पश्चिम बंगाल स्थित विश्व भारती विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में विद्युत चक्रवर्ती के अक्टूबर 2018 से पदभार संभालने के बाद से यहां शिक्षक और छात्र लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. उनके पद संभालने के बाद नवंबर 2019 से 22 स्टाफकर्मियों को निलंबित किया जा चुका है, जिनमें 11 फैकल्टी के सदस्य और 11 ग़ैर-शिक्षण कर्मचारी हैं. वहीं, 150 से अधिक कारण बताओ नोटिस जारी किए जा चुके हैं.
कोलकाताः पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में शांतिनिकेतन स्थित विश्व भारती विश्वविद्यालय ने बीते 23 अगस्त को कथित तौर पर गलत आचरण के लिए तीन छात्रों को संस्थान से निष्कासित कर दिया, जिसके बाद से वहां लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.
हालांकि कलकत्ता हाईकोर्ट ने तीनों छात्रों को कक्षाओं में दोबारा शामिल होने की बुधवार को अनुमति दी. अदालत के इस फैसले के बाद संस्थान में हालात सामान्य होने की उम्मीद है.
कुलपति विद्युत चक्रवर्ती की आलोचना करने वालों के विरुद्ध उनके प्रतिशोधी रवैये के विरोध में विश्व भारती परिसर में रैली में भाग लेने वाले उक्त तीन छात्रों को जनवरी में निलंबित कर दिया गया था. इसके बाद 23 अगस्त को उन्हें विश्वविद्यालय से निकाल दिया गया था.
जस्टिस राजशेखरन मंथा ने अपने अंतरिम आदेश में कहा कि तीन वर्षों के लिए छात्रों को निष्कासित करना कठोर और हद से ज्यादा है. अदालत ने कहा कि छात्रों को कक्षाओं में जाने की मंजूरी दी जाती है.
हाईकोर्ट ने तीन सितंबर को एक अन्य अंतरिम आदेश में कहा था कि संस्थान के 50 मीटर के दायरे में कहीं भी प्रदर्शन न किया जाए. आदेश में पुलिस को कुलपति विद्युत चक्रवर्ती के आवास के बाहर चल रहे सभी प्रदर्शनों को समाप्त करने तथा बैनर, अवरोधक आदि हटाने का भी निर्देश दिया गया.
अदालत ने केंद्रीय विश्वविद्यालय में सामान्य गतिविधियां तत्काल बहाल कराने के लिए निर्देश दिए. इस बीच प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने अदालत का आदेश आने के बाद अपना अनशन समाप्त कर दिया.
निष्कासित किए गए तीन छात्रों में से एक सोमनाथ सॉ ने कहा, ‘हम खुश हैं, लेकिन कुलपति की अलोकतांत्रिक गतिविधियों के खिलाफ हमारा आंदोलन जारी रहेगा.’
उन्होंने कहा, ‘हमारा करिअर बच गया, न्यायपालिका का आभार है.’
कुलपति के आधिकारिक आवास से 60 मीटर से अधिक दूरी पर अनशन पर बैठे विश्व भारती विश्वविद्यालय फैकल्टी संघ के पदाधिकारी सुदीप्तो भट्टाचार्य ने संगीत विभाग के एक अन्य छात्र के साथ अपना अनशन समाप्त कर दिया.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में विद्युत चक्रवर्ती के अक्टूबर 2018 से पदभार संभालने के बाद से यहां शिक्षक और छात्र लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं, क्योंकि उनके पदभार संभालने के बाद से बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय से सदस्यों को निलंबित किया गया है.
फैकल्टी के सदस्य असामान्य रूप से बड़ी संख्या में किए जा रहे इन निलंबनों पर सवाल उठा रहे हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, नवंबर 2019 से 22 स्टाफकर्मियों को सस्पेंड किया जा चुका है, जिनमें 11 फैकल्टी के सदस्य और 11 गैर शिक्षण कर्मचारी हैं. वहीं, 150 से अधिक कारण बताओ नोटिस जारी किए जा चुके हैं.
निलंबित शिक्षकों में से कुछ का कहना है कि उन्हें विश्वविद्यालय में कथित अनियमितताओं के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क पत्र लिखने सहित विभिन्न कारणों की वजह से इस कार्रवाई का सामना करना पड़ा है.
