केरल यूनिवर्सिटी ने शिक्षकों को चेताया, कहा- राष्ट्रविरोधी भाषण देंगे तो होगी कार्रवाई

इस संबंध में केरल यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार राजेंद्र पिलंकट्टा ने दो सितंबर को सर्कुलर जारी किया. यह क़दम राजनीतिक विज्ञान के सहायक प्रोफेसर गिल्बर्ट सेबेस्टियन के निलंबन के बाद आया है. गिल्बर्ट ने दक्षिणपंथी संगठन आरएसएस और नरेंद्र मोदी सरकार के तहत संगठनों को फासीवाद की ओर अग्रसर बताया था.

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केरल विश्वविद्यालय, (फोटो साभार: विश्वविद्यालय वेबसाइट)

इस संबंध में केरल यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार राजेंद्र पिलंकट्टा ने दो सितंबर को सर्कुलर जारी किया. यह क़दम राजनीतिक विज्ञान के सहायक प्रोफेसर गिल्बर्ट सेबेस्टियन के निलंबन के बाद आया है. गिल्बर्ट ने दक्षिणपंथी संगठन आरएसएस और नरेंद्र मोदी सरकार के तहत संगठनों को फासीवाद की ओर अग्रसर बताया था.

केरल विश्वविद्यालय. (फोटो साभार: विश्वविद्यालय वेबसाइट)

नई दिल्लीः केरल की सेंट्रल यूनिवर्सिटी ने फैकल्‍टी के सदस्यों से ऐसे किसी भी प्रकार के भड़काऊ बयान देने से परहेज करने को कहा है, जो राष्ट्रविरोधी हों या राष्ट्रहित के खिलाफ हों.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, यूनिवर्सिटी रजिस्ट्रार राजेंद्र पिलंकट्टा ने दो सितंबर को सर्कुलर जारी किया, जिसमें कहा गया कि भड़काऊ बयान देने वाले स्टाफ और फैकल्टी सदस्यों के खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी.

रिपोर्ट में कहा गया कि यूनिवर्सिटी का यह कदम राजनीतिक विज्ञान के सहायक प्रोफेसर गिल्बर्ट सेबेस्टियन के निलंबन के बाद आया है.

दरअसल प्रोफेसर गिल्बर्ट ने दक्षिणपंथी संगठन आरएसएस और नरेंद्र मोदी सरकार के तहत संगठनों को प्रोटो-फासीवादी (फासीवाद की ओर अग्रसर राजनीतिक आंदोलन) बताया था.

प्रोफेसर अपूर्वानंद ने द न्यूज मिनट के हवाले से द वायर  के लिए लिखा था, ‘ऑनलाइन क्लास में गिल्बर्ट ने कथित तौर पर कहा था कि भारत में संघ परिवार को प्रोटो फासीवादी संगठन माना जाता है. उन्होंने जनरल फ्रेंको के तहत स्पेन, एंटोनियो डी ओलिवेरा सालाजार के तहत पुर्तगाल, जुआन पेरोन के तहत अर्जेंटीना, ऑगस्टो पिनोचे के तहत चिली और रवांडा में हुतु सरकार को प्रोटो-फासीवाद का उदाहरण बताया.’

यूनिवर्सिटी के इस कदम के बाद छात्र समुदाय ने इसका विरोध किया.

सेबेस्टियन ने अप्रैल में एमए प्रथम वर्ष के छात्रों के लिए ‘फासीवाद और नाजीवाद’ की कक्षा में कोविड-19 वैक्सीन के निर्यात के मोदी सरकार के फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि यह कदम देशभक्ति की भावनाओं के अनुरूप नहीं था.

सेबेस्टियन के इस बयान की जांच के लिए गठित समिति की जांच के बाद उन्हें पहले निलंबित किया गया और फिर बाद में उनका स्पष्टीकरण मिलने पर जून की शुरुआत में उनका निलंबन रद्द कर दिया गया.

डीन ऑफ एकेडमिक्स केपी सुरेश, अंतरराष्ट्रीय संबंध एवं राजनीति विभाग के प्रोफेसर एमएस जॉन और कंट्रोलर ऑफ एग्जामिनेशन मुरलीधरन नाम्बियार इस आंतरिक समिति के सदस्य थे.

इस घटना का आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर में भी उल्लेख किया गया था.

बता दें कि जून के आखिरी में कार्यकारी परिषद की बैठक में फैसला लिया गया था कि सेबेस्टियन का भाषण राष्ट्रविरोधी था और इस संबंध में सर्कुलर जारी किया जाना चाहिए.

इस बीच सेबेस्टियन ने कार्यकारी परिषद की बैठक के मिनट्स को लेकर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर को पत्र लिखा था. इस बैठक के मिनट्स में कहा गया था कि सेबेस्टियन ने अपना बयान वापस ले लिया है और उन्होंने खेद जताते हुए आश्वासन दिया है कि वह इसे दोबारा नहीं दोहराएंगे.

इस पत्र में सेबेस्टियन ने कहा कि वह हमेशा से स्पष्ट रहे हैं कि उन्होंने अपने वक्तव्य पर खेद नहीं जताया है और उनके विचारों को गलत संदर्भ में लिया गया है.

उन्होंने कहा, ‘कार्यकारी परिषद का कहना कि कक्षा में मेरा बयान राष्ट्रविरोधी था. यह दरअसल अनुचित और खेदजनक हैं क्योंकि यह निराधार आरोप है.’

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