में शामिल हुआ.’
पुलिस ने कहा था, ‘उनके दोनों बेटों का कब्रिस्तान आने से इनकार करना, उनके दिवंगत पिता के लिए उनके प्यार और सम्मान के बजाय पाकिस्तानी एजेंडे के प्रति उनकी वफादारी का संकेत था.’
उनके बेटों ने हालांकि दो सितंबर सुबह 11 बजे फातिहा पढ़ा था.
इससे पहले मार्च महीने में केंद्र ने महबूबा मुफ्ती और उनकी मां गुलशन नजीर का पासपोर्ट आवेदन खारिज कर दिया था. सरकार ने इसे लेकर यह दलील दी थी कि यह ‘भारत की सुरक्षा के लिए हानिकारक’ होगा.
नजीर, पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री मंत्री और जम्मू कश्मीर के दो बार मुख्यमंत्री रहे दिवंगत मुफ्ती मोहम्मद सईद की पत्नी हैं.
इसके अलावा प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) उनके खिलाफ कथित ‘मनी लॉन्ड्रिंग’ के आरोपों की जांच कर रहा है, जिसे लेकर मुफ्ती ने कहा है कि यह पीडीपी को खत्म करने की कोशिश है.
जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को पांच अगस्त 2019 को समाप्त किए जाने के बाद से महबूबा करीब 14 महीने हिरासत में थीं. उनके अलावा कई अन्य राजनीतिक नेताओं को मोदी सरकार ने नजरबंद कर रखा था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)