वहीं, कुछ का कहना है कि उन्हें ड्यूटी में लापरवाही बरतने और वित्तीय अनियमितताओं सहित कई झूठे आरोपों में सस्पेंड किया गया है. इनमें से पांच शिक्षकों ने इस निलंबन को अदालत में चुनौती दी है.
अखबार ने कुछ निलंबित प्रोफेसर, कुलपति चक्रबर्ती और विश्वविद्यालय के पीआरओ अनिर्बान सरकार से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नही दिया.
निलंबित किए गए शिक्षकों में विश्व भारती विश्वविद्यालय फैकल्टी एसोसिएशन (वीबीयूएफए) के अध्यक्ष सुदिप्त भट्टाचार्य ने बताया, ‘विश्वविद्यालय ने मुझे एक महिला सहकर्मी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने और शिकायत का प्रसार करने के आरोप में निलंबित कर दिया, जो कि निराधार है. हममें से कुछ लोगों ने कुलपति के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (विश्वविद्यालय के कुलाधिपति), राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ को एक मेल लिखा था. ये आरोप निलंबन का आधार नहीं हो सकते.’
रिपोर्ट के अनुसार, उनके इस निलंबन आदेश में एक सहकर्मी के खिलाफ आपत्तिजनक/आधारहीन टिप्पणी और इस संबंध में की गई शिकायत को सर्कुलेट करने और इसकी कॉपी ईमेल द्वारा प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और राज्यपाल को भेजने के कदाचार का हवाला दिया गया है.
इस आदेश को विश्वविद्यालय के पथ भवन में प्रिंसिपल की नियुक्ति में कथित अनियमितता को लेकर भट्टाचार्य द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखने के कुछ दिनों बाद इस साल सात जनवरी को जारी किया गया था.
यह निलंबन शुरुआत में तीन महीने का था लेकिन इसे बाद में तीन और महीने के लिए बढ़ाया गया और फिर दो और महीने के लिए बढ़ा दिया गया.
अर्थशास्त्र के प्रोफेसर सुदिप्त भट्टाचार्य का आरोप है, ‘जो कुलपति के नक्शेकदम पर नहीं चला और जिसने उनके कामकाज के खिलाफ आवाज उठाई, उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ा. फिजिक्स विभाग के एक शिक्षक को मेरे खिलाफ आरोपों की जांच के लिए बनाई गई समिति का नेतृत्व कर रहे एक प्रोफेसर से मिलने के लिए निलंबित कर दिया गया. क्या यह निलंबन का आधार हो सकता है?’
रिपोर्ट के अनुसार, संपर्क करने पर फिजिक्स प्रोफेसर ने पहचान उजागर नहीं करने की शर्त पर बताया, ‘मुझे एक साथी शिक्षक के घर जाने के बाद छह मार्च को निलंबित कर दिया गया. मुझे इस पर और कुछ नहीं कहना है. हर कोई जानता है मेरे खिलाफ इस तरह की कार्रवाई क्यों की गई.’
निलंबन आदेश में उनके द्वारा जांच अधिकारी को प्रभावित करने का प्रयास करने का हवाला दिया गया है.
भट्टाचार्य का कहना है कि जैव प्रौद्योगिकी विभाग के प्रोफेसर तथागत चौधरी को कुलपति के करीबी एक संस्थान के प्रिंसिपल के साथ विवाद के बाद निलंबित कर दिया गया.
दो दिसंबर 2019 के इस निलंबन आदेश में कहा गया है कि शिक्षा भवन के प्रिंसिपल प्रोफेसर काशीनाथ चटर्जी की शिकायत पर जांच समिति की रिपोर्ट पर विचार करने के बाद यह फैसला लिया गया.
चौधरी ने इस निलंबन आदेश को कलकत्ता हाईकोर्ट में चुनौती दी है.
भाषा भवन के तीन प्रिंसिपल- अभिजीत सेन, कैलाश चंद्र पटनायक और नरोत्तम सेनापति ने भी कथित वित्तीय अनियमितता के लिए चार जून 2020 को अपने निलंबन को अदालत में चुनौती दी है.
सेन तभी से सेवानिवृत्त हो चुके हैं.
एक सहायक प्रोफेसर ने पहचान उजागर नहीं करने की शर्त पर बताया कि उन्हें विभाग में अपने कर्तव्यों की लापरवाही के लिए इस साल 13 मार्च को निलंबित किया गया था.
उन्होंने कहा, ‘आधिकारिक कारण बताओ नोटिस में कहा गया है कि मैं अपने कर्तव्यों में लापरवाही बरतकर लगभग रोजाना दोपहर 3:30 से शाम 6:00 बजे के बीच अकादमिक एवं अनुसंधान सेक्शन में जाता था. शिक्षक होने के नाते मुझे इन सेक्शन में जाने की आजादी है और मैं वहां अपनी कक्षा समाप्त होने के बाद जाता हूं. यह निलंबन का आधार कभी नहीं हो सकता.’
उन्होंने आगे कहा, ‘असल कारण यह है कि मैंने एक महिला सहकर्मी के खिलाफ हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था, जबकि यूनिवर्सिटी उस सहकर्मी पर प्रतिबंध लगाना चाहता था. मैंने उस महिला सहकर्मी के साथ हुए दुर्व्यवहार के खिलाफ भी विरोध किया था. मैंने वाइस चांसलर को बताया था कि मैं अपने किसी सहकर्मी के खिलाफ हस्ताक्षर नहीं करूंगा. 13 मार्च को मुझे तीन महीने के लिए निलंबित कर दिया गया था लेकिन बाद में इसे बढ़ाकर और तीन महीने कर दिया गया.’
उन्होंने कहा, ‘मुझे सिर्फ अपने वेतन का पचास फीसदी हिस्सा ही मिला. तीन महीने बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने मुझे नोटिस भेजकर कहा कि जांच शुरू कर दी गई है और मेरा निलंबन और तीन महीने बढ़ा दिया गया है, लेकिन असल में कोई जांच, कोई सुनवाई नहीं हुई. मुझे किसी ने नहीं बुलाया. उन्होंने पढ़ाने की मेरी आजादी छीन ली. मुझे तीन महीने के बाद मेरे वेतन का 75 फीसदी हिस्सा मिलना चाहिए था, लेकिन मुझे सिर्फ अगस्त का ही हिस्सा मिला.’
वीबीयूएफए के अध्यक्ष सुदिप्त भट्टाचार्य ने स्वीकार किया है कि कुछ प्रोफेसरों के खिलाफ लगाए गए आरोप सही हो सकते हैं.
उन्होंने कहा, ‘यह जांच का विषय है कि पता लगाया जाए कि क्या सभी दोषी हैं, लेकिन इनमें से बड़ी संख्या में लोगों को गलत तरीके से निलंबित किया गया है. निलंबन आदेशों में अधिकारियों द्वारा बताए गए कारणों से यह स्पष्ट है.’
इन निलंबनों के बावजूद शिक्षण और गैर शिक्षण स्टाफ के नौ सदस्यों को बर्खास्त कर दिया गया, जिनमें पूर्व कार्यवाहक वीसी साबुज कोली सेन भी हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व रजिस्ट्रार सौगत चट्टोपाध्याय और पूर्व वित्त अधिकारी समित रे के अलावा सेन को अपनी सेवानिवृत्ति से सिर्फ दो दिन पहले 28 अगस्त 2020 को सेवा से हटा दिया गया था.
विश्वविद्यालय प्रशासन पर दो शिक्षकों और गैर शिक्षण स्टाफ के दो सदस्यों के सेवानिवृत्ति लाभ रोकने का भी आरोप है. इसके साथ तीन शिक्षकों और दो गैर शिक्षण स्टाफ के सदस्यों का वेतन रोकने का आरोप है.
कुछ अन्य संकाय सदस्यों को भी कार्रवाई का सामना करना पड़ा है, जिसमें उन्हें प्रधानाध्यापक, उप-प्राचार्य और विभाग के प्रमुखों के रूप में हटाना शामिल है.
बता दें कि इससे पहले भी विश्व भारती विश्वविद्यालय के कुलपति विद्युत चक्रवर्ती विवादों में रहे हैं. उन्होंने पिछले साल गणतंत्र दिवस पर उनके संबोधन की वीडियो रिकॉर्डिंग करने वाले छात्र को हॉस्टल से निकाल दिया था.
वह इस वीडियो में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों को लेकर कथित रूप से भारतीय संविधान, संसद की सर्वोच्चता पर टिप्पणी कर रहे थे.
वार्षिक पौष मेला (शीतकालीन मेला) को बंद करने से लेकर नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन को विश्वविद्यालय की भूमि पर अवैध कब्जाधारियों में से एक घोषित करने तक, बिद्युत चक्रवर्ती के कुलपति के रूप में कार्यभार संभालने के बाद विश्वविद्यालय ने कई विवादों को देखा है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)